अलंकार हिन्दू संस्कृति की अनमोल धरोहर है । इस धरोहर को संजोए रखने हेतु कितनी ही पीढियों से साभिमान प्रयास हुए । अलंकार मात्र दिखावे या सुख पाने की वस्तु नहीं हैं अपितु शक्ति और चैतन्य प्रदान करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम हैं, शरीर में काली शक्ति को कम करते हैं तथा अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से रक्षा करते हैं; इसके साथ शरीर के जिस अंग में अलंकार धारण किए गए हैं उन अंगो पर बिंदु दाब के समान आध्यात्मिक उपाय भी होते हैं । आइए अब अलंकार बनाने में प्रयोग की गयी धातु तथा रत्नों के उपयोग तथा आध्यात्मिक महत्व समझ लेते हैं ।
१. अलंकार बनाने हेतु धातु के उपयोग का महत्त्व
प्राचीन काल से ही माना गया है कि ‘अलंकार बनाने के लिए धातु का प्रमुख उपयोग भूत-प्रेतों से संरक्षण तथा देवताओं की कृपा प्राप्त करने हेतु होता है ।’ उसी के लिए पहले तांबे के अलंकार धारण करने की प्रथा थी । आज भी छोटे बच्चों के पैरों में तांबे के छडे (पैर में पहनने का एक गहना) पहनाए जाते हैं ।
२. स्वर्ण के अलंकारों का महत्व
अ. स्वर्ण का आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व
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‘स्वर्ण शरीर के प्रतिकूल कीटाणुओं का नाश करता है । – ब्राह्मणग्रंथ’
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सर्व धातुओं में स्वर्ण सर्वाधिक सात्त्विक धातु है ।
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सात्त्विक एवं चैतन्यमय तरंगों को ग्रहण एवं प्रक्षेपित करनेवाली धातु है, स्वर्ण : ‘स्वर्ण की धातु सात्त्विक एवं चैतन्यमय तरंगों को ग्रहण कर, उतनी ही गति से वायुमंडल में उसका प्रक्षेपण करती है । स्वर्ण की धातु तेजतत्त्व रूपी चैतन्यमय तरंगों का संवर्धन करने में अग्रसर है ।’ इसलिए स्वर्ण के अलंकार धारण करने वाले व्यक्ति को सात्त्विकता एवं चैतन्य का लाभ बडी मात्रा में होता है ।’
आ. स्वर्ण अलंकारों से संबंधित सूक्ष्म ज्ञान
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स्वर्ण से प्रक्षेपित तेजोमय तरंगों के कारण स्त्री में विद्यमान शक्तितत्त्व कार्यरत होना : ‘अलंकार स्वर्ण के होते हैं तथा स्वर्ण की धातु तेजोमय अर्थात तेजतत्त्व प्रदान करती है । अतः इस धातु से प्रक्षेपित तेजोमयतरंगों के कारण स्त्री के शरीर की सूर्यनाडी कार्यरत होती है । इसके आधार से स्त्री में विद्यमान शक्तितत्त्व कार्यरत होकर संपूर्ण परिवार की रक्षा करता है ।’
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स्वर्ण के अलंकार धारण करने से, अधिक सक्षम अनिष्ट शक्तियों द्वारा आक्रमण करने पर भी साधना द्वारा संरक्षण होना : ‘स्वर्ण के अलंकार जितने चैतन्यमय हैं, उतने चैतन्य का प्रतिकार करने वाली अनिष्ट शक्तियां भी वायुमंंडल में होती हैं । अनिष्ट शक्ति और स्वर्ण के मध्य होने वाले सूक्ष्म युद्ध के परिणामस्वरूप साधारण व्यक्ति को १० प्रतिशत कष्ट हो सकता है । साधना करने वाले जीव में युद्ध के परिणाम सहने की क्षमता निर्मित होती है । इसलिए वह अपने भावानुसार अलंकारों का प्रयोग शस्त्र के समान कर पाता है तथा अपनी रक्षा करने की क्षमता ३० प्रतिशत तक बढा सकता है ।’
३. चांदी के अलंकार
