आज विश्व में बहुत से लोग ऐसे हैं जो चाय और कॉफी पर ही जीवित हैं । कुछ व्यक्ति तो चरम सीमा के बाहर इसप्रकार के पेय पदार्थों को दिन में कई बार भी पीते हैं । आजकल चाय के विविध प्रकार उपलब्ध हैं जैसे कि दूध की चाय, काली चाय, हरी चाय इत्यादि, और इनको पीने की अधिकता से संस्कृति जैसी बनती जा रही है । क्योंकि लोग चाय और कॉफी को अपने प्रतिदिन के आहार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानने लगे हैं तो यह आवश्यक है कि हम उनके हानिकारक प्रभाव को भली प्रकार समझ लें । आइए इस लेख द्वारा और अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं ।
चाय और कॉफी में दस प्रकार के विष होते हैं ।
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टैनिन’ नामक विष १८ प्रतिशत होता है । यह पेट में छिद्र और वायु उत्पन्न करता है ।
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‘थिन’ नामक विष ३ प्रतिशत होता है । इसके कारण मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं तथा यह विष फेफडों और मस्तिष्क में जड़ता की निर्मिति करता है ।
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‘कैफिन’ नामक विष २.७५ प्रतिशत होता है । यह गुरदों को (किडनियों को) दुर्बल बनाता है ।
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‘वॉलाटाइल’ नामक विष हानि आंतों को पहुंचाता है ।
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‘कार्बोनिक अम्ल’ से आम्लपित्त (एसिडिटी) बढता है ।
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‘पैमिन’ पाचनशक्ति को दुर्बल करता है ।
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‘एरोमोलीक’ का आंतो पर हानिकारक प्रभाव पडता है ।
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‘सायनोजन’ अनिद्रा और पक्षाघात जैसे भयंकर रोग उत्पन्न करता है ।
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‘ऑक्सेलिक अम्ल’ शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक होता है ।
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‘स्टिनॉयल’ रक्तविकार और नपुंसकता उत्पन्न करता है । इसीलिए चाय अथवा कॉफी का सेवन कभी नहीं करना चाहिए ।
१. चाय के माध्यम से शरीर में रज-तम बढाने का आसुरी शक्तियों का प्रयास !
सात्त्विक पदार्थ स्वादिष्ट होता है तथा वह थोडा-सा खाने पर भी तृप्ति प्रदान करता है, परंतु राजसिक एवं तामसिक पदार्थ इच्छा जागृत करते हैं तथा तत्संबंधी विचार मन में पुनः-पुनः आते हैं । ऐसा क्यों ? ‘चाय सर्वप्रिय पेय है । कुछ को तो चाय के बिना अच्छा ही नहीं लगता । ऐसो को भोजन न मिले, तो भी उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती; किंतु चाय उन्हे चाहिए ही । कुछ लोगों को उनके निश्चित समय पर चाय आवश्यक होती है । चाय न मिलने पर उन्हें अस्वस्थता अनुभव होती है और चाय मिल जाने पर उनका काम पुनः आरंभ हो जाता है, उन्हें पुनः सूझने लगता है । अति चायपान से हानि अनुभव होने पर भी, चाय के बिना नहीं रहा जाता । चायपान, किसी व्यसन के समान नहीं छूटता । किसी वस्तु पर इतना निर्भर हो जाना, यह असामान्य बात है । ऐसा भी नहीं कि इस पेय में कोई विशेष स्वाद है । कोई स्वादिष्ट पदार्थ भी हम सीमित मात्रा में ही खाते है और हम संतुष्ट रहते है । इसलिए कि हिंदू पाककला परिपूर्ण है । हिंदू पद्धति से बनाया गया सात्त्विक पदार्थ स्वादिष्ट होता है तथा थोडा-सा खाने पर भी वह तृप्त कर देता है । पुनः उस विषय की मन में इच्छा नहीं होती । इसके विपरीत, राजसिक और तामसिक पदार्थ इच्छा जगा.ने वाले होते है तथा उस पदार्थ के विचार मन मे पुनः-पुनः आते है । इसी में कोई गूढ छिपा है; परंतु बाह्यतः हमारी बुद्धि उसे समझ नहीं पाती ।
