वर्तमान संघर्षपूर्ण जीवनपद्धति, पारिवारिक अथवा कार्यालयमें तनाव आदिके कारण अधिकांश लोगोंको शांत नींद लगना कठिन हो गया है । शांत नींद न लगे, तो अगले दिन दिनचर्यापर अनिष्ट परिणाम होता है । इस लेख में देखते है, नींद न आने के कारण, नींद न लगने के परिणाम एवं नींद न आने पर करने योग्य उपाय ।
१. नींद न आने के कारण
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शरीर में कहीं भी शूल (लोहे का कांटा) अथवा वेदना हो तो
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उलटी, अतिसार (दस्त) इ. रोगों के कारण शरीर में पानी की मात्रा अल्प होने पर
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अति व्यायाम अथवा अति परिश्रम के कारण पैर में ऐंठन आना
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औषधियों के दुष्परिणाम : विरेचन, वमन अथवा तीव्र औषधि नाक में डालना
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उपवास (भूख लगना)
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मच्छर, चींटियां, खटमल इत्यादि के काटने पर
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शय्या सुखदायी न होना
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सिकुडकर अथवा विचित्र अवस्था में सोना
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अति धूम्रपान करना
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कोई कार्य अपूर्ण रह जाने के कारण उस विचार से मन अस्वस्थ होना
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अत्यावश्यक अथवा महत्त्वपूर्ण काम पूर्ण न होने पर
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दुःख, क्रोध एवं भय
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आनेवाले संकट का पूर्वाभास होना
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दूसरों को दुःख पहुंचाने अथवा धोखा देने से
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शरीर से अधिक मात्रा में रक्त निकलने के कारण
उपरोक्त कारणों से निद्रा न आने पर मनुष्य अस्वस्थ हो जाता है और निद्रा की औषधि भी लेता है ।
सत्त्व-गुणों का परमोत्कर्ष होने से मन के तमो-गुण की मात्रा घटती है । इस कारण अल्प निद्रा भी पर्याप्त होती है ।
२. नींद न लगने के परिणाम
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जम्हाइयां एवं आलस आना
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सिर में वेदना होना, आंखें एवं शरीर भारी होना
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अजीर्ण अथवा अपचन होना
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पढने में ध्यान न लगना
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शीघ्र थकान प्रतीत होना
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शरीर में वात एवं पित्त की वृद्धि होना, अंग टूटना
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भ्रम होना एवं ग्लानि आना
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वातवृद्धि के कारण होनेवाले विकार
३. नींद न आने पर करने योग्य उपाय
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सिर, मुख एवं रीढ का तेल से मर्दन (मालिश) करना
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कानों में तेल की बूंदें डालना
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माथे पर चंदन का लेप लगाना
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शरीर का मर्दन करना एवं अंग दबाना
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पित्त प्रकृति के मनुष्य को ठंडे तथा कफ अथवा वात प्रकृति वालों को उष्ण पानी से स्नान करना चाहिए ।
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आहार – मीठे अन्न पदार्थ, घी, भैंस का दूध, अंगूर, गन्ने का रस, अनार का रस, दही-भात, शीत पेय
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स्वच्छ, सुंदर एवं कोमल (मुलायम) शय्या, सुगंधित द्रव्यों की गंध
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शांत, ध्वनि और मंद प्रकाश वाला एवं उत्तेजित न करनेवाला वातावरण
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औषधि – बिजोरे का चूर्ण मधु के साथ चाटना ।
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रात्रि दूरदर्शन पर उत्तेजक कार्यक्रम न देखें; मन को शांत करनेवाले भक्ति गीत धीमे स्वर में सुनें ।
४. कब सोना चाहिए तथा कब नहीं सोना चाहिए ?
रात्रि जीव के क्रियमाण कर्म के कारण प्राप्त फल की मात्रा न्यूनतम हो जाती है, इसलिए शीघ्र सोना उपयुक्त
सूर्यास्त से काल गतिचक्र विपरीत दिशा में गतिमान होना आरंभ होता है । इस कारण जीव के क्रियमाण कर्म के कारण प्राप्त फल की मात्रा भी अल्प होनी आरंभ होती है । रात्रि का प्रथम प्रहर समाप्त होकर द्वितीय प्रहर आरंभ होने पर जीवद्वारा किए जा रहे आध्यात्मिक कर्म का फल मिलना भी घटने लगता है और तृतीय प्रहर से जीवद्वारा किए जा रहे सर्व कर्मों का फल न्यूनतम होता है । रात्रि के अंतिम प्रहर का आरंभ होने पर पुनः जीव को क्रियमाण कर्म का फल मिलना आरंभ होता है; इसलिए द्रष्टा ऋषि-मुनियों ने विश्राम के लिए रात्रि का चयन किया । इससे अधिक क्रियमाण वाले काल में साधना सहजता से करना सरल होता है ।
प्रातःकाल शय्या पर न लेटे रहें
प्रातःकाल लेटे रहना अर्थात सवेरे की सात्त्विक तरंगों के संक्रमण का लाभ न उठाकर एवं नामजप न कर, निद्रा के अधीन होना । यह पाप कर्म ही माना गया है ।
संदर्भ ग्रंथ : सनातन का ग्रंथ, ‘शांत निद्रा के लिए क्या करें ?’