अलंकार स्वर्ण के हों, तो उत्तम । यदि स्वर्ण के अलंकार धारण करना संभव न हो, तो स्वर्ण से अल्प स्तर के, चांदी के अलंकार धारण करें । चांदी के अलंकार धारण करनेवाले व्यक्ति को भी ईश्वरीय चैतन्य मिलता है ।
४. स्वर्ण, चांदी ताम्बा, पीतल एवं अन्य धातुओं से बने अलंकारों की तुलना
स्वर्ण | चांदी | तांबा | पीतल | अन्य धातु (टिप्पणी १) | |
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१. गुण | सत्त्व | अधिक रज-सत्त्व | रज-सत्त्व | रज-तम | तम |
२. तत्त्व | तेज | आप-अल्प तेज | आप-तेज | आप-पृथ्वी | पृथ्वी |
३. ग्रहण / प्रक्षेपण क्षमता | चैतन्य ग्रहण एवं प्रक्षेपित करना | चैतन्यका प्रक्षेपण करना | स्वर्णकी तुलनामें ग्रहण एवं प्रक्षेपण क्षमता अल्प | ग्रहण-क्षमताकी तुलनामें प्रक्षेपण-क्षमता अल्प | दोनों क्षमता अल्प और काली शक्ति ग्रहण करनेकी मात्रा अधिक |
४. कार्य | स्वर्ण अलंकारों के कारण देहके सर्व ओर तेज का सुरक्षाकवच बननेसे अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षण होना | देहके सर्व ओर सुरक्षाकवच बननेकी मात्रा अल्प; परंतु समय-समयपर प्रक्षेपित रजोगुणी चैतन्यके कारण अनिष्ट शक्तियोंसे देहका रक्षण होना | स्वर्णकी तुलनामें रक्षण करनेकी क्षमता ही अल्प होनेके कारण अनिष्ट शक्तिद्वारा तांबेपर काली शक्तिका आवरण बना पाना |
प्रक्षेपण क्षमता अल्प होनेके कारण रक्षण करनेकी क्षमता भी अल्प होना | काली वायुको घनीभूत करनेमें सक्षम होनेके कारण, अन्य धातुके अलंकार धारण करनेसे देहमें अनिष्ट शक्तिके प्रवेशकी आशंका होना |
५. मांत्रिकोंके (टिप्पणी २) हस्तक्षेपकी मात्रा (प्रतिशत) | १० | २० | २० | ३० | ५० |
६. अलंकार धारण करनेवाले जीव पर परिणाम | शरीर एवं मन दोनों स्वस्थ और प्रसन्न रहना | अ. रजोगुणी स्पर्शसे कार्यको गति मिलना एवं कार्य करनेकी क्षमता बढना आ. स्पर्शद्वारा आत्मशक्ति जागृत होना |
शरीरकी दाह (उष्णता)घटकर देहका तापमान नियंत्रणमें रहना | ‘तन्यता’ (ताननेकी क्षमता) गुणधर्म अल्प होनेसे और जडत्वकी मात्रा स्वर्णकी तुलनामें अधिक होनेसे गतिविधिमें बाधा आ सकती है |
वायुमंडलमें विद्यमान रज-तम आकृष्ट होकर देहपर काला आवरण आकर अनिष्ट शक्तियों द्वारा पीडाकी आशंका अधिक रहना’ |
टिप्पणी १ – लोहा, जस्ता एवं कांस्य
टिप्पणी २ – ‘मांत्रिक’ अर्थात बलशाली आसुरी शक्ति । अच्छे कार्य में बाधा डालना आसुरी शक्तियों का स्वभाविक कार्य ही होता है । अच्छे कार्य के लिए धातुओं का उपयोग किया जाए, तो उसमें आसुरी शक्तियों के हस्तक्षेप की मात्रा कितनी होगी, यह यहां पर दिया गया है ।’
५. स्वर्ण, मोती और हीरे, इनसे बने अलंकारों में आकृष्ट तरंगें
अलंकारोंके प्रकार | आकृष्ट तरंगें | |
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‘एक विद्वान’ द्वारा दी गई जानकारी (टिप्पणी १) | ‘ईश्वर’द्वारा दी गई जानकारी (टिप्पणी २) | |
१. स्वर्णालंकार | तेजतत्त्वयुक्त तरंगें | तेजतत्त्वयुक्त ईश्वरीय तरंगें |
२. मोतियोंके अलंकार | आपतत्त्वकी प्रबलता एवं अंशतः तेजतत्त्वयुक्त तरंगें | वायु एवं तेज तत्त्वोंसे युक्त देवताओंकी तरंगें |
३. हीरेके अलंकार | पृथ्वी एवं तेज तत्त्वोंसे युक्त तरंगें प्रकट शक्ति तथा तेजतत्त्वयुक्त (टिप्पणी ३) | देवताओंकी तरंगें’ |
टिप्पणी १ – (पू.) श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से, १६.११.२००७,दिन ११.२८
