आजकल हम जो खाद्य पदार्थ खाते हैं उनमें से अधिकतर खाद्य पदार्थ हमारी जिह्वा को स्वादिष्ट नहीं लगते हैं जब तक उनमें शर्करा का उपयोग न करें । शर्करा हमारे भोजन का एक अविभाज्य अंग इस स्तर तक बन गई है कि उससे श्रेष्ठ समकक्ष उपयोग करने के विषय में सोचते भी नहीं हैं । कुछ सुपरमार्केट्स एक निश्चित राशि की खरीदारी पर निःशुल्क शर्करा बांटते हैं । हमें अपनी चाय, दूध, दही इत्यादि में शर्करा चाहिए । लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि यह शुभ्र (श्वेत) स्फटिक समान वस्तु हमें कितनी हानि पहुंचा रही है ?
१. शर्करा के परिशोधन के समय लगभग ६४ अन्न घटकों का नष्ट होना
शर्करा के परिशोधन के (रिफाइनिंग के) समय शर्करा के लगभग ६४ अन्न घटक नष्ट होते हैं । जीवसत्त्व (विटामिन्स, पौष्टिक तत्त्व, भोजन तत्त्व), खनिज पदार्थ (मिनरल्स), किण्वक (एंजाइम्स), अमीनो अम्ल (अमीनो एसिड), तंतु इत्यादि नष्ट होते हैं और शेष रह जाता 2है केवल पोषणरहित हानिकारक सुक्रोज !
२. शर्करा के विविध दुष्परिणाम
अ. शरीर के प्रतिकार तंत्र प्रभावित होना
हमारे शरीर को काम करने के लिए र्इंधन की अर्थात ग्लूकोज की आवश्यकता होती है । शरीर, हमारे खाए हुए अन्न का विविध एन्जाइम्स की सहायता से ग्लुकोज मे रूपांतर करता रहता है । प्राकृतिक रूप से फल, तरकारी, अनाज, मोटे अनाजों मे ग्लूकोज होता है । दुर्भाग्य से हम यह समझते हैं कि ‘हमारे लिए अत्यावश्यक ग्लूकोज अर्थात शुद्ध (रिफार्इंड) शर्करा है । शर्करा का क्या किया जाए, यह प्रश्न शरीर से संबंधित है । शर्करा हमारे शरीर मे एड्रीनेलिन की मात्रा को बढाती है । एड्रीनेलिन के कारण हमारा शरीर युद्ध सदृश परिस्थिति में रहता है । शरीर मे स्निग्धाम्ल और कॉर्टिसोन की मात्रा बढती है । कॉर्टिसोन हमारे प्रतिकार तंत्र को प्रभावित करता है ।
आ. शर्करा से शरीर मे कैल्शियम और फॉस्फोरस का संतुलन बिगडना
गन्ने से शर्करा बनाते समय शर्करा को शुभ्र करने के लिए नैनोफिल्टरेशन तंत्र का उपयोग किया जाता है । इस कारण हमारे शरीर के गुणसूत्रों पर (हार्मोन्स पर) दुष्परिणाम होता है । शर्करा के पाचन और निकास के लिए शरीर को अति श्रम करना पडता है । इससे हमारे शरीर मे कैल्शियम और फॉस्फोरस का संतुलन बिगडता है ।
इ. शर्करा के कारण होनेवाले अन्य दुष्परिणाम
-
अतिरिक्त शर्करा शरीर में मेद (चरबी) बढाती है । यह मेद शरीर के निष्क्रिय भागों पर चरबी एकत्र होती है, उदा. पेट, जंघा, किडनी, हृदय पर ।
-
यह रक्तचाप और स्निग्धाम्ल बढाती है ।
-
शरीर की सहन शक्ति और प्रतिकार शक्ति घट जाती है । इसलिए किसी भी आक्रमण का सामना करते समय, उदा. ठंड (सर्दी), उष्णता (गरमी), मच्छर आदि का सामना करते समय शरीर थक जाता है ।
-
शर्करा के पाचन मे शक्ति व्यय होती है तथा शर्करा से हुए दुष्परिणाम दूर करने के लिए शरीर को कष्ट होता है ।
-
शर्करा के अति सेवन से मस्तिष्क का कार्य प्रभावित होता है ।
-
शर्करा के अति सेवन से सुस्ती आती है । इसी प्रकार हमारी गणन शक्ति (हिसाब करने की क्षमता) घटती है और एकाग्रता में बाधा आती है ।
-
दृष्टि क्षीण होती है ।
-
बुढापा शीघ्र आता है ।
-
रक्त में ‘ई’ जीवसत्त्व घटता है ।
-
बडी आंत का कर्क रोग (कैन्सर) हो सकता है ।
-
अतिरिक्त शर्करा, प्रोस्टेट कर्क रोग का कारण बन सकता है ।
-
महिलाओं मे शर्करा से प्रीमेन्स्ट्रुअल सिंड्रोम (माहवारी से पहले महिलाओं की मनोदशा मे अस्थिरता) बढता है ।
ई. शर्करा के विषय में विशेषज्ञों के मत और निष्कर्ष
-
शर्करायुक्त पदार्थ और पेय मद्य से अधिक अहितकर होना : ‘गेहूं का मैदा और उससे बने पाव, केक आदि शर्करायुक्त पदार्थ और पेय, मद्य से भी अधिक अहितकारी होते है। शर्करा अधिक मिलाकर बनाए गए पदार्थ चूहों को खिलाए गए, तो उनमें नेत्र-विकार उत्पन्न हुए ।’
-
‘शर्करा की बढती खपत के साथ ही मधुमेह (डाइबिटिस) और कर्करोग के (कैन्सर के) रोगियों की संख्या बढ रही है ।’
-
शर्करा खाने से दांत सडना : ‘शर्करा रूपी विष खाने के कारण मुंह में स्थित एक विशिष्ट प्रकार के अतिसूक्ष्म कीटाणुओं के लिए पोषक वातावरण निर्मित होता है । इससे उनकी शक्ति कार्यरत होकर ‘लैक्टिक अम्ल’ की उत्पत्ति होती है । इस अम्ल के कारण दांतों का सुरक्षा-कवच (टूथ इनामेल) नष्ट होकर दांत सड जाते हैं ।
-
पहाडी क्षेत्र मे रहनेवाले वनवासियो के आहार में शर्करा नहीं होती । वे प्राकृतिक आहार लेते हैं । इस कारण वे तन और मन से निरोगी होते हैं ।
-
शर्करा, अर्थात मोहक विषकन्या ।
३. शर्करा का सर्वोत्तम पर्याय है गुड !
