जन्म से लेकर मृत्यु तक के विविध प्रसंगों द्वारा, मनुष्य को ईश्वरोन्मुख करने हेतु, हिन्दू धर्म में विविध धार्मिक संस्कार समाविष्ट किए गए हैं । इनमें अंतिम संस्कार है, मृत्यु के उपरांत किया जाने वाला क्रियाकर्म । मृत्युपरांत के क्रिया कर्म को श्रद्धापूर्वक एवं विधिवत् करने पर मृत व्यक्ति की लिंग देह भूलोक अथवा मृत्युलोक में नहीं अटकती, वह सद्गति प्राप्त कर आगे के लोकों में बढ सकती है । पूर्वजों की अतृप्ति के कारण, परिजनों को होने वाले कष्टों तथा अनिष्ट शक्तियों द्वारा लिंगदेह के वशीकरण की संभावना भी अल्प हो जाती है । किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसका क्रियाकर्म धर्मशास्त्र में बताए अनुसार पुरोहित से करवाएं । अधिकांश स्थानों पर अंत्यविधि के विषय में ज्ञानी पुरोहित शीघ्र मिलना कठिन होता है । ऐसी स्थिति में साधारणतः मृत व्यक्ति को अग्नि देने से पूर्व एवं अग्नि देते समय क्या करना चाहिए यह आगे दिया गया है । इनमें से कुछ कृत्यों में पाठभेद, तथा प्रांतानुसार / परंपरानुसार भेद (अंतर) हो सकते हैं । जहां ऐसे भेद दिखें, वहां अपने पुरोहित से परामर्श लें ।
१. प्रारंभिक क्रिया कर्म
अ. क्रिया कर्म के लिए निम्न सामग्री एकत्रित करें
१. बांस
२. मोटी रस्सी, नारियल के छिलके से बनी (एक किलो)
३. एक छोटा तथा एक बडा मिट्टी का घडा
४. मृत देह को ढंकने के लिए श्वेत वस्त्र
५. तुलसी का हार
६. तुलसी की जड की मिट्टी
७. २५० ग्राम काले तिल
८. ५०० ग्राम शुद्ध घी
९. दर्भ
१०. १०० ग्राम कर्पूर
११. दियासलाई
१२. सत्तू / चावल के आटे के ७ गोले
१३. आचमनी-पंचपात्र, लोटा एवं तरबहना (देव प्रतिमा को नहलाने वाली थाली)
१४. आम-कटहल की लकडी
१५. हंसिया
१६. भस्म / विभूति
१७. गोपीचंदन
१८. चंदनकाष्ठ
१९. उपले
२०. १ कटोरी पंचगव्य (गोमूत्र, गोमय, दूध, दही एवं घी का मिश्रण)
२१. सोने के ७ टुकडे ।
आ. मृतक को अग्नि देने से लेकर संपूर्ण क्रिया समाप्ति तक विधि करने का अधिकार मृत व्यक्ति के बडे पुत्र को है । किसी अनिवार्य कारणों से बडा पुत्र क्रिया कर्म करने में असमर्थ हो, तो छोटे पुत्र को क्रिया कर्म करना चाहिए । वह भी उपलब्ध न हो, तो क्रमशः बीच का कोई भी पुत्र, दामाद अथवा अन्य परिजन क्रिया कर्म कर सकते हैं । क्रिया कर्म करने वाले पुरुष को ‘कर्ता’ कहते हैं । अविवाहित पुरुष / स्त्री, तथा निपुत्रिक व्यक्ति इत्यादि का क्रिया कर्म क्रमशः उस व्यक्ति का छोटा भाई, पिता अथवा बडा भाई अन्यथा परिजन कर सकते हैं ।
इ. व्यक्ति की मृत्यु होने के उपरांत संभवतः तुरंत ही उसके हाथ-पैर तथा गरदन सीधी करनी चाहिए । आंखें बंद करनी चाहिए । अन्यथा कुछ समय पश्चात ऐसा करना कठिन होता है ।
ई. आक्रोश करना, छाती पीटना इत्यादि कृत्य नहीं करने चाहिए ।
- अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों से मृतक के लिंग देह की रक्षा होने के लिए घर के व्यक्तियों को बीच बीच में दत्त भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए – ‘हे दत्तात्रेय भगवान, ….(मृतक का नाम लें) के लिंग देह के आस पास आप का सुरक्षा कवच निरंतर बना रहे । उन्हें सद्गति प्रदान करें, यही आपके चरणों में प्रार्थना है !’
- ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप करते हुए आगे का सर्व क्रिया कर्म करना चाहिए ।
उ. मृत देह को भूमि पर रखने से पूर्व भूमि गोबर से लीपनी चाहिए । वह संभव न हो, तो भूमि पर गोमय अथवा विभूति के जल से सिंचन (छिडकें) करें । भूमि पर दर्भ फैलाकर उस पर घास की चटाई, छोटा कंबल, रग अथवा लोई (ऊन की मोटी धोती) बिछाकर उस पर उस व्यक्ति को दक्षिणोत्तर रखें । मृत देह को दक्षिणोत्तर रखते समय मृतक के पैर दक्षिण की ओर करें ।
मृतदेह के चारों ओर थोडे अंतर पर अप्रदक्षिणा से (घडी की सुई की विपरीत दिशा में ) भस्म अथवा विभूति डालें ।
ऊ. मृत्यु से पूर्व व्यक्ति के मुख में गंगाजल नहीं डाला गया हो, तो मृत देह के मुख में गंगाजल डालकर मुख बंद कर उस पर तुलसीदल रखें । इसी प्रकार उसके कान तथा नाक में कपास के स्थान पर तुलसीदल से उन्हें बंद करें ।
ए. मृत देह के मस्तक (सिर) से कुछ दूरी पर गेहूं के भिगोए हुए आटे के गोल पर (गेहूं के आटे की लोई से बनाया दीप) एक ही बाती लगाकर तेल का दीपक जलाकर रखें । उस दीपक की ज्योत दक्षिण दिशा की ओर करें ।
मृत देह उठाने के उपरांत भी यह दीपक दस दिनों तक जलाए रखना चाहिए ।
एे. कर्ता क्षौर करे (शिखा छोडकर सिर के केश पूर्णतः निकालें) तथा दाढी-मूंछ तथा नख भी काटें । क्षौर करते समय बटू के समान केश का घेर न रखते हुए (आधे से एक सेंटीमीटर त्रिज्या का) घेर रख शिखा (चोटी) रखें ।
कर्ता के अन्य भाई तथा मृत व्यक्ति से छोटी आयु के परिजन (जिन के पिता न हों ऐसे) भी उसी दिन क्षौर करें । उसी दिन संभव न हो तो, दसवें दिन क्षौर करें ।
कर्ता मृत व्यक्ति की अपेक्षा आयु में बडा हो, तो वह क्षौर न करे ।
सूर्यास्त के उपरांत क्षौर वज्र्य होने के कारण सूर्यास्त के उपरांत क्षौर न करे । ऐसे समय मृतक की उत्तर क्रिया (प्रतिदिन किया जाने वाला पिंड दान तथा दी जाने वाली तिलांजली) जिस दिन प्र्रारंभ करनी हो, उस दिन कर्ता को तथा दसवें दिन अन्यों को क्षौर करना चाहिए ।
स्त्रियां केश तथा नख नहीं काटें ।
आे. कर्ता स्नान करे तथा कोरा वस्त्र उदा. धोती धारण करे । उत्तरीय (ऊपर का वस्त्र)धारण न करें ।
आै. मृत व्यक्ति की अपेक्षा आयु में छोटे परिजन तथा आप्तजन मृत देह को नमस्कार करें ।
अं. मृत देह घर के बाहर आंगन में ले जाकर उस का सिर पूर्व में एवं पैर पश्चिम में रख ऊंचे स्वर में ‘श्री गुरुदेवदत्त ।’ नामजप करते हुए कर्ता उसे स्नान करवाए ।
अ:. स्नान संभव न हो, तो पैरों पर जल डालें ।
क. तत्पश्चात एक बार पंचगव्य स्नान (गोमूत्र, गोमय, दूध, दही तथा शुद्ध घी इत्यादि एक पात्र में एकत्रित करें । उसमें दर्भ रखकर जल डालें । वह मिश्रण उस दर्भ अथवा तुलसी पत्र की सहायता से मृत देह पर छिडकना) तथा मस्तक से पैरों तक १० बार मिट्टी का स्नान (जल में तुलसी की जड की मिट्टी डालकर वह जल मृत देह पर छिडकना) करवाएं ।
ख. गोपी चंदन तथा भस्म / विभुति मृत देह को लगाएं । गले में तुलसी माला पहनाएं ।