टिप्पणी २ – कु. मधुरा भोसले के माध्यम से
टिप्पणी ३ – हीरे में तेजतत्त्व आकर्षित कर उसे शक्ति के स्तर पर (अर्थात माध्यम से) घनीभूत करने की क्षमता प्रक्षेपण की अपेक्षा अधिक होती है; परंतु अन्य सर्व धातुओं की तुलना में स्वर्ण सर्वाधिक तेजतत्त्व-ग्राही और तेजतत्त्व-प्रक्षेपी है
६. अलंकारों में जडे रत्नों का शरीरपर अच्छा परिणाम होना
‘स्वर्ण-चांदी के अलंकारों में विविध प्रकार के रत्न, हीरा, माणिक, मूंगा, पन्ना जैसे रत्न जडे जाते हैं । इन रत्नों से शरीर को विशेष तेज प्राप्त होता है । सूर्य, चंद्र और अन्य ग्रहों से प्रक्षेपित किरणें रत्नों से परावर्तित होने के कारण, शरीर पर उसका अच्छा परिणाम होता है । आजकल ये रत्न कृत्रिम पद्धति से बनाए जाते हैं, इसलिए उनका वास्तविक परिणाम दिखाई नहीं देता ।’
अलंकारों में जडे विविध प्रकार के रत्नों का शरीर पर परिणाम
अ. माणिक : ‘यह शक्तिदायक है, इसलिए स्थूलदेह को संरक्षण प्रदान कर सकता है ।
आ. हीरा : हीरे से प्रक्षेपित तेज, प्रवाह की गतिशीलता को बनाए रखता है, इसलिए वह अल्पावधि में स्थूलदेह की एवं मनोदेह की शुद्धि कर सकता है ।
इ. मूंगा : यह शरीर की प्राणशक्ति-तत्त्वात्मक (प्राणशक्ति-तत्त्व अर्थातप्राणशक्ति का मूल बीजरूप) चेतना को अधिक मात्रा में जागृति देता है । इसलिए इसका प्रयोग क्रियाधारकता के (क्रियाशक्ति धारण करने के) प्रतीकस्वरूप किया जाता है । इसके स्पर्श से कार्य में उत्तेजना बढती है ।
ई. मोती : यह आपतत्त्वस्वरूप शीतलरूपी तारकता का प्रतीक है । इससे जीव को निरंतर जागृत चेतना के रूप में सजगता एवं प्रसन्नता प्राप्त होती है ।
उ. पन्ना : यह तारकता का अर्थात शक्तिरूपी तारकता घनीभूत करने का प्रतीक है । अतः इसका उपयोग अप्रकट शक्तितत्त्व को बनाए रखने के लिए किया जाता है ।’
७. अलंकार की धातु अथवा रत्न से भाव का संबंध
‘अलंकार की धातु अथवा रत्न, पंचतत्त्वों की सहायता से अलंकारिक पद्धति से बने आकृति के अनुपात में देवत्वदर्शक तरंगें ग्रहण करते हैं । जीव के भाव के अनुसार तरंगें ग्रहण कर आवश्यकता के अनुसार प्रक्षेपित करते हैं ।
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भाव का महत्त्व : जीव कोई भी अलंकार धारण करे, यदि अलंकार के प्रति उसका भाव हो, तो ही देवत्व के माध्यम से वह अलंकार उसके भाव के अनुसार अधिकतम मात्रा में विशिष्ट पंचतत्त्व की सहायता से लाभ प्राप्त करवाते हैं ।
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धातु अथवा रत्न किस देवता के तत्त्व से संबंधित हैं, इसकी अपेक्षा यह महत्त्वपूर्ण है कि वे ब्रह्मांड के कौन से पंचतत्त्व से संबंधित हैं ।
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स्वर्ण : स्वर्ण का स्पर्श किसी भी जीव को अंतःकरण में विद्यमान विशिष्ट देवता के तत्त्व का लाभ, उसके भावानुसार तेज के स्तर पर प्राप्त करवाता है ।
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चांदी : यह धातु रजोगुण के आधार पर कार्य की गति बढाती है ।
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मोती : यह उसे आप (तत्त्व) के स्तर पर प्रतिक्रिया देता है ।’
संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्त्विक ग्रंथ ‘अलंकारोंका महत्त्व’