वर्तमान युग में भोजन बनाने तथा उसे ग्रहण करने हेतु विविध धातुओं के बर्तनों का प्रयोग किया जाता है । वास्तव में बर्तन किस धातु से बने हैं, इसका भी आध्यात्मिक स्तर पर लाभ तथा हानियां होती हैं । इस लेख में हम इसी के संर्दभ में ज्ञान प्राप्त करेंगे ।
प्रयोग किए जानेवाले बर्तनों को हम दो वर्गों में बांट सकते हैं :
अ. मिट्टी का, तांबा एवं पीतल इत्यादि धातु से बने बर्तन
आ. स्टील एवं एल्यूमिनियम इत्यादि धातु से बने बर्तन
अ. मिट्टी का, तांबा एवं पीतल इत्यादि धातु से बने बर्तन
मिट्टी प्राकृतिक होने के कारण उसमें ईश्वरीय घटक अधिक होते हैं । उसी प्रकार मिट्टीद्वारा उनका ग्रहण एवं प्रक्षेपण भी होता है; इसलिए मिट्टी से बने बर्तन में वातावरण में विद्यमान ईश्वरीय तरंगें ग्रहण होने के साथ-साथ घनीभूत भी होती हैं । इससे मिट्टी के बर्तन में रखे और पकाए गए अन्न में उस बर्तन में विद्यमान ईश्वरीय तत्त्व संक्रमित होता है । साथ ही ईश्वरीय तत्त्व यथावत बना रहता है । मिट्टी के बर्तन में विद्यमान दैवी घटक से उत्पन्न प्रतिकार-क्षमता के कारण अनिष्ट शक्तियोें की बाधा से अन्नकी रक्षा होती है । पीतल एवं तांबे में भी दैवी तत्त्व होने के कारण, अन्न पर उसका उत्तम प्रभाव पडता है । रसोई में प्रयोग में लाए जानेवाले मिट्टी, तांबा एवं पीतल जैसी धातुएं उच्चतम होने के कारण वे वातावरण से दैवी घटक ग्रहण करती हैं । इससे ईश्वरीय नाद की निर्मिति होती है तथा वातावरण एवं वास्तु शुद्ध रखने में सहायता मिलती है ।
आ. स्टील एवं एल्यूमिनियम इत्यादि धातु से बने बर्तन
स्टील एवं एल्यूमिनियम में दैवी तत्त्व न्यून (अल्प) होने तथा प्लास्टिक के बर्तन भी प्रक्रिया-निर्मित तथा उनमें प्राकृतिकता अल्प होने से उनमें रज-तम घटक होते हैं । ईश्वरीय तत्त्व ग्रहण करने की क्षमता भी अल्प होने के कारण इन बर्तनों में प्रतिकारक्षमता भी अल्प होती है; इसलिए अनिष्ट शक्तियां उनमें अपना स्थान बना लेती हैं । इससे उनमें संग्रहित अन्न-धान्य भी काली शक्ति से आवेशित होने अथवा उनपर काली शक्ति का आवरण आने की आशंका अधिक होती है । वर्तमान कलियुग में वातावरण दूषित रहता है । इसलिए स्टील एवं एल्यूमिनियम के बर्तनों में ग्रहण होनेवाले रजतमयुक्त घटक तथा बर्तनों पर होनेवाले रज-तमात्मक आघात के कारण वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियां कष्टदायक नाद की निर्मिति करती हैं । इससे वातावरण दूषित होता है तथा उस वातावरण से अनिष्ट शक्तियां शक्ति ग्रहण करती है ।
अन्न पकाने के लिए उपयोग किए जानेवाले बर्तनों की धातु
१. सत्त्व-रजप्रधान तांबा
अ. जल रखने हेतु तांबे के बर्तनों का ही उपयोग करें; क्योंकि जल सर्वसमावेशक स्तर पर कार्य करता है । इसलिए तांबे का सत्त्व-रजोगुण जल में संक्रमित होता है । तांबे के बर्तन में रखा जल सत्त्व-रजोगुणी बनने के कारण वह अल्प कालावधि में ब्रह्मांड से देवता के स्पंदन आकर्षित कर स्वयं में घनीभूत करता है ।
आ. ऐसे जल का उपयोग अन्न पकाने अथवा पीने हेतु करने से देह में विद्यमान दैवीगुण जागृत होते हैं ।
इ. अन्नसेवन करते समय इस जल की सहायता लेने से देह की रिक्तियां भी सत्त्वगुण से आवेशित होती हैं । इससे देह को अन्न पचाने की प्रक्रिया में अधिकाधिक आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होता है तथा देह की वास्तविक शुद्धि होती है ।
र्इ. तांबे के बर्तन में रखा पानी हमारे जीवन के लिए वरदान के सामान होता है। इस पानी से शरीर के विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं और धातु में रखे पानी को पीने से शरीर के तीनों दोषों जैसे वात, कफ और पित्त को संतुलित करने की क्षमता होती है।
उ. तांबे के बर्तन में पानी पीने से हमारी स्मरण शक्ति बढती है और हमारा मस्तिष्क भी तेज बनता है।
२. रजोगुणवर्धक पीतल
पीतल रजोगुणवर्धक है; इसलिए पीतल के बर्तन में अन्न पकाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है । इसलिए पूर्वकाल में रसोईघर में तथा पूजा के उपकरणों में भी तांबे-पीतल के बर्तनों का सर्वाधिक समावेश दिखाई देता था ।
३. रज-तमप्रधान स्टील
स्टील में कुछ मात्रा में लोहे जैसी अशुद्ध धातु होने के कारण इस प्रकार के बर्तन में पकाया अन्न देह में रज-तम का संक्रमण करता है । इसलिए अन्न पकाने हेतु इसके प्रयोग से देह को अन्न के पोषक घटकों का लाभ नहीं, हानि ही होती है तथा देह की प्रतिकारशक्ति घट जाती है । इससे देह पर वायुमंडल से विविध रोगों के आक्रमण होते हैं एवं ऐसे अन्न के कारण अनिष्ट शक्तियों को देह में हस्तक्षेप करने के लिए अवसर मिल जाता है ।
४. तमप्रधान मिश्रधातु के बर्तन
अन्य अनेक पद्धतियों से बर्तन बनाते समय उपयोग में लाई जानेवाली अन्य मिश्रधातुएं तमोगुणी होने के कारण वे भी अन्न पकाने की प्रक्रिया में अन्न में तमोगुण का संवर्धन करती हैं तथा जीव के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालकर उसकी आयु घटाती हैं ।
– पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळ
संदर्भ ग्रंथ : सनातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंका अध्यात्मशास्त्र’