ईश्वर के दर्शन करते समय अथवा ज्येष्ठ या सम्माननीय व्यक्ति से मिलनेपर हमारे हाथ अनायास ही जुड जाते हैं । हिन्दू मनपर अंकित एक सात्त्विक संस्कार है ‘नमस्कार’ । भक्तिभाव, प्रेम, आदर, लीनता जैसे दैवीगुणोंको व्यक्त करनेवाली व ईश्वरीय शक्ति प्रदान करनेवाली यह एक सहज धार्मिक कृति है । नमस्कारकी योग्य पद्धतियां क्या है, नमस्कार करते समय क्या नहीं करना चाहिए, इसका शास्त्रोक्त विवरण यहां दे रहे हैं ।
१. नमस्कार के लाभ
मूल धातु ‘नम:’से ‘नमस्कार’ शब्द बना है । ‘नम:’ का अर्थ है नमस्कार करना, वंदन करना । ‘नमस्कारका मुख्य उद्देश्य है – जिन्हें हम नमन करते हैं, उनसे हमें आध्यात्मिक व व्यावहारिक लाभ हो ।
अ. व्यावहारिक लाभ
देवता अथवा संतोंको नमन करनेसे उनके गुण व कर्तृत्वका आदर्श हमारे समक्ष सहज उभर आता है । उसका अनुसरण करते हुए हम स्वयंको सुधारनेका प्रयास करते हैं ।
आ. आध्यात्मिक लाभ
१. नम्रता बढती है व अहं कम होता है ।
२. शरणागिति व कृतज्ञताका भाव बढता है ।
३. सात्त्विकता मिलती है व आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र होती है ।
२. मंदिर में प्रवेश करते समय सीढियों को नमस्कार कैसे करें ?
सीढियोंको दाहिने हाथकी उंगलियोंसे स्पर्श कर, उसी हाथको सिरपर फेरें । ‘मंदिरके प्रांगणमें देवताओंकी तरंगोंके संचारके कारण सात्त्विकता अधिक होती है । परिसरमें फैले चैतन्यसे सीढियां भी प्रभावित होती हैं । इसलिए सीढीको दाहिने हाथकी उंगलियोंसे स्पर्श कर, उसी हाथको सिरपर फेरनेकी प्रथा है । इससे ध्यानमें आता है कि, सीढियोंकी धूल भी चैतन्यमय होती है; हमें उसका भी सम्मान करना चाहिए ।
३. देवता को नमन करने की योग्य पद्धति व उसका आधारभूत शास्त्र क्या है ?
अ. ‘देवताको नमन करते समय, सर्वप्रथम दोनों हथेलियोंको छातीके समक्ष एक-दूसरेसे जोडें । हाथोंको जोडते समय उंगलियां ढीली रखें । हाथोंकी दो उंगलियोंके बीच अंतर न रख, उन्हें सटाए रखें । हाथोंकी उंगलियोंको अंगूठेसे दूर रखें । हथेलियोंको एक-दूसरेसे न सटाएं; उनके बीच रिक्त स्थान छोडें ।
आ. हाथ जोडनेके उपरांत, पीठको आगेकी ओर थोडा झुकाएं ।
इ. उसी समय सिरको कुछ झुकाकर भ्रूमध्य (भौहोंके मध्यभाग)को दोनों हाथोंके अंगूठोंसे स्पर्श कर, मनको देवताके चरणोंमें एकाग्र करनेका प्रयास करें ।
ई. तदुपरांत हाथ सीधे नीचे न लाकर, नम्रतापूर्वक छातीके मध्यभागको कलाईयोंसे कुछ क्षण स्पर्श कर, फिर हाथ नीचे लाएं ।
इस प्रकार नमस्कार करनेपर, अन्य पद्धतियोंकी तुलनामें देवताका चैतन्य शरीरद्वारा अधिक ग्रहण किया जाता है ।
साष्टांग नमस्कार : षड्रिपु, मन व बुद्धि, इन आठों अंगोंसे ईश्वरकी शरणमें जाना अर्थात् साष्टांग नमस्कार ।
४. वयोवृद्धों को नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
घरके वयोवृद्धोंको झुककर लीनभावसे नमस्कार करनेका अर्थ है, एक प्रकारसे उनमें विद्यमान देवत्वकी शरण जाना । वयोवृद्धोंके माध्यमसे, जीवको आवश्यक देवताका तत्त्व ब्रह्मांडसे मिलता है । उनसे प्राप्त सात्त्विक तरंगोंके बलपर, कष्टदायक स्पंदनोंसे अपना रक्षण करना चाहिए । इष्ट देवताका स्मरण कर की गई आशीर्वादात्मक कृतिसे दोनों जीवोंमें ईश्वरीय गुणोंका संचय सरल होता है ।
५. किसीसे मिलनेपर हस्तांदोलन (हैंडशेक) न कर, हाथ जोडकर नमस्कार करना इष्ट क्यों है ?