टिप्पणी – अनेक स्थानों पर प्रत्येक व्यक्ति द्वारा मृत देह को पुष्प माला तथा मुख में चीनी डालने तथा मस्तक पर कुमकुम अर्पित करने की प्रथा दिखाई देती है । ऐसा करना शास्त्रीय दृष्टि से अयोग्य है ।
ग. स्नान के उपरांत मृतदेह को नवीन वस्त्र (धोती कुरता अथवा साडी) पहनाने चाहिए । ये वस्त्र धूप पर भारित किए गए अथवा गोमूत्र अथवा तीर्थ छिडककर शुद्ध किए हुए होने चाहिए ।
- अविवाहित कन्या की मृत्यु होने पर उसे श्वेत रंग के अतिरिक्त किसी भी रंग की साडी पहनानी चाहिए ।
- सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु होने पर – नवीन हरे रंग की साडी पहनानी चाहिए । कांच की हरी चूडियां पहनाएं तथा केश में फूलों का गजरा पहनाना चाहिए । मस्तक पर कुमकुम का बडा तिलक लगाएं । अन्य सौभाग्यवती स्त्रियां मृत सौभाग्यवती स्त्री को हलदी-कुमकुम लगाएं ।
घ. मृत देह को चटाई / अन्य बिछावन पर रखें । पांव खुले रखें तथा शेष मृत देह अखंड कोरे श्वेत वस्त्र से ढंकें । वस्त्र के ऊपरी अर्थात मुख मंडल के भाग में छिद्र बनाकर मुख मंडल खुला रखें । पैरों की ओर का वस्त्र का भाग (कुल वस्त्र का एक चतुर्थांश भाग) काटकर कर्ता उसका उपयोग १२ दिन तक उत्तरीय के रूप में करे । यह उत्तरीय खोना नहीं चाहिए । यह वस्त्र १२ वें दिन सपिंडी विधि में पिंड के स्थान पर रखते हैं तथा पिंड सहित विसर्जितकरते हैं ।
च. पती मृत होने पर पत्नी मंगलसूत्र में स्थित मुहुर्तमणि, तथा सोने के तार में पिरोए हुए काले मोती अलग कर पति की मृत देह के साथ चिता में रखने के लिए दे । मंगलसूत्र का अन्य/शेष सुवर्ण तथा अन्य सौभाग्यालंकार उतारकर सुरक्षित रखे ।
छ. मृत देह के चारों ओर दत्त के नामजप की पट्टियों का मंडल बनाएं तथा घर में दत्त का नामजप अथवा संतो द्वारा गाए हुए भजन लगाकर रखें । वहां उपस्थित व्यक्ति भी निरंतर ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप करें ।
ज. मृत्यु के उपरांत संभवतः तीन घंटों में अग्नि संस्कार करें ।
झ. मृत देह का दहन संभवतः दिन के समय करना चाहिए ।
ट. दिन तक सर्व परिजन ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप निरंतर करें ।
ठ. मृत देह को कोई भी अनावश्यक स्पर्श न करे ।
ड. ३ वर्ष तक की आयु के बालक-बालिका की मृत्यु होने पर उस संदर्भ में कोई भी धार्मिक विधि नहीं की जाती । बालक/बालिका की मृत देह को गाडना चाहिए ।
२. दहन विधि की सिद्धता
अ. अर्थी बांधना
- अर्थी तथा अग्नि की मटकी रखने हेतु पट्टियां बनाने के लिए बांस का उपयोग करना चाहिए ।
- अर्थी बनाने के लिए साधारणतः ६ फुट के दो बांस भूमि पर आडे रखना चाहिए । उन दोनों में लगभग डेढ फुट का अंतर रखकर उनके मध्य में बांस की पट्टियां बांधनी चाहिए । पट्टियां बांधते समय रस्सी को कहीं भी काटना नहीं चाहिए । प्रत्येक बाजू में / छोर के शेष रस्सी का उपयोग मृत देह को अर्थीr से बांधने के लिए करना चाहिए ।
