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अमृतमयी क्षिप्रा नदी

सिंहस्थ कुंभ मेला, उज्जैन (फोटो साभार: simhasthujjain.in)

क्षिप्रा नदी मध्य प्रदेश में बहने वाली एक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक नदी है। इसको शिप्रा नदी के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत की पवित्र नदियों में एक है। उज्जैन में कुंभमेला इसी नदी के किनारे लगता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वरम् भी यहां ही है।

शिप्रा नदी उद्गम

क्षिप्रा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के महू छावनी से लगभग १७ किलोमीटर दूर जानापाव की पहाडिय़ों से माना गया है। यह स्थान भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का जन्म स्थान भी माना गया है। क्षिप्रा नदी को मोक्ष देने वाली यानि जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाली माना गया है।

पौराणिक कथा

क्षिप्रा नदी की उत्पत्ति के संबंध में पौराणिक कथा है। पुरातन काल में ऋषि अत्रि ने अवंतिकापुरी में हजारों वर्षों घोर तप किया। तप पूरा होने पर जब ऋषि अत्रि ने अपनी आंखें खोली तो पाया कि उनके तन से दो जलधाराएं बह रही हैं। इनमें से एक जलधारा ने अंतरिक्ष की ओर जाकर चंद्रमा का रुप ले लिया और दूसरी जलधारा भूमि की ओर बह गई। इसी जलधारा का क्षिप्रा नदी के रुप में उद्गम हुआ।

मान्यता एवं महत्ता

हिन्दू धर्म ग्रंथों में अनेक पवित्र नदियों की महिमा बताई गई है। इनमें परम पवित्र गंगा नदी पापों का नाश करने वाली मानी गई है। हर नदी का अपना धार्मिक महत्व बताया गया है। इसी क्रम में मध्य प्रदेश की दो पवित्र नदियों नर्मदा और क्षिप्रा से भी जन-जन की आस्था जुड़ी है। जहां नर्मदा को ज्ञान प्रदायिनी यानि ज्ञान देने वाली माना गया है। वहीं उज्जैन नगर की जीवन धारा क्षिप्रा को मोक्ष देने वाली यानि जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाली माना गया है। हमारा इतिहास नदियों के प्रवाह से रचा गया इतिहास है और उनके तट हमारी परंपरा के विकास की कहानी कहते हैं। क्षिप्रा भी मानव के जीवन का पर्याय है। वह किसी पर्वत के गौमुख से नहीं, धरा गर्भ से प्रस्तुत होकर धरातल पर बहती है। इसलिए वह लोकसरिता है। इसके प्रभाव में हमारे लोकजीवन के सुख और दुःख के स्वर घुले मिले है। अपने आराध्य महाकाल का युगों से अभिषेक करते यह हमारी आस्था की केंद्र बन गयी है। हर बारह साल बाद इसके तटों पर जब आस्था का महामेला सिंहस्थ कुम्भ महापर्व के रूप में सजता है तो यह साधना,तपश्चर्या और पवित्रता के उद्घोषक के रूप में हमारे मानस को फिर जागृत करने लगती है।चर्मण्वती जिसे आज चम्बल कहा जाता है ,क्षिप्रा इसकी  सहायक नदी है। मार्केण्डेय पुराण में इन दोनों नदियों का उल्लेख आता है। स्कन्दपुराण के अनुसार क्षिप्रा उत्तरगामी है और उत्तर में बहते हुए ही चम्बल में जा मिलती है। क्षिप्रा का उल्लेख यजुर्वेद में भी है। वहाँ ‘ क्षिप्रे: अवे: पत्र: ‘ कहते हुए वैदिक ऋषियों ने क्षिप्रा का स्मरण किया है। इसका उल्लेख महाभारत ,भागवतपुराण ,ब्रह्मपुराण, अग्निपुराण, शिवपुराण लिंगपुराण तथा वामनपुराण में भी है। क्षिप्रा की महिमा का संस्कृत साहित्य में खूब उल्लेख है। महाकवि कालिदास ने क्षिप्रा का काव्यमंच उल्लेख करते हुए लिखा है -’ क्षिप्रावत: प्रियतम इव प्रार्थना चाटुकार: ‘और महर्षि वशिष्ट ने क्षिप्रा स्नान को मोक्षदायक मानते हुए क्षिप्रा और महाकाल की वन्दना इन शब्दों में की है।

महाकाल श्री क्षिप्रा गतिश्चैव सुनिर्मला।
उज्जयिन्यां विशालाक्षि वास: कस्य न रोचते।।
स्नानं कृत्वा नरो यस्तु महान् धामहि दुर्लभम्।
महाकालं नमस्कृत्य नरो मृत्युं न शोचते।।

Mahakal Shri Kshipra Gatishchev Sunirmala
Ujjayinya Vishalakshi Vasah Kasya Na Rochate
Snonam Kritva Naro Yastu Mahandhamahi Durlabham
Mahakal Namaskrutya Naro Mrityu Na Shochate

  • स्कंद पुराण में भी क्षिप्रा नदी की महिमा बताई है। यह नदी अपने उद्गम स्थल बहते हुए चंबल नदी से मिल जाती है। मान्यता है कि प्राचीन समय में इसके तेज बहाव के कारण ही इसका नाम क्षिप्रा प्रसिद्ध हुआ।
  • उज्जैन में ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर, शक्तिपीठ हरसिद्धि, पवित्र वट वृक्ष सिद्धवट सहित अनेक पवित्र धार्मिक स्थल होने के साथ १२ वर्षों में होने वाले सिंहस्थ स्नान के कारण क्षिप्रा नदी का धार्मिक महत्व है।
  • मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के योग बनने पर उज्जैन की पुण्य भूमि पर क्षिप्रा नदी के अमृत समान जल में कुंभ स्नान करने पर कोई भी व्यक्ति जनम-मरण के बंधन से छूट जाता है।
  • क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनके प्रिय सखा सुदामा ने विद्या अध्ययन किया। राजा भर्तृहरि और गुरु गोरखनाथ ने भी इस पवित्र नदी के तट पर तपस्या से सिद्धि प्राप्त की।
  • क्षिप्रा नदी के किनारे के घाटों का भी पौराणिक महत्व है। जिनमें रामघाट मुख्य घाट माना जाता है। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ का श्राद्धकर्म और तर्पण इसी घाट पर किया था। इसके अलावा नृसिंह घाट, गंगा घाट, पिशाचमोचन तीर्थ, गंधर्व तीर्थ भी प्रमुख घाट हैं।
  • उज्जैन नगर को शिव की नगरी माना जाता है। अत: यहां महाशिवरात्रि पर्व के साथ ही कार्तिक पूर्णिमा और गंगा दशहरा के दिन श्रद्धालु क्षिप्रा में स्नान के लिए बड़ी संख्या में आते हैं। स्नान, दान, जप कर वह धर्म लाभ अर्जित करते हैं।

स्त्राेत : भारतकाेश एवं सिंहस्थ उज्जैन