सामान्य मनुष्य को चैतन्य ग्रहण करने के उद्देश्य से सात्त्विक वस्त्र ही पहनने चाहिए । प्रस्तुत लेख में वस्त्रों के प्रकार तथा प्राकृतिक धागों से बने वस्त्रों का कृत्रिम धागे से बने वस्त्रों की तुलना में क्या महत्त्व है, इसका वर्णन किया गया है ।
१. अकृत्रिम वस्त्र
अ वल्कल
वृक्षों की छाल से बने वस्त्रों को वल्कल कहते हैं । रामायण में उल्लेख है कि जब प्रभु श्रीराम जानकी एवं लक्ष्मण के साथ राजमहल से वनवास जा रहे थे, तब उन्होंने राजवेष का परित्याग कर वल्कल धारण किए थे ।
आ. प्राकृतिक धागों से (सूती, रेशमी, खादी एवं ऊनी धागों से) बने वस्त्र – महत्त्व
‘कपास एवं रेशम प्राकृतिक हैं । अतः उनसे बने वस्त्रों का स्पर्श त्वचा के स्वास्थ्य हेतु पोषक होता है ।’
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‘सूत एवं रेशम प्राकृतिक हैं । इनसे बने वस्त्रों में ईश्वरीय तत्त्व आकृष्ट करने की क्षमता अधिक होती है । अतः ऐसे वस्त्र धारण करनेवालों को ईश्वरीय तत्त्व का लाभ अधिक होता है ।’
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कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों की तुलना में प्राकृतिक धागों से बने वस्त्रों में सात्त्विक तरंगें ग्रहण करने एवं उन्हें संजोए रखने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए उन पर अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण होने की आशंका न्यून रहती है । अतः प्राकृतिक धागों से बने वस्त्र अधिक समय तक शुद्ध एवं पवित्र रहते हैं ।
इ. सूती वस्त्र
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‘सूती वस्त्रों द्वारा त्वचा से पसीना तत्काल सोख लिया जाता है । इसलिए त्वचा चिपचिपी नहीं होती; अपितु स्वस्थ एवं कांतियुक्त रहती है ।’
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‘कपास के पौधों पर निर्मित प्राकृतिक रुई में ईश्वर की निर्गुण तरंगें आकृष्ट होती हैं । इस कारण सूती वस्त्र पहनने पर अच्छा लगता है एवं पहनने वाले की सात्त्विकता बढ जाती है ।’
ई. रेशमी वस्त्र
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‘रेशमी वस्त्रों के कोमल स्पर्श तथा घर्षण से त्वचा के अनावश्यक केश झड जाते हैं । रेशमी वस्त्रों के स्पर्श से त्वचा कोमल बनती है ।
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रेशमी धागों में देवताओं की सूक्ष्मतम तरंगें आकृष्ट होती हैं । अतः रेशमी वस्त्र पहननेवाले व्यक्ति के लिए देवताओं की तरंगें ग्रहण करना संभव होता है ।’ ‘रेशम का कीडा पेड का स्राव अवशोषित कर अपनी लार से धागा बनाता है । इससे धागा चमकीला एवं कोमल बनता है । रेशम के धागे में स्वर्गलोक के देवताओं के तत्त्व आकृष्ट होते हैं ।’
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समस्त वस्त्रों में रेशमी वस्त्र सात्त्विक होता है । इस सात्त्विकता के कारण ही, देवतापूजन, मंगल प्रसंग पर एवं पवित्र वस्त्रस्वरूप उसका उपयोग करते हैं ।
उ. विविध प्रकार के धुले एवं अनधुले कोरे (नए एवं अप्रयुक्त) और प्रयुक्त वस्त्रों की तुलना
‘मलिनता में अत्यधिक रज-तमात्मक तरंगें घनीभूत स्तर पर एकत्रित रहती हैं । मलिन वस्त्र धारण करने पर, इन रज-तमात्मक तरंगों के स्पर्श से स्थूलदेह तथा मनोदेह दूषित होती हैं । फलस्वरूप शरीर अनेक व्याधियों से एवं मन अनेक असात्त्विक विचारों से ग्रस्त होने की आशंका रहती है । यथासंभव मलिन वस्त्र न पहनें । देह में सत्त्वगुण के संवर्धन हेतु, धुले हुए वस्त्रों का स्पर्श सहायक है । इससे जीव संस्कारित होकर आध्यात्मिक ध्येय की ओर अग्रसर होता है । अतः सदा धुले हुए वस्त्र धारण करें ।’
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धुले हुए कोरे वस्त्र व्यक्तिगत स्पंदन एवं मलिनता से प्रभारित न होने के कारण उनके द्वारा सत्त्वगुण अधिक मात्रा में आकृष्ट किया जाता है । इसलिए प्रयुक्त रेशमी वस्त्र की तुलना में धुले हुए कोरे रेशमी वस्त्र पर काला आवरण आने की मात्रा न्यून रहती है ।
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यद्यपि वस्त्र सात्त्विक हो, फिर भी उसे न धोने से उस पर आए रज-तम के कारण उसके द्वारा सत्त्व-तरंगें ग्रहण करने की क्षमता न्यून रहती है । इसलिए इस वस्त्र पर होने वाले आक्रमणों की मात्रा धुले हुए कोरे अर्थात अप्रयुक्त रेशमी वस्त्र की तुलना में अधिक रहती है ।
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रेशमी वस्त्र की ओर आकर्षित सत्त्वतरंगों की मात्रा अधिक होने से आक्रमण की मात्रा सूती वस्त्र की तुलना में न्यून रहती है ।
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अनधुले वस्त्र में मलिनता की मात्रा अधिक होने से उसकी ओर आकर्षित सत्त्व-तरंगों का प्रवाह बाधित होकर उस पर आनेवाले काले आवरण की मात्रा बढती है ।
३. कृत्रिम धागों से (नाइलोन, टेरीलीन, रेयन एवं पॉलिएस्टर से) बने वस्त्र
अ. कृत्रिम धागों में विद्यमान रासायनिक पदार्थों के कारण ईश्वरीय तत्त्व का अल्प लाभ होना
‘टेरीलीन, पॉलिएस्टर, नाइलोन जैसे वस्त्रों में रासायनिक पदार्थ होते हैं । इसलिए उनमें ईश्वरीय चैतन्य ग्रहण करने की क्षमता अल्प होती है । अतः ईश्वरीय तत्त्व का लाभ भी अल्प मात्रा में होता है ।’
आ. कृत्रिम धागों से बने वस्त्र रज-तम गुणों को आकृष्ट करते हैं;
अतः उन पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की तीव्रता सर्वाधिक होना
‘कृत्रिम धागों की जडत्वाकर्षण शक्ति के (रज-तम आकृष्ट करनेवाली शक्तिके) प्रभाव के कारण पॉलिएस्टर, नाइलोन, रेयन जैसे धागों से बने वस्त्रों का उपयोग न करें । इन धागों से बने वस्त्रों पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की आशंका सर्वाधिक होती है । इसलिए ये वस्त्र पूजाविधि हेतु निषिद्ध माने जाते हैं ।’
संदर्भ पुस्तक : सनातन का सात्विक ग्रंथ ‘आध्यात्मिक दृष्टि से कपडे कैसे हों ?’