‘चाय’ अच्छा पेय न होते हुए भी अन्य अप्रतिम पेयों की तुलना में, चाय में कष्टदायक शक्ति के आश्रय से रुचि उत्पन्न कर तथा उसका व्यसन लगाकर चाय संस्कृति की निर्मिति होना : मांत्रिको की योजना कैसी होती है, इसका चाय एक उत्तम उदाहरण है । यह पेय भारतीय नहीं, अपितु कष्टदायक शक्तियो का भंडार लेकर आए हुए अंग्रेजो ने चाय संस्कृति लाकर उसका यहां बीजारोपण किया और साथ ही हमे इसकी भनक तक नहीं लगने देते हुए उसका प्रसार किया । यह पेय हानिकारक होते हुए भी अन्य अप्रतिम पेयो की तुलना में इसमे अधिक रुचि उत्पन्न करने के लिए कष्टदायक शक्ति के आश्रय से जनमानस में उसकी छाप बनाई गई । इसके पश्चात हमें उसकी लत लगाई गई और चाय संस्कृति का उदय हुआ ।
कालानुसार धर्म-अधर्म के सूक्ष्म-युद्ध से हिंदू संस्कृति का लोप आरंभ होना : कालानुसार धर्म-अधर्म के सूक्ष्म-युद्ध का यह एक भाग है । अनिष्ट शक्तिया प्रत्येक कृत्य से सत्त्व न्यून कर अपनी, अर्थात आसुरी शक्ति बढाने का यत्न करती रहती है । वे यह कार्य किस प्रकार से करती है, यह सर्वसाधारण की समझ के परे है । इस प्रकार से भी उन्होंने हमारी हिंदू संस्कृति को विलुप्त करना आरंभ किया है ।
परिस्थिति में परिवर्तन करना कठिन होने पर भी ईश्वरीय कृपा और अधिष्ठान से परिवर्तन संभव : अनिष्ट शक्तियां किसी कार्य का नियोजन कितना विचारपूर्वक करती हैं, यह उपर्युक्त उदाहरण से ध्यान में आता है । उसका प्रभाव इतना व्यापक होता है कि परिस्थिति को सहजता से परिवर्तित कर पाना कठिन होता है । यह परिवर्तन ईश्वरीय कृपा से और ईश्वरीय अधिष्ठान से ही संभव है ।
२. चाय पीने के संदर्भ में सूक्ष्म संबंधी प्रयोग
चाय पीने के संदर्भ में दो मास प्रयोग किया और स्थूल एवं सूक्ष्म स्तर पर उसके क्या परिणाम होते हैं, इसका निरीक्षण किया । उस समय ज्ञात हुए सूत्र आगे दे रही हूं ।
१. चाय लेने पर मुझ में मांत्रिक का प्रकटीकरण बढा हुआ प्रतीत हुआ ।
२. जिन दिनों मैं चाय लेती थी, उन दिनों मेरे ध्यान में आया कि मेरे पेट की संवेदनशीलता घटकर वह संवेदनरहित (सुन्न) हो गया है । इससे भूख नहीं लगती अथवा भूख घट जाती है ।
मैंने दो दिन चाय नहीं पी । उस समय शरीर में हलकापन अनुभव हुआ । तब समझ में आया कि चाय के कारण शरीर में जडता आती है ।
– श्रीमती रजनी, गोवा
३. कॉफी, चाय एवं दूध इन पेयों के सेवन से व्यक्ति पर होनेवाले सूक्ष्मस्तरीय प्रभाव
अ. कॉफी
संभावित परिणाम
अ. शारीरिक
१. व्यक्ति अति सक्रिय होना
२. शरीर में मायावी शीतलता उत्पन्न होना
आ. मानसिक
कॉफी में मायावी शक्ति होने से व्यक्ति का उसकी ओर आकर्षित होना तथा उसे पुनः-पुनः कॉफी पीने की इच्छा होना
इ. अन्य सूत्र
पाश्चात्य (पश्चिमी) देशों में पूजा अथवा कोई धार्मिक विधियां न किए जाने के कारण वहां के वातावरण में रज–तम की प्रबलता अधिक होती है । कॉफी का उत्पादन मुख्यतः रज-तम की अधिकता वाले देशों में होता है । इसलिए कॉफी के बीजों में ही इस वातावरण के रज-तमात्मक स्पंदन अर्थात कष्टदायक शक्ति आकृष्ट होती हैं ।
आ. चाय
संभावित परिणाम
अ. शारीरिक
१. पाचनशक्ति पर दुष्परिणाम होना
२. मायावी उत्साह प्रतीत होकर व्यक्ति का आवश्यकता से अधिक क्रियाशील बनना
आ. मानसिक
व्यक्ति मानसिक तनाव में रहना
इ. अन्य सूत्र
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चाय के पौधे में गुण एवं कुछ मात्रा में कष्टदायक शक्ति होती है ।
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चाय के हरे पत्ते सुखाते समय उसमें निहित शक्ति नष्ट हो जाती है । इसलिए उनकी सात्त्विकता नष्ट हो जाती है और पत्तों में वातावरण की कष्टदायक शक्ति आकृष्ट होती है ।
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चाय के क्वाथ में (काढे में) दूध मिलाने के पश्चात दूध की सात्त्विकता भी नष्ट हो जाती है ।
संदर्भ पुस्तक : सनातन का सात्त्विक ग्रंथ, ‘आधुनिक आहार – हानि,’ भाग २