१. उद्घाटन
अ. परिभाषा
‘उद्’ अर्थात प्रकट करना । देवतातरंगों को प्रकट कर अथवा घट में (कार्यस्थल पर) उनके स्थान ग्रहण करने हेतु आवाहन (प्रार्थना) कर कार्यारंभ अर्थात उद्घाटन करना ।
आ. उद्घाटन करने का महत्त्व
किसी भी समारोह अथवा कार्य की सिद्धि के लिए देवता के आशीर्वाद आवश्यक हैं । शास्त्रीय पद्धति अनुसार उद्घाटन करने से दैविक तरंगों का कार्यस्थल पर आगमन सुरक्षा-कवच की निर्मिति में सहायक होता है । इससे वहां की कष्टदायक स्पंदनों के संचार पर अंकुश लगता है । इसलिए उद्घाटन विधिवत् अर्थात अध्यात्मशास्त्र पर आधारित विधियों के अनुसार ही करना चाहिए ।
२. उद्घाटन की पद्धतियां
नारियल फोडना और दीपप्रज्वलन, ये विधियां वास्तुशुद्धि की अर्थात उद्घाटन की महत्त्वपूर्ण विधियां हैं ।
अ. व्यासपीठ के कार्यक्रमों का उद्घाटन
परिसंवाद, साहित्य सम्मेलन, संगीत महोत्सव इत्यादि का उद्घाटन दीपप्रज्वलन से किया जाता है । व्यासपीठ की स्थापना से पूर्व नारियल फोडें और उद्घाटन के समय दीप प्रज्वलित करें । नारियल फोडने के पीछे प्रमुख उद्देश्य है, कार्यस्थल की शुद्धि । व्यासपीठ ज्ञानदान के कार्य से संबंधित है अर्थात वह ज्ञानपीठ है । इसलिए वहां दीपक का महत्त्व है ।
आ. दुकान, प्रतिष्ठान इत्यादि का उद्घाटन
दुकान, प्रतिष्ठान इत्यादि अधिकांशतः व्यावहारिक कर्म से संंबंधित होते हैं । इसलिए उनके उद्घाटन अंतर्गत दीपप्रज्वलन की आवश्यकता नहीं होती । इसलिए केवल नारियल फोडें ।
३. संतों के कर-कमलोंद्वारा उद्घाटन करवाने का क्या महत्त्व है ?
संतों के अस्तित्वमात्र से ब्रह्मांड से आवश्यक देवता की सूक्ष्मतर तरंगें कार्यस्थल की ओर आकृष्ट एवं कार्यरत होती हैं । इससे वातावरण चैैतन्यमय तथा शुद्ध बनता है और पारिवारिक धार्मिक व कार्यस्थल के चारों ओर सुरक्षा-कवच की निर्मिति होती है । इसलिए संतों के करकमलोंद्वारा उद्घाटन अंतर्गत नारियल फोडने की आवश्यकता नहीं होती ।
४. पश्चिमी संस्कृति के अनुसार फीता काटकर उद्घाटन क्यों न करें ?
किसी वस्तु को काटना विध्वंसक वृत्ति का दर्शक है । फीता काटना अर्थात फीते की अखंडता को भंग करना अथवा लय करना । जिस कृति के माध्यम से लय साध्य होता है, वह कृति तामसिकता दर्शाती है । जिस कृति से कष्टदायक तरंगों की निर्मिति होती है, वह हिन्दू धर्म में त्याज्य (त्यागने योग्य) है; इसलिए फीता काटकर उद्घाटन न करें ।
सामान्य व्यक्ति रज-तम प्रधान अर्थात राजसी एवं तामसी होता है । फीता काटकर उद्घाटन करने से व्यक्ति का अहं जागृत होता है । उसकी
देह से प्रक्षेपित रज-तम तरंगों के कारण उसकी चारों ओर का वायुमंडल तथा उसके हाथों में कैंची भी रज-तम कणों से प्रभावित हो जाती है । ऐसी कैंची के स्पर्श से फीते के चारों ओर विद्यमान वायुमंडल के रज-तम कणोंको गति प्राप्त होती है एवं कैंची से कटे फीते से फव्वारे समान रज-तम की गतिमान तरंगों का प्रक्षेपण संपूर्ण वातावरण में होता है । जिस कृत्य से कष्टदायक तरंगों की निर्मिति होती है, वह हिन्दू धर्म में त्याज्य (त्यागने योग्य) है; इसलिए फीता काटकर उद्घाटन न करें ।
५. फीता काटकर उद्घाटन करना और नारियल फोडकर उद्घाटन करने से होनेवाले सूक्ष्म स्तरीय प्रभाव
अ. फीता काटते समय उत्पन्न होनेवाले तमोगुणी स्पन्दने फीता काटनेवाले व्यक्ति के शरीर में भी फैलना, इससे उसमें अहंकार बढना
फीता काटकर उद्घाटन करनेवालों में अहंकार अधिक होता है । फीता काटते समय उत्पन्न होनेवाले तमोगुणी स्पन्दन जिस प्रकार वास्तु में फैलते हैं, उसी प्रकार फीता काटनेवाले व्यक्ति के शरीर में भी फैलते हैं । इससे उसमें अहंकार बढता है । अहंकार बढने से उसके मन में कर्तापन का विचार आने लगता है कि मैं कोई साधारण नहीं, बडा व्यक्ति हूं ।
आ. फीते में आर्किषत मायावी स्पन्दन उसके कटे सिरों से वातावरण में निरन्तर प्रक्षेपित होते रहना
बाह्यतः फीता काटनेकी क्रिया मन को आकर्षित करती है । इसलिए, उसमें मायावी स्पन्दन भी आकृष्ट होते हैं । इसी प्रकार, फीते के कटे हुए सिरों से वे स्पन्दन निरन्तर प्रक्षेपित होकर वातावरणमें फैलते रहते हैं ।
इ. भावयुक्त व्यक्ति अथवा सन्त के हाथों उद्घाटन करवाने का कारण और महत्त्व
भावयुक्त व्यक्ति अथवा सन्त के हाथों उद्घाटन करवाएं; क्योंकि उनमें अहंकार थोडा ही होता है । नारियल फोडनेवाला व्यक्ति यह क्रिया यदि भावयुक्त होकर करे, तो उसे शक्ति के स्पन्दन मिलते हैं ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘पारिवारिक धार्मिक व सामाजिक कृतियोंका आधारभूत अध्यात्मशास्त्र’