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कांटे-चम्मच की अपेक्षा हाथ से भोजन करने का महत्त्व

१. कांटे-चम्मच से भोजन करना
२. हाथ से भोजन करना
३. व्यक्तिपर होनेवाले सूक्ष्म-स्तरीय परिणाम

कांटे–चम्मच से भोजन करना यह कृत्रिमता का लक्षण है, जबकि हाथ से भोजन करना यह सहज भाव का एवं प्राकृतिकता का लक्षण है ।कृत्रिमता में सहजता न होने के कारण उसमें चैतन्य नहीं होता, जबकि प्राकृतिकता को प्रोत्साहित करने वाला कृत्य चैतन्यदायी होता है ।

१. कांटे-चम्मच से भोजन करना

अ. तामसिक स्पंदन आकृष्ट करने वाला कांटे का आकार

कांटों के तामसिक स्पंदन आकृष्ट करने वाले आकार की रिक्ति में उसकी थाली पर जो आघात होते हैं उनसे उत्सर्जित कष्टदायक तरंगें घनीभूत होती हैं । कांटों को हाथों से स्पर्श करने से ये तामसिक तरंगें जीव के शरीर में संक्रमित होती हैं, जिससे जीव की देह भी रज-तम से दूषित हो जाती है ।

आ. कांटे-चम्मच से भोजन करने पर अनिष्ट शक्तियों की पीडा होने के विविध कारण

१. कांटे-चम्मच से भोजन करना कृत्रिमता का लक्षण होने के कारण इस कृत्य में अनिष्ट शक्तियों का हस्तक्षेप बढता है ।

२. बाएं हाथ का उपयोग करने से सर्व प्रक्रिया ही रज-तमयुक्त बनना : कांटे चम्मच से भोजन करने में बाएं हाथ का भी उपयोग होता है, जो अशुद्ध क्रिया का प्रतीक है । इस कारण भोजन की प्रक्रिया ही रज-तमयुक्त बन जाती है ।

३. भोजन की थाली पर आघात : कांटे के सिरे पाताल की दिशा में अधोगामी टिकाकर उससे थाली पर थोडा आघात कर ही ग्रास तोडना पडता है । इस कारण पाताल से प्रक्षेपित कष्टदायक तरंगें सहजता से कांटे के सिरों द्वारा ग्रहण की जाती हैं । कांटे-चम्मच से भोजन करने पर, थाली पर उनका आघात होने से उस आघात से भी कष्टदायक तरंगें प्रक्षेपित करने वाला नाद उत्पन्न होता है । इस नाद की ओर वायुमंडल की अनिष्ट शक्तियां आकृष्ट होती हैं ।

४. भोज्य पदार्थ चीर कर ग्रहण करना : कांटे-चम्मच से ग्रास एकत्र करना संभव नहीं । उसे एक स्थान पर चम्मच से दबाए रख कांटे से चीर कर ही ग्रहण करना पडता है । इससे अन्न का विकृतिकरण होता है । उसका आकार कष्टदायक बन जाता है । इस विकृत आकार की ओर वायुमंडल की कष्टदायक तरंगें तुरंत ही घनीभूत होती हैं ।

५. कांटे से ही मुख में ग्रास डालना : यह ग्रास कांटे से ही मुख में डाला जाता है । इससे ऐसे विकृत अन्न के कष्टदायक स्पंदन, कांटे से वेग से बाहर निकलने वाली तमोगुणी तरंगों की सहायता से, मुखविवर में (मुख की रिक्ति में) छोडे जाते हैं ।

इ. कांटे-चम्मच से भोजन करने का परिणाम

ऐसा अन्न देह गुहा में (देह की रिक्ति में) जाने के पश्चात संपूर्ण देह को रज-तम से दूषित करता है । इस कारण, ऐसे अन्न के सेवन से जीव को कभी शांति की अनुभूति नहीं होती । इसलिए बहुत सारा भोजन करने के उपरांत भी उसे भोजन न करने समान लगता है ।

कांटे के आकार के कारण देह रज-तमयुक्त बन जाती है तथा कांटे-चम्मच से अन्न-सेवन की पद्धति भी अनुचित है । इससे सर्व प्रक्रिया ही रज-तमयुक्त बनती है एवं वह अनिष्ट शक्तियों की पीडा को आमंत्रित करती है ।

२. हाथ से भोजन करना

अ. सात्त्विक तरंगों का घनीकरण

हाथ से अन्न को एकत्र कर ग्रास बनाए जाने से अन्नकी कहीं भी अधिक चीर-फाड नहीं होती । इससे इस ग्रासमें सात्त्विक तरंगोंका घनीकरण होनेमें सहायता मिलती है ।

आ. आघातविरहित क्रिया

हाथसे भोजन करनेकी क्रिया आघातविरहित होती है । इसलिए वह वायुमंडलमें किसी प्रकारके कष्टदायक नादका निर्माण नहीं करती ।

इ. पंचतत्त्वोंका लाभ

१. देह गुहामें सात्त्विकताका संवर्धन होना : पांचों उंगलियोंके द्वारा ग्रास मुखमें डाला जाता है । इससे आवश्यकतानुसार पांचों उंगलियोंसे प्रक्षेपित पंचतत्त्वोंका लाभ जीवको मिलता है, जिससे उसकी देह गुहामें सात्त्विकताका संवर्धन होनेमें सहायता मिलती है एवं जीवको अल्प-सा भोजन करनेपर भी पूर्ण तृप्ति होती है ।

