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मृत्यु के समय मुख में नाम होने का महत्त्व

जिस क्षण जीव मरता है, उसकी देह में विद्यमान सूक्ष्म ऊर्जा सूक्ष्म वायुओं के रूप में उसकी देह में कार्यरत होती है और इनके आधार पर उसे आगे की गति प्राप्त होती है । नाम साधना न करने वाले मनुष्य का अनेक वर्षों तक एक ही योनि में अटके रहना अथवा अनिष्ट शक्तियों के वश में जाती है, जबकि मृत्यु समय जिसके मुख में नाम हो, उसका आगे की गति प्राप्त होती है ।

१. नाम साधना न करने वाला जीव

अ. नाम साधना न करने वाले जीवों को किसी भी प्रकार की आंतरिक ऊर्जा (नामजप से निर्मित सूक्ष्म ऊर्जा)अथवा बाह्य ऊर्जा (गुरु अथवा देवताओं का आशीर्वाद रूपी बल) नहीं मिलती, इस कारण ऐसे जीव कई वर्षों तक एक ही योनि में अपनी आशा-आकांक्षाओं को लेकर भटकते रहते हैं ।

आ. इन लिंग देहों को किसी भी प्रकार का संरक्षण प्राप्त नहीं होता, इस कारण वे अनिष्ट शक्तियों के वश में आ जाते हैं और कई वर्षों तक लिंग देहों को उनके कहे अनुसार काम करना पडता है ।

ऐसे लिंग देहों को आगे की गति प्राप्त करवाने हेतु श्राद्धकर्म द्वारा बाह्य बल देना आवश्यक होता है ।

२. मृत्यु के समय जिसके मुख में नाम हो

मृत्यु के समय जीव के मुख में नाम हो, तो उसकी देह में सात्त्विक ऊर्जा का प्रवाह संक्रमित होता रहता है, जिससे वह मत्र्यलोक में (मत्र्यलोक अर्थात वह मृत्युलोक, जो भूलोक व भुवलोक के मध्य में है ।) नहीं भटकता एवं तुरंत अपने कर्म के अनुसार आगे की गति प्राप्त करता है ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘मृत्युपरांत के शास्त्रोक्त क्रियाकर्म