- अग्नी रखी हुई मटकी ले जाने के लिए बांस चीरकर उस की तीन पट्टियां निकालें । अग्नि की मटकी के आकार के अनुसार उन्हें तिकोने आकार में बांधें ।
- बंधी हुई अर्थी घर से बाहर, उदा. आंगन में पूर्व- पश्चिम रखें ।
आ. मृत व्यक्ति के निवास स्थान पर सर्व संस्कार/ उपचार पूर्ण होने के उपरांत मृत देह को अर्थी पर पूर्व की ओर सिर तथा पश्चिम की ओर पैर कर रखें ।
इ. मृत देह के दोनों पैरों के अंगूठे आपस में बांधें ।
ई. अर्थी के छोर की रस्सी की सहायता से मृत देह को अर्थी से बांधें ।
उ. मृतक द्वारा उपयोग किए गए कपडे तथा उसका बिस्तर इत्यादि अंतिम यात्रा के साथ ले जाकर वह सर्वसामग्री चिता में रखें ।
३. अंतिम यात्रा
अ. अंतिम यात्रा में कर्ता आगे चले तथा उपले डालकर उस पर अंगार अथवा कर्पूर की सहायता से जलाई हुई अग्नि वाली मटकी दाहिने हाथ में पकडे । कर्ता बाएं कंधे पर जल से भरी हुई मटकी रखे । शारीरिक क्षमता के अभाव में जल से भरी हुई मटकी कर्ता के लिए कंधे पर रखना संभव न हो, तो अन्य व्यक्ति को दें ।
आ. परिजन अथवा आप्तजन, वे भी उपस्थित न हों तो पडोसी अर्थी उठाएं तथा कर्ता के पीछे चलें । अर्थी को चार व्यक्ति कंधा दें । कर्ता तथा अर्थी के मध्य कोई भी न चले । सर्व लोग अर्थी के पीछे चलें ।
इ. अंतिम यात्रा में मृत देह का सिर (मस्तक) आगे की दिशा में रखें ।
ई. अंतिम यात्रा श्मशान में पहुंचने तक सब लोग ऊंचे स्वर में ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप करें ।
उ. अंतिम यात्रा आधे रास्ते पर अथवा श्मशान के प्रवेश द्वार पर पहुंचने पर अर्थी नीचे रखें । कर्ता हाथ की सामग्री नीचे रखे तथा सत्तू / चावल के आटे के दो पिंड दे । यह पिंड घर से बनाकर ला सकते हैं । एक पात्र में जल लेकर उस में काले तिल डालें । मृत देह की दाहिनी तथा बार्इं ओर दर्भ पर पिंड रखें । दाहिने पिंड पर ‘श्यामायअयं पिण्ड उपतिष्ठतु ।’ ऐसा कहकर दाहिने हाथ के पितृ तीर्थ से (तलवे के अंगूठा एवं तर्जनी के मध्य के भाग से) तिल मिश्रित जल छोडें । तत्पश्चात बार्इं ओर के पिंड पर ‘शबलाय अयं पिण्ड उपतिष्ठतु ।’ कहते हुए उस पर भी ऊपरोक्तानुसार तिल मिश्रित जल छोडें ।
ऊ. तत्पश्चात पीछे कंधा देने वाले आगे तथा आगे कंधा देने वाले पीछे जाएं । तथा अर्थी उठाकर आगे चलें ।
४. मृत देह चिता पर रखना
अ. श्मशान पहुंचने पर मृत देह अर्थी सहित चिता पर रखें । चिता पर रखते समय मृतक के पैर उत्तर दिशा में तथा सिर दक्षिण दिशा में रखें ।
आ. अर्थी की सर्व रस्सियां तथा बांस खोलें तथा वह सर्व सामग्री चिता पर ही रखें ।
इ. मृत देह के पैरों के अंगूठे खोलें ।
५. चिता प्रज्वलित करने से पूर्व की विधियां
अ . मृत व्यक्ति के मुख, नाक के दोनों छिद्रों एवं कान में एवं आंखों पर सोने के टुकडें रखें । सोने के टुकडे रखना संभव न हो तो दर्भ के अग्र भाग से अथवा तुलसी के पत्तों से घी की बूंदे डालें ।