२. अन्न-सेवनकी प्रक्रिया पूर्णतः रज-तम-मुक्त बनना : हाथसे भोजन करनेपर हाथकी उंगलियां पंचतत्त्वोंकी तरंगें संयुक्तरूपसे प्रक्षेपित कर पातालसे प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनोंसे लडती हैं । इससे अन्न-सेवनकी प्रक्रिया रज-तमसे पूर्णतः मुक्त बनती है ।

ई. दाएं हाथसे ही ग्रास लेनेपर सूर्यनाडीके कारण कष्टदायक तरंगोंका विघटन होना

दाएं हाथसे ही ग्रास उठाकर मुखमें डालनेसे सूर्यनाडीकी सहायतासे तेजदायी स्पंदनोंका देहमें संचार होता है तथा ग्रास लेनेकी प्रक्रियामें उत्पन्न कष्टदायक तरंगोंका विघटन होता है । इससे यह बाधा दूर करना भी संभव होता है ।

उ. अन्न-सेवनसे पूर्व की गई प्रार्थना

अन्न-सेवनसे पूर्व की गई प्रार्थनासे व्यक्तिकी देह पहलेसे सात्त्विक हो जाती है । तदुपरांत अन्न-सेवनकी प्रक्रियामें हाथसे पंचतत्त्वोंकी तरंगें आवश्यकतानुसार प्रक्षेपित होकर, व्यक्तिके लिए उसका आध्यात्मिक स्तरपर पूरा लाभ उठाना संभव होता है ।’

ऊ. देवताका चैतन्य अधिकाधिक ग्रहण होना

हाथसे भोजन करनेसे देवता के प्रति जीवकी जागृत भावऊर्जाका प्रक्षेपण हाथद्वारा अन्नमें होनेके कारण देवता का तत्त्व ग्रहण करने एवं उसे धारण करनेकी क्षमता बढ जाती है । इस कारण ‘हाथसे भोजन करना’, देवताका चैतन्य अधिकाधिक ग्रहण करनेकी दृष्टिसे लाभदायक सिद्ध होता है ।

३. चम्मच, कांटा चम्मच अथवा छुरीकी सहायतासे अन्न ग्रहण करना तथा

दाहिने हाथकी पांच उंगलियोंसे अन्न ग्रहण करनेके व्यक्तिपर होनेवाले सूक्ष्म-स्तरीय परिणाम

‘निम्नलिखित सारणीमें दिए आंकडे प्रतिशतमें हैं ।

चम्मच, कांटे चम्मच अथवा छुरीकी सहायतासे अन्न ग्रहण करना दाहिने हाथकी पांचों उंगलियोंसे अन्न ग्रहण करना
१. चैतन्य २.५
२. शक्ति
३. प्राणशक्ति
४. अनिष्ट शक्ति

अ. कष्टदायक शक्ति

आ. मायावी शक्ति

 

२.५

 

५़. सात्त्विक / असात्त्विक होनेका कारण लोगोंने भोजनके लिए चम्मच अपनी इच्छानुसार बनाया, इसलिए वह सात्त्विक न होना दाहिने हाथकी पांचों उंगलियां एकत्र करनेसे
मुद्रा बनती है; इससे हाथमें अच्छे स्पंदन निर्मित होना
६. परिणाम

अ. शारीरिक

 

 

 

 

आ. मानसिक

 

इ. आध्यात्मिक

 

१. चम्मचसे भोजन ग्रहण करते
समय व्यक्तिके चक्र तीव्र
गतिसे कार्यरत होना

२. व्यक्ति आवश्यकतासे अधिक क्रियाशील बनना, साथ ही उसका पेट बिगडनेकी आशंका

व्यक्ति अशांत होकर उसे आंतरिक अस्वस्थता एवं चंचलता अनुभव होना

कष्टदायक शक्ति आकृष्ट होनेके कारण अन्न कष्टदायक शक्तियोंसे आवेशित होना, अन्नकी सात्त्विकता नष्ट होना
तथा ऐसा अन्न ग्रहण करनेसे व्यक्तिमें भी कष्टदायक स्पंदन निर्मित होना

१. कुंडलिनीशक्तिका प्रवाह व्यवस्थित कार्यरत होना

 

पांच उंगलियोंसे बननेवाली मुद्राके कारण देहमें प्राणशक्तिकी वृद्धि होना

 

मनमें कोई भी रुचि- अरुचि निर्मित न होना, व्यक्ति शांत व स्थिर रहना

आध्यात्मिक उपाय होना, साथ ही व्यक्तिको हाथकी मुद्राद्वारा पंचतत्त्वोंकी
शक्ति मिलना

अन्य सूत्र

अ. पांच उंगलियोंको एकत्र करनेपर बननेवाली मुद्रासे ईश्वरकी निर्गुण शक्ति उत्पन्न होकर कार्यरत होती है । यह निर्गुण शक्ति अन्न ग्रहण करते समय व्यक्तिकी देहमें प्रवाहित होती है । इस प्रक्रियाके परिणामस्वरूप व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक दृष्टिसे शांत और स्थिर रहता है ।’
– (पू.) श्रीमती योया वाले, अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२२.१०.२०१२)

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘भोजनके समय एवं उसके उपरांतके आचार