१. स्त्रियां नारियल क्यों न फोडें एवं कुम्हडा क्यों न काटें ?
अधिकतर शुभ कार्यों एवं धार्मिक कार्यों में नारियल का प्रयोग किया जाता है। बिना नारियल के पूजा को अधूरा माना जाता है। नारियल से शारीरिक दुर्बलता भी दूर होती है। लेकिन स्त्रियों को पूजा से संबधित कार्यो में कभी भी नारियल नहीं फोड़ना चाहिए।
पानी से भरा नारियल एवं कुम्हडा स्त्री के पेडू का परिचायक है । नारियल फोडने अथवा कुम्हडा काटने का कृत्य लयदर्शक अर्थात स्त्री की जननक्षमता नष्ट करने का प्रतीक है; इसलिए उसे धर्म ने निषिद्ध माना है । स्त्री द्वारा स्वयं की जननक्षमता का लय करना अर्थात एक प्रकार से स्वयं में विद्यमान आदिशक्ति के बीज को ही नष्ट करना है । यह स्त्रीत्व का अपमान करने समान है; इसलिए ऐसा कृत्य अशुभ माना गया है ।
नारियल को श्रीफल के नाम से भी जाना जाता है । भगवान विष्णु जब पृथ्वी में प्रकट हुए तब स्वर्ग से वे अपने साथ माता लक्ष्मी, कामधेनु गाय तथा नारियल का वृक्ष लाए थे।
क्योंकि यह भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का फल है यही कारण है कि इसे श्रीफल के नाम से जाना जाता है। इसमें त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का वास होता है।
महादेव शिव को श्रीफल अर्थात नारियल अत्यन्त प्रिय है तथा श्रीफल में स्थित तीन नेत्र भगवान शिव के त्रिनेत्रों को प्रदर्शित करते है। देवी देवताओं को श्री फल चढ़ाने से धन संबंधित समस्याओं का समाधान होता है।
हमारे हिन्दू सनातन धर्म के हर पूजा में श्रीफल अर्थात नारियल का महत्वपूर्ण योगदान है, चाहे वह धर्म से संबंधित वैदिक कार्य हो या देविक कार्य कोई भी कार्य नारियल के बलिदान के बिना अधूरी मानी जाती है।
परन्तु यह भी एक खास तथ्य है कि स्त्रियों द्वारा नारियल को नहीं फोड़ा जा सकता क्योंकि श्रीफल अर्थात नारियल एक बीज फल है जो उत्पादन या प्रजनन का कारक है। श्रीफल प्रजनन क्षमता से जोड़ा गया है। स्त्रियां बीज रूप में ही शिशु को जन्म देती है यही कारण है कि स्त्रियों को बीज रूपी नारियल को नहीं फोडना चाहिए। ऐसा करना शास्त्रों में अशुभ माना गया है। देवी देवताओं की पूजा साधना आदि के बाद केवल पुरुषों द्वारा ही नारियल को फोड़ा जा सकता है।
२. अमावस्या के दिन यथासंभव खाद्यतेल क्यों न लाएं ?
अमावस्या के दिन वातावरण में रज-तम कणों की प्रबलता अधिक होती है । इन रज-तमयुक्त तरंगों की प्रबलता के कारण इस दिन वातावरण में अनिष्ट शक्तियों का संचार अथवा विचरण भी अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक होता है । खाद्यतेल रज-तमयुक्त तरंगें आकर्षित एवं प्रक्षेपित करता है । इससे घर का वातावरण भी कष्टदायक स्पंदनों से युक्त बनता है । इस दिन बाहर से खाद्यतेल लाने से तेल में विद्यमान रज- तम कणों की सहायता से कोई भी अनिष्ट शक्ति हमारे वास्तु में प्रवेश कर सकती है; इसलिए इस दिन यथासंभव खाद्यतेल घर में न लाएं ।
३. तैलीय पदार्थ लेकर घर के बाहर क्यों न जाएं ?
तेल मूलतः ही रज-तम गुणों का प्रक्षेपण करता है । तले हुए अथवा तैलीय पदार्थ तामसिक होते हैं; इसलिए ऐसे पदार्थाों की ओर अनिष्ट शक्तियां तुरंत आकर्षित होती हैं । अतः, तैलीय पदार्थ लेकर घर के बाहर न जाएं ।
४. अन्न ढककर क्यों रखे ?
अन्न खुला न रखें, अन्न को ढककर रखें । स्थूलरूप से अन्न की रक्षा हेतु, अन्न में कोई जीव-जंतु न जाए आदि कारणों से हम उसे ढककर रखते हैं । स्थूल के साथ सूक्ष्मरूप से भी अन्न की रक्षा हो, इसके लिए उसे ढकना आवश्यक है । अन्न ढकने से वातावरण में विद्यमान स्थूल जीव का, उसी प्रकार सूक्ष्म शक्ति के नाद का अन्न पर दुष्प्रभाव नहीं पडता । अन्न ढकने से अनिष्ट शक्तियों की दृष्टि भी उसपर नहीं पडती । वह अन्न सहजता से काली शक्ति से दूषित भी नहीं होता ।
५. तेल एवं घी एक-साथ क्रय (खरीदारी) क्यों न करें ?
तेल रज-तम गुणों का प्रतीक है तथा वह रज-तम तरंगों को आकर्षित एवं प्रक्षेपित कर सकता है । घी सत्त्वगुणी है तथा वातावरण में सत्त्वकण प्रक्षेपित कर सकता है । तेल एवं घी का एक ही समय क्रय करने से (खरीदने से) तेल के सर्व ओर निर्मित रज-तमयुक्त गतिमान तरंगों के वायुमंडल से घी के सर्व ओर निर्मित सत्त्वकण आवेशित मंडल का घर्षण होता है । रज-तम तरंगें सत्त्वकणों की अपेक्षा अधिक गतिमान होने के कारण रज-तमयुक्त तरंगों के घर्षण के प्रभाववश घी से प्रक्षेपित सत्त्वकणों का वातावरण में ही विघटन होता है । इससे निर्मित सूक्ष्म-वायु घी पर आवरण लाने में सहायक होती है । इससे घी से प्रक्षेपित सत्त्वतरंगें अवरुद्ध हो जाती हैं । फलस्वरूप घी से जीव को प्राप्त सात्त्विकता का लाभ घट जाता है । अतः यथासंभव तेल एवं घी एक-साथ न लाएं ।
६. पानी संग्रहित करने हेतु तांबे के बरतन और पानी निकालने हेतु पीतल के बरतन का प्रयोग क्यों किया जाता है ?
पानी का संग्रह करने हेतु सत्त्वगुणी तांबे का और पानी निकालने एवं क्रिया को गति प्रदान करने हेतु रजोगुणी पीतल के लोटे का प्रयोग किया जाता है । अर्थात, इससे ध्यान में आता है कि हिन्दू धर्म में प्रत्येक वस्तु का उस के कार्यकारी तत्त्वरूप गुणधर्मानुसार उस विशिष्ट स्थान पर
किस प्रकार विशेषतापूर्वक अचूकता से प्रयोग कर लिया गया है ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंसंबंधी अध्यात्मशास्त्र (भाग २)’