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अलंकार

केश में धारण करने योग्य अलंकार

जूडे एवं चोटी में धारण किए जानेवाले अलंकार : स्वर्ण के फूल, स्वर्ण के फूलों का गजरा इत्यादि अलंकार जूडे एवं चोटी में धारण किए जाते हैं । जूडे एवं चोटी में अलंकार धारण करने से केश के सर्व ओर चैतन्य का वलय निर्मित होता है ।

नाक में धारण किए जाने वाले अलंकार : लौंग एवं नथ

अलंकार का आकार एवं उसकी कलाकृति के साथ ही अलंकार धारण करनेवाला व्यक्ति सात्त्विक हो, तो अलंकार से सात्त्विकता एवं चैतन्य किसप्रकार प्रक्षेपित होता है, तथा नाक में पहनने वाले अलंकार से पहनने वाली स्त्री को किस प्रकार चैतन्य प्राप्त होता है एवंं अलंकार से प्रक्षेपित चैतन्य का क्या प्रभाव होता है, यह इस लेख में देखेंगे ।

कान में धारण किए जाने वाले अलंकार

अलंकारों के कारण स्त्री का लावण्य अधिक निखरता है । विविध प्रकार के अलंकार धारण करने का उद्देश्य केवल सौंदर्य वृद्धि नहीं है । हिंदू धर्म में प्रत्येक अलंकार उस विशिष्ट स्थान पर धारण करने के पीछे अर्थपूर्ण अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टिकोण है ।

कुमकुम (सौभाग्यालंकार)

बालिका से लेकर प्रौढ स्त्री तक सर्व हिंदू स्त्रियां माथेपर कुमकुम लगाती हैं । केवल विधवाएं कुमकुम नहीं लगातीं । विवाहित स्त्री के लिए ‘कुमकुम’सौभाग्यालंकार माना गया है । कुमकुम में तारक एवं मारक शक्तितत्त्व आकर्षित करने की प्रचंड क्षमता है ।

अलंकार धारण करने का मूलभूत उद्देश्य एवं महत्त्व

इस लेख को पढने के उपरांत, सभी अलंकारों का महत्त्व एवं हिन्दू संस्कृति में सम्पूर्ण शरीर पर अलंकार धारण करने की परंपरा के महत्त्व को समझ सकते हैं । यह केवल हिन्दू संस्कृति की महानता को दिखाता है जो हर चरण पर मानवता के आध्यात्मिक कल्याण के बारे में सोचता है ।

अलंकार की धातु एवं उसमें जडे रत्न

प्राचीन काल से ही माना गया है कि ‘अलंकार बनाने के लिए धातु का प्रमुख उपयोग भूत-प्रेतों से संरक्षण तथा देवताओं की कृपा प्राप्त करने हेतु होता है । आइए अब अलंकार बनाने में प्रयोग की गयी धातु तथा रत्नों के उपयोग तथा आध्यात्मिक महत्व समझ लेते हैं ।

अलंकारों की शुद्धि

अनिष्ट शक्तियां सर्व प्रथम अलंकारों पर आक्रमण करती हैं । इसके साथ, यदि अलंकार रज-तम से प्रभावित हो गए हैं तो उन्हें उतार कर उनकी शुद्धि कर के पुनः धारण किया जा सकता है । इस लेख द्वारा देखते है, अलंकारों की स्थुल एवं सूक्ष्म से शुद्धि कैसे करें ।

शिशुओं के अलंकार

शिशुओं की कर्मेंद्रियां अकार्यक्षम होने के कारण उन पर होने वाले सूक्ष्म आक्रमण रोकने तथा उनके सर्व ओर ईश्वरीयचैतन्य के सुरक्षा-कवच की निर्मिति हेतु शिशु को बाले, कटि में सिकडी, पैरों में छडे आदि अलंकार पहनाए जाते हैं । आइये यह समझ लेते हैं की शिशुओं को विशिष्ट अलंकार पहनाने से उन्हें क्या आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।

पुरुषों के अलंकार

पुरुष वैराग्यरूपी शिवतत्त्व का दर्शक है एवं अलंकार आकर्षण का प्रतीक है, इसलिए पुरुष साधारणतः अलंकार नहीं पहनते । पहले पुरुषों में अलंकार धारण करने की प्रथा थी; परंतु वर्तमानकाल में अधिकतर पुरुष अलंकार नहीं पहनते ।

स्त्रियों के अलंकार

स्त्रियों के अलंकार अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर हैं जो उनकी सुंदरता को बनाये रखते हैं तथा उनके सतीत्व की रक्षा करते हैं । स्त्रियों के लिए अलंकार मात्र दिखावे अथवा सुख पानी की वस्तुएं नहीं हैं अपितु वे चैतन्य प्रदान करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम हैं, जो दिव्यता को क्रियाशील करते हैं ।