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गाय का दूध एवं उससे बने घी का महत्त्व

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गाय को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है; क्योंकि उसके दूध से घी समान सात्त्विक घटक की निर्मिति संभव है । इस लेख में हम इस गाय का दूध एवं उससे बने घी संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

१. गाय के दूध का सूक्ष्म-ज्ञान

अ. गाय के दूध का सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्र

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अ. सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्र में अच्छे स्पंदन : २ प्रतिशत’ – प.पू. डॉ. आठवले

आ. दूध के स्पंदनों की मात्रा : ‘चैतन्य ३ प्रतिशत, शक्ति ३ प्रतिशत, शांति (अनुभव होना) ३ प्रतिशत’

इ. सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्र में अच्छी शक्ति की मात्रा : ३ प्रतिशत

अ. गाय का दूध सात्त्विक एवं चैतन्य युक्त होना

प्रत्यक्ष ईश्वर ने मानव के लिए गाय की निर्मिति की है । हिंदू गाय को ‘देवता’के रूप में पूजते हैं । गाय सात्त्विक प्राणी है, इसलिए उसका दूध सात्त्विक एवं चैतन्य युक्त होता है ।

आ. गाय का दूध पीने से शारीरिक एवं आध्यात्मिक स्तरों पर शुद्धि होना

गाय का दूध पीनेवाले व्यक्तियों की वृत्ति सात्त्विक बनती है । साथ ही वे तनावरहित एवं शांत रहते हैं । दूध के शक्ति-स्पंदनों के कारण दूध पीनेवालों के शरीर, मन एवं बुद्धि में विद्यमान रज-तम नष्ट होते हैं तथा शारीरिक एवं आध्यात्मिक स्तरों पर उनकी शुद्धि होती है ।

अन्य सूत्र

१. कच्चा दूध : वातावरण से गाय की ओर रज-तम स्पंदन आकर्षित होते हैं; इसलिए कच्चे दूध में कुछ मात्रा में रज-तम होता है ।

२. दूध उबालना : दूध तपाते समय वह उबलता है । इससे कार्यरत तेजतत्त्व दूध में विद्यमान रज-तमको घटाता है ।

३. साधक द्वारा दूध तपाना : जब कोई साधक (साधना करनेवाला) व्यक्ति ‘दूध तपाने’की सेवा करता है, तो दूध में अधिक सात्त्विकता की निर्मिति होती है ।’

२. भैंस के दूध की अपेक्षा गाय का दूध पीना श्रेष्ठ क्यों है ?

कहा जाता है, भैंस स्वार्थी और गाय ममतामयी होती है ! भैंस स्वार्थी है । वह अन्न देखकर दूध देती है । उसके दूध पीने से भार (वजन) बढता है । जबकि गाय में वात्सल्य है । वह बछडे को देखकर दूध देती है । गाय के दूध से ऊंचाई बढती है और प्रेम भी बढता है ।

अ. गाय को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है; क्योंकि उसके दूध से घी समान सात्त्विक घटक की निर्मिति संभव है ।

आ. गाय का दूध ब्रह्मांड में विद्यमान देवताओं का सगुण स्रोत आकर्षित करनेवाला माध्यम है । दूध के माध्यम से देवताओं की प्रकट क्रियाशक्ति कार्य कर सकती है ।

३. दूध फाडकर बनाए गए पदार्थ क्यों नहीं खाने चाहिए ?

दूध पूर्णान्न है; क्योंकि दूध को सगुण चैतन्य का स्रोत माना गया है । जो घटक सत्त्वगुण के माध्यम से कार्य कर दूसरों के लिए कल्याणकारी सिद्ध होते हैं, उन्हें ‘सात्त्विक’ कहा जाता है । ऐसे सात्त्विक दूध को फाडना, अर्थात एक प्रकार से उसमें रज-तमयुक्त दूसरे घटकों का संवर्धन करना तथा उसकी सात्त्विकता के माध्यम से कार्य करनेवाले कार्यकारी घटक का नाश करना । इस प्रकार दूध फाडकर बनाए गए सत्त्वरहित पदार्थ खाना, शरीर के लिए हानिकारक होता है ।
– पूजनीय (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

४. देसी गाय के दूध के घी की सूक्ष्म-स्तरीय ज्ञान

अ. देसी गाय के दूध के घी की सूक्ष्म-स्तरीय विशेषताएं दर्शानेवाला चित्र

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अ. सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्र में अच्छे स्पंदन

