कई बार मृत्युपरांत के क्रियाकर्म केवल धर्मशास्त्र में बताई गई विधि अथवा परिजनों के प्रति कर्तव्य-पूर्ति के एक भाग स्वरूप किया जाता है । अधिकांश लोग इनके महत्त्व अथवा अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टिकोण से अपरिचित होते हैं । किसी कर्म के अध्यात्मशास्त्रीय आधार एवं महत्त्व को समझ लेने पर व्यक्ति का उस पर विश्वास बढता है और वह उस कर्म को अधिक श्रद्धा से कर पाता है । दाह संस्कार करने के अधिकार के संदर्भ में सूतक का क्या अर्थ है, यह इस लेख में बताया गया है ।
१. सूतक का अर्थ
व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात गोत्रज तथा परिजनों को विशिष्ट कालावधि तक अशुचित्व प्राप्त होता है, उसे सूतक कहते हैं ।
२. सूतक पालन के नियम
अ. मृत व्यक्ति के परिजनों को दस दिन तथा अंत्यक्रिया करने वाले को बारह दिन (सपिंडीकरण तक) सूतक पालन करना होता है । सात पीढियों पश्चात तीन दिन का सूतक होता है ।
आ. मृतक के अन्य परिजन (उदा. मामा, भतीजा, बुआ इत्यादि परिजन) कितने दिनों तक सूतक का पालन करें, यह संबंधों पर निर्भर है तथा उसकी जानकारी पंचांग व धर्मशास्त्रों में दी गई है ।
३. सूतक में किन बंधनों का पालन करें
सूतक में अन्य व्यक्तियों को स्पर्श न करें । कोई भी धर्मकृत्य अथवा मांगलिक कार्य न करें तथा सामाजिक कार्य में भी सहभागी न हों । अन्यों की पंगत में भोजन न करें ।
४. शुद्धि
सूतक समाप्त होने पर स्नान तथा पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का मिश्रण) सेवन कर शुद्ध हो जाएं ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘मृत्युपरांत के शास्त्रोक्त क्रियाकर्म’