शर्करा का सर्वोत्तम और सहजता से उपलब्ध होनेवाला पर्याय, अर्थात रसायन विरहित ‘गुड’ है । इसीप्रकार मधु, राब (खांड), गन्ने का रस, खजूर भी अच्छे पर्याय हो सकते हैं ।
अ. गुड से होनेवाले लाभ
-
बच्चों को उचित मात्रा में गुड और मूंगफली देने पर उनका शारीरिक विकास तेजी से होकर अस्थियों का सशक्त बनना : गुड मे वैâल्शियम होने के कारण छोटे बच्चों को उचित मात्रा में गुड खिलाना लाभदायक होता है । आवश्यकता से अधिक गुड खाने पर कृमि (पेट में कीडे) होने की आशंका रहती है । उचित मात्रा मे बच्चों को गुड और मूंगफली देने से उनका शारीरिक विकास तेजी से होता है । अस्थियां और शरीर सशक्त बनते हैं ।
-
महिलाओं द्वारा भुने हुए चनों के साथ गुड खाने पर उनमें लोह तत्त्व की न्यूनता का दूर होना : महिलाओं मे साधारणतः लोहतत्त्व की (आयरन की) न्यूनता पाई जाती है । माहवारी के नैसर्गिक चक्र के कारण भी यह न्यूनता होती है; परंतु महिलाएं भुने हुए चनों के साथ गुड खाएं, तो इस कमी की पूर्ति हो जाती है और रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ जाने से दुर्बलता भी नहीं आती ।
-
हृदयविकार के रोगियों के लिए ‘गुड’ उत्तम औषधि होना और हीमोग्लोबिन की मात्रा गुड के सेवन से पुनः उचित मात्रा में होना : गुड में जीवसत्त्व ‘ब’ भरपूर होता है । इस कारण मानसिक स्वास्थ्य के लिए गुड का सेवन लाभकारी होता है । हृदय रोगियों के लिए पोटैशियम लाभदायक होता है । यह गुड से प्राकृतिक रूप से मिलता है । अर्थात, हृदय रोगियों के लिए भी ‘गुड’ उत्तम औषधि है । रक्ताल्पता (एनीमिया) तथा अधिक रक्तदाब के कारण शरीर के रक्त में घटे हुए हीमोग्लोबिन की मात्रा गुड के सेवन से पुनः बढ जाती है ।
४ . रसायनों का प्रयोग कर बनाए गए शर्करा जैसे कृत्रिम खाद्य
पदार्थों से जीवन शक्ति का ह्रास होना; किंतु प्राकृतिक मधु से जीवन शक्ति बढना
किसी साधारण व्यक्ति की जीवन शक्ति यंत्र द्वारा ज्ञात कर ले । तत्पश्चात उसके मुंह मे शर्करा डाले और पुनः जीवन शक्ति जांचकर देखें । तब ध्यान में आएगा कि वह क्षीण हो गई है । इसके पश्चात उसके मुंह में मधु डालें और जीवन शक्ति जांचें । तब उसमें वृद्धि दिखाई देगी । इसप्रकार से (इस लाल भाग को निकाल सकते हैं, क्योंकि जीवन शक्ति और उसे नापने का यंत्र यहां स्पष्ट नहीं हो रहा है । – अरुणा)
डॉ. डायमंड ने प्रयोगों के द्वारा सिद्ध किया कि शर्करा जैसे कृत्रिम पदार्थों के कारण जीवन शक्ति का ह्रास होता है और मधु जैसे प्राकृतिक पदार्थों तथा फल, तरकारी आदि के सेवन से जीवन शक्ति का विकास होता है । विविध प्रतिष्ठानों द्वारा (कंपनियों द्वारा) निर्मित और प्रयोगशालाओं द्वारा मान्यता प्राप्त बंद बोतलों का मधु जीवन शक्ति के लिए लाभदायक नहीं होता । इसके विपरीत, प्राकृतिक मधु लाभदायक होता है । शर्करा के कारखानों में गन्ने के रस को शुद्ध करने के लिए जिन रसायनों का प्रयोग किया जाता है, वे रसायन हानिकारक होते हैं ।
संदर्भ पुस्तक : सनातन का सात्त्विक ग्रंथ, ‘आधुनिक आहार – हानि,’ भाग २