  • १. ‘३ प्रतिशत’ – प.पू. डॉ. आठवले
    २. ‘३ प्रतिशत’ – (पू.) श्रीमती योया वाले

आ. सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्र में स्पंदनों की मात्रा : ‘देवतातत्त्व २.८ प्रतिशत, आनंद २ प्रतिशत, सगुण चैतन्य ३ प्रतिशत एवं तारक शक्ति १.५ प्रतिशत

इ. अन्य सूत्र

  • १. भारतीय देसी गाय के घी की गंध लेने पर मुझे सगुण तत्त्व की अनुभूति हुई ।
  • २. भारतीय देसी गाय का छायाचित्र देखकर किया गया सूक्ष्म-ज्ञान संबंधी परीक्षण : यह गाय अनेक युगों से है और अनेक देवताओं के सान्निध्य में रहने के कारण ये गाय सर्वाधिक सात्त्विक है । ईश्वर ने गाय को सात्त्विक बनाया है इसलिए उसमें अच्छे स्पंदन आकर्षित होते हैं । इस गाय में देवतातत्त्व है । इस गाय का दूध और गोबर सर्वाधिक सात्त्विक है ।
    – (पू.) श्रीमती योया वाले, अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा.

अा. जर्सी गायका घी, भैंसका घी और देसी (भारतीय) गायके घीकी सूक्ष्म विशेषताएं

‘नीचे दी गई सारणी के आंकडे प्रतिशत में हैं ।

जर्सी गाय का घी भैंस का घी (देसी) भारतीय देहाती गाय का घी
१. शक्ति

अ. मारक शक्ति

आ. तारक शक्ति

 

 

 

१.५

२. चैतन्य
३. आनंद
४. देवतातत्त्व २.८
५. अनिष्ट शक्ति

अ. कष्टप्रद शक्ति

आ. मायावी शक्ति

 

१.८

 

 

६. घी सात्त्विक अथवा असात्त्विक होने के विभिन्न कारण
अ. वातावरण का परिणाम ये गाय विदेश की, अर्थात अधिक रज-तमयुक्त स्थान की होती है, इसलिए उसका अल्प सात्त्विक होना भारत देश सात्त्विक होने के कारण भैंस में सात्त्विकता आकर्षित होना भारत के लोग पूजा एवं धार्मिक विधियां नियमित करते हैं, जिस कारण इस देश का वातावरण अधिक सात्त्विक होता है; अतः गाय में सात्त्विकता होना
आ. गाय अथवा भैंस में रहनेवाले स्पंदन कष्टप्रद शक्ति मारकता एवं स्त्री-शक्ति होना अपनी रक्षा के लिए लडने का गुण तथा चैतन्य होना ३३ कोटि देवताओं के तत्त्व होने के कारण वह सर्वाधिक सात्त्विक होना व उसमें अच्छी शक्ति आकर्षित करने की क्षमता होना
इ. लोगों का गाय अथवा भैंस के प्रति दृष्टिकोण आदर न करना, उसकी पूजा न होना तथा गोवध कर उसका मांस भक्षण करना देसी गाय की तुलना में लोगों के मन में भैंस के प्रति अल्प आदर होना भारत के लोग अभी भी गाय की पूजा करते हैं, जिससे उसमें एवं उसके घी में देवतातत्त्व आकर्षित होना
७. विशेषताएं

अ. स्वाद

आ. स्पंदन एवं परिणाम

 

मधुर नहीं

कष्टप्रद शक्ति एवं मायावी शक्ति के कारण हमारा उसकी ओर आकर्षित होना तथा वह घी मीठा लगना; साथ ही भारतीय देसी गाय के घी की अपेक्षा वह अच्छा लगना

 

थोडा उग्र

शक्ति होने के कारण देखने में अच्छा और गाढा अनुभव होना

 

मधुर

शुद्ध एवं सात्त्विक होने के कारण उसमें चैतन्य होना

अन्य सूत्र

१. गायों के स्वभाव की विविधता के कारण उनके घी में भी भिन्न प्रकार के स्पंदन होते हैं ।

२. (भारतीय) देसी गाय का घी सर्वाधिक सात्त्विक होता है । इसके सेवन से शरीर को कोई हानि नहीं होती ।’
– (पू.) श्रीमती योया वाले, अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा.

