‘देवता पूजन’ हिन्दू धर्म की सगुण उपासनापद्धति की नींव है । जैसे हम घर आए अतिथि का स्वागत आदरपूर्वक करते हैं, उसी प्रकार यदि भगवान का करें अर्थात देवता की विधिवत् पूजा करें, तो ही वे हम पर प्रसन्न होकर हमें अनेकानेक आशीर्वाद देते हैं । हमारे त्रिकालदर्शी ऋषि-मुनियों द्वारा बताए धर्मशास्त्रानुसार देवता पूजन करने से ही उनकी संकल्पशक्ति का लाभ मिलता है । देवता पूजन भक्तिभाव से करना भी महत्त्वपूर्ण है । देवता पूजन में भगवान के प्रति प्रेम, भाव की आर्द्रता न हो, तो वह पूजा भगवान तक नहीं पहुंचती; क्योंकि भगवान भाव के भूखे हैं । सामान्य श्रद्धालु में शीघ्र भाव निर्माण होना कठिन होता है; परन्तु देवता पूजन के विविध कृत्यों का शास्त्रीय आधार समझने पर देवता पूजन तथा देव ताक विषय में भी श्रद्धा निर्माण होती है और उसका रूपान्तरण भावमें होता है । इसलिए प्रस्तुत लेख माला में देवता पूजन के कृत्यों का आधारभूत शास्त्र बताने पर बल दिया है ।
देवता पूजन की सर्वसामान्य जानकारी
देवता को नैवेद्य कैसे निवेदित करें ?
किस देवता को कौन से पुष्प एवं किस प्रकार अर्पित करें ?
तेल के दीप की अपेक्षा घी का दीप जलाना महत्त्वपूर्ण क्यों है ?
देवता पूजन के घटक व उपकरणों की संरचना कैसे करनी चाहिए ?
देवता पूजन में प्रयुक्त उपकरणों का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
पूजाघर में देवताओं की संरचना कैसे करें ?
पूजाघर का स्वरूप कैसा होना चाहिए ?
पूजा में उपयुक्त विविध घटकों का महत्त्व
नित्य देवता पूजन कैसे करें ?
पूजा की पूर्वतैयारी कैसे करें ?
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