१. जब दो जीव हस्तांदोलन करते हैं, तब उनके हाथोंसे प्रक्षेपित राजसी-तामसी तरंगें हाथोंकी दोनों अंजुलियोंमें संपुष्ट होती हैं । उनके शरीरमें इन कष्टदायक तरंगोंके वहनका परिणाम मनपर होता है ।
२. यदि हस्तांदोलन करनेवाला अनिष्ट शक्तिसे पीडित हो, तो दूसरा जीव भी उससे प्रभावित हो सकता है । इसलिए सात्त्विकताका संवर्धन करनेवाली नमस्कार जैसी कृतिको आचरण्में लाएं । इससे जीवको विशिष्ठ कर्म हेतु ईश्वरका चैतन्यमय बल तथा ईश्वरकी आशीर्वादरूपी संकल्प-शक्ति प्राप्त होती है ।
३. हस्तांदोलन करना पाश्चात्य संस्कृति है । हस्तांदोलनकी कृति, अर्थात् पाश्चात्य संस्कृतिका पुरस्कार । नमस्कार, अर्थात् भारतीय संस्कृतिका पुरस्कार । स्वयं भारतीय संस्कृतिका पुरस्कार कर, भावी पीढीको भी यह सीख दें ।
६. मृत व्यक्ति को नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
त्रेता व द्वापर युगोंके जीव कलियुगके जीवोंकी तुलनामें अत्यधिक सात्त्विक थे । इसलिए उस कालमें साधना करनेवाले जीवको देहत्यागके उपरांत दैवगति प्राप्त होती थी । कलियुगमें कर्मकांडके अनुसार, ‘ईश्वरसे मृतदेहको सद्गति प्राप्त हो’, ऐसी प्रार्थना कर मृतदेहको नमस्कार करनेकी प्रथा है ।
७. विवाहोपरांत पति व पत्नी को एक साथ नमस्कार क्यों करना चाहिए ?
विवाहोपरांत दोनों जीव गृहस्थाश्रममें प्रवेश करते हैं । गृहस्थाश्रमें एक-दूसरेके लिए पूरक बनकर संसारसागर-संबंधी कर्म करना व उनकी पूर्ति हेतु एक साथ बडे-बूढोंके आशीर्वाद प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण है । इस प्रकार नमस्कार करनेसे ब्रह्मांडकी शिव-शक्तिरूपी तरंगें कार्यरत होती हैं । गृहस्थाश्रममें परिपूर्ण कर्म होकर, उनसे योग्य फलप्राप्ति होती है । इस कारण लेन-देनका हिसाब कम निर्माण होता है । एकत्रित नमस्कार करते समय पत्नीको पतिके दाहिनी ओर खडे रहना चाहिए ।
८. किसीसे भेंट होनेपर नमस्कार कैसे करें ?
किसीसे भेंट हो, तो एक-दूसरेके सामने खडे होकर, दोनों हाथोंकी उंगलियोंको जोडें । अंगूठे छातीसे कुछ अंतरपर हों । इस प्रकार कुछ झुककर नमस्कार करें । इस प्रकार नमस्कार करनेसे जीवमें नम्रभावका संवर्धन होता है व ब्रह्मांडकी सात्त्विक-तरंगें जीवकी उंगलियोंसे शरीरमें संक्रमित होती हैं । एक-दूसरेको इस प्रकार नमस्कार करनेसे दोनोंकी ओर आशीर्वादयुक्त तरंगोंका प्रक्षेपण होता है ।
९. नमस्कार में क्या करें व क्या न करें ?
- नमस्कार करते समय नेत्रोंको बंद रखें ।
- नमस्कार करते समय पादत्राण धारण न करें ।
- एक हाथसे नमस्कार न करें ।
- नमस्कार करते समय हाथमें कोई वस्तु न हो ।
- नमस्कार करते समय पुरुष सिर न ढकें व स्त्रियोंको सिर ढकना चाहिए ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘नमस्कार की योग्य पद्धतियां : भाग ३’