१. तेल एवं घी के दीप में अन्तर एवं तेल के दीप की अपेक्षा घी का दीप जलाना महत्त्वपूर्ण क्यों है ?
आगे की सारणी में दिए तेल के दीप एवं घी के दीप में अन्तर से स्पष्ट होगा कि तेल की अपेक्षा घी का दीप जलाना महत्त्वपूर्ण क्यों है ।
तेल का दीप | घी का दीप | |
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१. प्रयोग का कारण | प्रतिदिन दीप अथवा नीरांजन में घी डालना सम्भव न होना |
देवता की सात्त्विक तरंगें आकृष्ट करने की एवं प्रक्षेपित करने की क्षमता अधिक |
२. जलते रहने की अवधि | अधिक | अल्प |
३. देवता का तत्त्व | सगुण | सगुण-निर्गुण (टिप्पणी १) |
४. वातावरण की सात्त्विक तरंगों को आकृष्ट करने की दूरी | १ मीटर का परिसर | स्वर्गलोक तक |
५. ज्योत शान्त हो जाने के उपरान्त | ||
अ. वातावरण पर प्रभाव | रजोकणों की प्रबलता बढना | सात्त्विकता अधिक काल तक बनी रहना |
अ १. प्रभाव की अवधि (घण्टे) | आधा | चार |
६. जीव पर प्रभाव | ||
अ. जीव के आसपास निर्मित कवच का स्वरूप | वेगवान एवं अनियमित तरंगें | शान्त एवं लहरों समान तरंगें |
आ. तरंगों के प्रक्षेपण से कार्यरत जीव की शक्ति | मनःशक्ति | आत्मशक्ति |
इ. कुण्डलिनीच़क्रों की शुद्धि | मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान | मणिपुर एवं अनाहत |
ई. कार्यरत नाडी | सूर्यनाडी | आवश्यकता अनुसार कार्य के लिए पोषक |
उ. मन पर प्रभाव | प्राणमयकोष के रज कण प्रबल होने से जीव का चंचल बनना | प्राणमयकोष एवं मनोमय कोष में सत्त्व कणों की प्रबलता बढना एवं जीव का शान्त, स्थिर व सन्तुष्ट बनना |
७़ अनुभूति का स्तर | गन्ध का अनुभव एवं मुंह में मीठी लार आना, पृथ्वी वं आप तत्त्वों संबंधी अनुभूति होना | तेज एवं वायु तत्त्वोंसंबंधी, प्रकाश, देवता के रूप अथवा स्पर्श की अनुभूति होना |
टिप्पणी १ – ‘सगुण-निर्गुण’ अर्थात अधिक मात्रा में सगुण एवं अल्प मात्रा में निर्गुण सर्वसामान्यतः तेल के दीप से रजोगुणी तरंगों का प्रक्षेपण होता है; परन्तु तिल के तेल के दीप से कुछ मात्रा में सत्त्व तरंगों का प्रक्षेपण होता है । इसलिए अन्य प्रकार के तेल की तुलना में तिल के तेल का दीप अधिक सात्त्विक है । तथापि किसी भी तेल के दीप की तुलना में घी का दीप सर्वाधिक सात्त्विक तरंगों का प्रक्षेपण करता है । इसलिए यथाक्षमता एवं सुविधा अनुसार उपयुक्त दीप जलाएं ।
२. बिजली के दीप एवं घी के दीप में अन्तर
बिजली का दीप | घी का दीप | |
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१. सात्त्विक तरंगें आकर्षित करने की क्षमता | नहीं | है |
२. प्रकाश का स्वरूप | नेत्रों को चौंधियां देनेवाला | मन्द एवं आत्मज्योति की कल्पना देनेवाला |
३. दीप देखने पर वृत्ति बहिर्मुख या अन्तर्मुख बनना ? | बहिर्मुख | अन्तर्मुख |
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘पूजाघर एवं पूजाके उपकरण’