५. घी की शुद्धता

१. घी की शुद्धता उसके दानेदारपन से निर्धारित होती है ।

२. मक्खन के तेजस्वरूप का ब्रह्मांड के निर्गुण से संयोग होने लगता है । इससे घी बनते समय उसमें असंख्य सूक्ष्म वायुस्वरूप रिक्तियां उत्पन्न होती हैं ।

३. घी अच्छे से बनाया हो, तो ये रिक्तियां घी के प्रत्येक तेजाधारित कण को स्वतंत्र कार्यकारी अस्तित्व प्रदान करती हैं । इससे शुद्ध घी का दानेदारपन बढता है ।

४. यज्ञादि कर्म में घी जितना शुद्ध होगा उतनी ही यज्ञ की आहुतियों द्वारा भूमंडल पर अवतरित देवता के तत्त्व में विद्यमान चैतन्य की मात्रा अधिक होती है । इसलिए यज्ञादि कर्म में शुद्ध एवं अच्छे घटकों का प्रयोग करने का विशेष महत्त्व है ।

५. यज्ञ की आहुति हेतु निकृष्ट घटक का प्रयोग करने से उससे निर्मित आहुतिदर्शक कष्टदायक स्पंदनों से वायुमंडल में अशुद्धता उत्पन्न होती है । इससे बडी मात्रा में अनिष्ट शक्तियां यज्ञ की ओर आकर्षित होती हैं तथा यह एक विघातक कर्म बनता है, जिसका पाप लगता है ।’
– पूजनीय (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

६. बटर (रासायनिक प्रक्रियाद्वारा बनाए मक्खन)

अ. बटर की सूक्ष्मस्तरीय विशेषताएं

१. लोग रुचिपूर्वक खाएं इस उद्देश्य से रासायनिक प्रक्रियाद्वारा ‘बटर’ बनाया जाता है । इससे बटर में मायावी स्पंदन उत्पन्न होते हैं, जिससे सभी लोग उसकी ओर आकर्षित होते हैं और उसे खाने की इच्छा उनके मन में उत्पन्न होती है ।

२. ‘बटर’ में अल्प सात्त्विकता होने के कारण उसमें ईश्वर से प्रक्षेपित शक्ति अथवा चैतन्य आकर्षित नहीं होता ।

३. ‘बटर’ के अच्छे अथवा अनिष्ट स्पंदनों की मात्रा उसे बनाने हेतु उपयोग किए गए दूध, उसमें विद्यमान रासायनिक घटकों की मात्रा तथा ‘वह किस देश में बना है’ इत्यादि पर निर्भर करती है ।’
– पूजनीय (श्रीमती) योया वाले

७. चीज

अ. बाजार में उपलब्ध ‘चीज’ की सूक्ष्मगत विशेषताएं

        ‘चीज’ बनाने की पद्धति एक ही है; परंतु इसे गाढा करने और बिगड जाने से (खराब होने से) बचाने की प्रक्रिया में विविधता है ।

१. ‘चीज’ बकरी के अथवा जर्सी गाय के दूध से बनाया जाता है । जर्सी गाय के दूध से निर्मित चीज की अपेक्षा बकरी के दूध से निर्मित चीज में अधिक कष्टदायक शक्ति होती है ।

२. भारत में प्रमुखतः प्रक्रिया से निर्मित (प्रोसेस्ड) चीज का अधिक प्रयोग किया जाता है ।

३. ताजा (फ्रेश) चीज ३ से ७ दिन में ही बिगड जाता है, इसलिए उसका उपयोग शीघ्र करना पडता है ।
– पूजनीय (श्रीमती) योया वाले

८. बटर तथा घी में किसका उपयोग अच्छा है ?

अनेक देशों में रासायनिक प्रक्रिया से निर्मित मक्खन का (बटर का) अधिक प्रयोग किया जाता है । कुछ पदार्थों को तो घी अथवा तेल में न छौंककर ‘बटर’ में छौंका जाता है । । ‘बटर’ में पौष्टिकता तथा सात्त्विकता अल्प होती है, जबकि घी बनाने में रसायनों का प्रयोग न होने के कारण उसमें सात्त्विकता होती है और शरीर के लिए भी यह अच्छा होता है । अतः, रसोई में रासायनिक प्रक्रियावाले मक्खन की अपेक्षा घी का प्रयोग अधिक लाभदायक है । सर्वाधिक अच्छा है, भगवान के आंतरिक सान्निध्य में रहकर नामजप करते हुए घी बनाना । ऐसा करने से उसमें ईश्वरीय चैतन्य आ जाता है ।

संदर्भ ग्रंथ : सनातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंका अध्यात्मशास्त्र’