आजकल के इस मॉडर्न ज़माने में नमस्कार करना या फिर किसी को झुककर चरण स्पर्श करना तो जैसे हमारी नयी पीढी के लिए बस औपचारिकता मात्र ही रह गयी है किंतु कुछ ऐसे भी हैं जो इस जमाने में भी नमस्कार करने को किसी का सम्मान करना मानते हैं। इन्हीं में से कुछ लोग साष्टांग दंडवत प्रणाम को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। साष्टांग नमस्कार भी नमस्कार का ही एक रूप है जिसमें शरीर के सभी अंग जमीन को छूते हैं। आमतौर पर इस नमस्कार को दण्डकार नमस्कार और उद्दंड नमस्कार भी कहा जाता है।
शरीर से, मन से तथा वाणी से अपने उपास्यदेवता की शरण जाकर किए गए नमस्कार को साष्टांग नमस्कार कहते हैं !
साष्टांग नमस्कार की कृती…
१. प्रथम दोनों हाथ छाती से जोडकर कटि से (कमर से) झुकें और तदुपरांत पेट के बल लेटकर दोनों हाथ भूमि पर टिकाएं । प्रथम दायां और फिर बायां पैर पीछे तानकर सीधी रेखा में लेट जाएं ।
२. दोनों कुहनियां मोडकर सिर, छाती, हथेलियां, घुटने और पैरों की उंगलियां भूमि पर टिक जाएं, इस प्रकार से आडे लेटें और आंखें मूंद लें । मन से नमस्कार करें । मुख से नमस्कार का उच्चार करें ।
३. खडे होकर दोनों हाथ अनाहतचक्र पर (छाती पर) जोडकर शरणागत भाव से नमस्कार करें ।
ऐसी मुद्रा के पीछे का मतलब होता है कि जिस प्रकार जमीन पर गिरा हुआ डंडा बिल्कुल अकेला और मजबूर होता है वैसे ही मनुष्य भी दुखी और लाचार है। इस वजह से ही वह भगवान की शरण में आया है और उनसे मदद के लिए प्रार्थना कर रहा है। ऐसे नमस्कार करके वह ईश्वर तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश करता है।
इस नमस्कार का अर्थ है कि, अपने अहंकार का त्याग करना। कहते हैं जब हम खडे होकर ज़मीन पर गिर जाते हैं तब हमें चोट लगती है, ठीक वैसे ही बैठे बैठे भी गिरने पर हम चोटिल हो जाते है किन्तु साष्टांग नमस्कार में गिरने और चोट लगने की कोई गुंजाइश नहीं होती। साष्टांग नमस्कार से मनुष्य के अंदर विनम्रता के भाव आते हैं। जब कोई दूसरा हमारा सिर झुकाता है तो इससे हमारा अपमान होता है किन्तु जब हम स्वयं अपना सिर झुकाते हैं तो वह हमारे लिए सम्मान की बात होती है।