हम में से अधिकांश लोग कृत्रिम शीत पेय पसंद करते हैं । यहां तक की यदि हमारे बच्चे दूध और फलों के रस के स्थान पर कृत्रिम शीत पेय पसंद करते हैं, तो हमें कोई आपत्ति नहीं होती । कृत्रिम शीत पेय तामसिक हैं । जब कोई व्यक्ति कृत्रिम शीत पेय पीता है तो उसके शरीर की संपूर्ण कोशिकाओं में तम फैल कर अनिष्ट शक्ति के स्थान बन जाते हैं । शरीर तमतत्त्व की लहरियों से ग्रस्त हो जाता है और उसे अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होता है ।
अ. कृत्रिम शीतपेयों का ‘पी एच्’ सामान्यतः ३.४ होता है । इस कारण दांत और अस्थियां दुर्बल बनती हैं । मानवीय आयुष्य के लगभग ३० वर्ष पूर्ण होने के उपरांत हमारे शरीर में अस्थियों की निर्माण-प्रक्रिया थम जाती है । उसके उपरांत खाद्यपदार्थों में विद्यमान अम्लता के कारण अस्थियां दुर्बल होने लगती हैं ।
आ. स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए, तो इन पेय पदार्थों में जीवनसत्त्व अथवा खनिज तत्त्वों का अंशमात्र भी नहीं होता । इन में शर्करा, कार्बोलिक अम्ल तथा अन्य रसायन ही होते हैं । हमारे शरीर का सामान्य तापमान ३७ अंश (डिग्री) तापांश (सेल्सिअस) होता है, तो किसी शीत पेय पदार्थ का तापमान इसकी अपेक्षा अत्यल्प, अर्थात शून्य अंश (डिग्री) तापांश (सेल्सियस) तक भी होता है । शरीर के तापमान और पेय पदार्थों के तापमान में यह विषमता, व्यक्ति की पाचन शक्ति पर विपरीत प्रभाव डालती है । परिणामस्वरूप व्यक्ति द्वारा खाया हुआ भोजन नहीं पचता । इससे वायु और दुर्गंध उत्पन्न होकर दांतों में पैâलती है, जो अनेक रोगों को जन्म देती है ।
इ. ‘एक प्रयोग में एक टूटे हुए दांत को एक शीत पेय की बोतल में डालकर उसका मुंह बंद कर दिया गया था । १० दिन पश्चात इस दांत को बाहर निकालने के लिए जब बोतल का निरीक्षण किया गया तो वहां दांत था ही नहीं; अर्थात, वह दांत शीतपेय में घुल गया था । हानिकारक पेय पदार्थों के दुष्प्रभाव से जब इतना कठोर दांत भी घुलकर नष्ट हो जाता है, तो ये शीतपेय पचने के लिए जहां अनेक घंटे पडे रहते हैं, उस स्थान की कोमल आंतों की क्या स्थिति होती होगी ?’
ई. ‘दिन में शीतपेय की ४-५ बोतल पीनेवाले बच्चों में से १५ प्रतिशत बालकों का स्वभाव हठी और आक्रामक बनता है !’
कृत्रिम शीतपेय की सूक्ष्म विशेषताएं और परिणाम
१. प्रधान गुण : तम
२. पंचतत्त्वों का स्तर : पृथ्वी
३. कार्य : तमोगुण के देह में संक्रमण के कारण कोशिकाओं में स्थान-स्थान पर पृथ्वीतत्त्व के आधार से घनीभूत काली शक्ति के स्थान निर्मित करना
४. परिणाम : तमोगुणी तरंगों के कारण शरीर कृश होकर प्राणशक्ति घटकर अनिष्ट शक्तियों की पीडा होना
५. अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण होना : अल्पावधि में अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का सामना अधिक करना पडना
कृत्रिम शीतपेय के सेवन का सूक्ष्म-स्तरीय प्रभाव
अ. इस शीतपेय का उत्पादन कलियुग में स्वार्थी व्यक्तियों ने अपने लाभ के लिए किया है ।
आ. यह शीतपेय कृत्रिम एवं तामसिक है तथा इस पेय में विद्यमान कष्टदायक एवं मायावी शक्ति के कारण लोग इसकी ओर आकृष्ट होते हैं ।
इ. इसमें उत्पन्न होनेवाले बुलबुले मायावी आकाश-तत्त्व एवं मायावी वायुतत्त्व उत्पन्न करते हैं । इसलिए, इस पेय से वातावरण में काली (कष्टदायक) शक्ति धुंधले रूप में प्रक्षेपित होती है ।
र्इ. व्यक्ति पर परिणाम
शारीरिक : यह उत्तेजक पेय होने के कारण इससे व्यक्तिका शारीरिक दृष्टि से क्रियाशील बनना
मानसिक : मन उत्तेजित होना एवं इस पेय की मायावी शक्ति के कारण वह स्वादिष्ट लगना तथा पुनः-पुनः पीने की इच्छा होना
संदर्भ पुस्तक : सनातन का सात्त्विक ग्रंथ, ‘आधुनिक आहार – हानि,’ भाग २