स्नान के उपरांत अपने-अपने संप्रदाय के अनुसार मस्तक पर तिलक अथवा मुद्रा लगाएं, उदा. वैष्णवपंथी मस्तक पर खडा तिलक, जबकि शैवपंथी आडी रेखाएं अर्थात ‘त्रिपुंड्र’ लगाते हैं । धर्मशास्त्र बताता है कि मध्यमा का प्रयोग कर तिलक धारण करें ।
शाकाहार एवं सात्त्विक आहार का सेवन करें ! दूध, मक्खन, गाय का घी, छाछ, चावल, गेहूं, दालें, साग, फल जैसे अथवा इन से बने सात्त्विक अन्नपदार्थों का सेवन करें । पाचन तंत्र स्वस्थ रखने हेतु मिताहार करें ! भोजन करते समय पेट के दो भाग अन्न सेवन करें । तृतीय भाग जल हेतु एवं चतुर्थ भाग वायु हेतु रिक्त रखें ।
दिनचर्या प्रकृति के नियमों के अनुसार हो, तो उन कृत्यों से मानव को कष्ट नहीं; वरन् लाभ ही होता है । इसलिए प्रकृति के नियमों के अनुसार (धर्म द्वारा बताए अनुसार) आचरण करना आवश्यक है, उदा. प्रातः शीघ्र उठना, मुखमार्जन करना, दांत स्वच्छ करना, स्नान करना इत्यादि ।
झुककर कपडे धोने से नाभिचक्र निरंतर जागृत स्थिति में रहता है । वह देह की पंचप्राणात्मक वायु-वहन को पोषित करता है । इस मुद्रा के कारण तेजदायी उत्सर्जन हेतु पूरक सूर्य नाडी भी निरंतर जागृत अवस्था में रहती है ।
धर्मशास्त्रानुसार ब्राह्ममुहूर्त में उठें । ‘सूर्योदय से पूर्व के एक प्रहर में दो मुहूर्त होते हैं । उनमें से पहले मुहूर्त को ‘ब्राह्ममुहूर्त’ कहते हैं । नींद से जागते ही बिस्तर पर बैठकर श्रोत्राचमन, अर्थात दाहिने कान को हाथ लगाकर भगवान श्रीविष्णु के ‘ॐ श्री केशवाय नमः ।’ ... ऐसे २४ नामों का उच्चारण करें ।
स्नान करने से जीव के देह के सर्व ओर आए कष्टदायक शक्ति के आवरण एवं देह के रज-तम का उच्चाटन होता है तथा देह रोम-रोम में चैतन्य ग्रहण करने योग्य बनती है । ब्राह्ममुहूर्त पर किया गया स्नान ‘देवपरंपरा’ की श्रेणी में आता है । नदी एवं जलाशय में किया स्नान उत्तम है ।
लघुशंका तथा शौचविधि के उपरांत दुर्गंध दूर होनेतक मिट्टी से हाथ रगडकर धोएं । (मिट्टी से धोना संभव न हो, तो साबुन से धोएं ।) तदुपरांत पैर धोएं और कुल्ला करें । तदनंतर अंजुलि में जल लेकर चेहरे पर घुमाएं तथा आंखें धोएं । तदुपरांत आचमन एवं विष्णुस्मरण करें ।
सायंकाल संध्या करें तथा देवता के समक्ष दीप जलाएं । इसी समय आंगन में तुलसी के पास भी दीप जलाएं । देवता के सामने २४ घंटे दीप जलाए रखना चाहिए । सायंकाल दीपक की बाती पर आई कालिख निकालें ।
उंगलीके पोरसे मसूडोंपर दबाव पडता है, इससे मसूडोंपर मर्दन का परिणाम होता है और मसूडे बलवान होते हैं । नीमकी लकडी का ‘दातुन’ के रूपमें उपयोग करने पर दांत भली-भांति स्वच्छ होते हैं, साथ ही नीम के रस और चैतन्य का लाभ मसूडों और दांतों को होता है और वे शक्तिशाली बनते हैं ।’
कूडा निकालते समय कमरसे झुकनेसे नाभिचक्रपर दबाव पडनेसे पंचप्राण जागृत होते हैं । पूर्व दिशाकी ओरसे देवताओंकी सगुण तरंगोंका पृथ्वीपर आगमन होता है । अतः झाडू लगाते हुए पूर्वकी ओर जाना अयोग्य है । पूर्व दिशाके अतिरिक्त अन्य किसी भी दिशाकी ओर झाडू लगाते हुए जा सकते हैं ।