आ. कर्ता अग्नि की मटकी चिता की वायव्य दिशा में रखे तथा उसमें विद्यमान अग्नि प्रज्वलित करे । ‘क्रव्यादनामानमग्निं प्रतिष्ठापयामि ।’ ऐसा कहकर उस अग्नि पर काले तिल डाले । (कुछ लोग मृत देह की वायव्य दिशा में भूमि पर मिट्टी की तिकोनी वेदी बनाते हैं तथा उसमें उपले रखकर मटकी में रखी हुई अग्नि रखकर प्रज्वलित करते हैं ।) उस पर आचमनी से आगे दिए अनुसार घी की आहुतियां दें । आगे दिए एक-एक मंत्र में ‘स्वाहा’ कहते हुए आहुति दें पश्चात ‘…. इदं न मम ।’ कहें ।
अग्नये स्वाहा । अग्नय इदं न मम ।।
कामाय स्वाहा । कामाय इदं न मम ।।
लोकाय स्वाहा । लोकाय इदं न मम ।।
अनुमतये स्वाहा । अनुमतय इदं न मम ।।
इसके उपरांत ‘ॐ अस्माद्वैत्वमजायथा अयंत्वदभिजाय-ताम् । असौ….(मृत व्यक्ति का नाम लें ।) प्रेताय स्वर्गाय लोकाय स्वाहा ।।’ ऐसा कहकर घी की आहुती मृत देह की छाती पर दे तथा ‘…. (मृत व्यक्ति का नाम लें ।) प्रेताय इदं न मम ।’ ऐसा कहें ।
इ. मृत व्यक्ति का मस्तक, मुख, दोनों बाहू/भुजाएं तथा छाती इन पांच स्थानों पर सत्तू / चावल के आट के सुपारी के आकार के गोले रखें । प्रत्येक गोले पर घी डालें ।
६. दहन विधि
अ. उपस्थित व्यक्ति मृत देह पर चंदन काष्ठ, अन्य लकडी, उदबत्ती अथवा कर्पूर रखें । यह कृत्य शास्त्र में नहीं है अपितु वह एक प्रचलित पद्धति है ।
आ. साथ में लाई गई अग्नि की सहायता से कर्ता चिता को अग्नि दे ।
इ. प्रथम मृत देह के (पुरुष हो तो) सिर (मस्तक) की ओर अथवा (स्त्री हो तो) पैरों की ओर एवं तत्पश्चात अप्रदक्षिणा द्वारा (घडी की सुई की विपरीत दिशा में) घूमते हुए सर्व ओर से चिता प्रज्वलित करे । चिता प्रज्वलित करने के लिए लाई गई अग्नि पर नारियल की कोई टहनी जलाकर उसका उपयोग करे ।
ई. चिता में ‘टायर’ जैसी वस्तुओं का उपयोग टालें । मिट्टी के तेल का उपयोग करना पडे तो वह अत्यल्प करें ।
उ . जहां तक संभव हो चिता का धुंआ अपने शरीर को न लगने दें ।
ऊ. मृत देह की कपाल क्रिया के पश्चात (कपाल फूटने की ध्वनि होने के उपरांत ) कर्ता कंधे पर जल से भरी हुई मटकी लेकर मृत व्यक्ति के पैरों की ओर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर खडा रहे । दूसरा कोई भी व्यक्ति कर्ता के पीछे खडे होकर श्मशान के ही छोटे पत्थर से (इस पत्थर को अश्मा कहते हैं) उस मटकी के गले के नीचे एक छिद्र करें । कर्ता मटकी का जल पैâलाते हुए चिता के चारों ओर घडी की सुई की विपरीत दिशा में प्रथम परिक्रमा करें । दूसरा व्यक्ति मटकी पर पुनः प्रथम छिद्र के नीचे दूसरा छिद्र करें । कर्ता पुनः पूर्वानुसार दूसरी परिक्रमा करें । तत्पश्चात पुनः दूसरे के नीचे तीसरा छिद्र करें । कर्ता तीसरी परिक्रमा करें । तीसरी परिक्रमा के उपरांत मृत व्यक्ति पुरुष हो तो उसके सिर की दिशा में मृतक की ओर पीठ करें तथा मृत व्यक्ति स्त्री हो, तो उसके पैरों की दिशा में मृतक की ओर पीठ कर खडे होकर पीछे न देखते हुए मटकी कंधे से पीछे डालकर फोड दें ।
ए. मटकी पर छिद्र किया हुआ अश्मा कर्ता सुरक्षित घर लेकर आए ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘मृत्युपरांत के शास्त्रोक्त क्रियाकर्म’