Menu Close

खंडन

हिन्दू धर्म के अनुसार सुषुप्तावस्था की सर्वोच्च स्थिति अर्थात पूर्णतः जडता !

जिस समय मानव गहन निद्रा में होता है, उस समय वह किसी भोग की कामना नहीं करता अथवा कोई स्वप्न नहीं देखता, यही सुषुप्तावस्था है । सुषुप्ति में आत्मा परमात्मा से एकरूप होता है एवं वह जीव आनंदावस्था में होता है । इसलिए सुषुप्तावस्था पूर्णतः जड कैसी हो सकती है ?

हिन्दू धर्म के तत्त्वों का शुद्धीकरण करने हेतु ईसाई धर्म का सजीव एवं ताजा जल अपरिहार्य है ! – ईसाई

आज पश्चिमी देश के अनेक बडे-बडे चर्च रिक्त हो गए हैं । स्वयं को धर्मगुरु कहलानेवाले लोगों द्वारा किए भ्रष्टाचार तथा यौन अत्याचार के कारण लोगों ने चर्च की उपेक्षा की है । जो पंथ उनके ही एक भी धर्मगुरु को सुसंस्कृत बनाने में असफल सिद्ध हुआ, वह अन्य लोगों का क्या मार्गदर्शन करेगा ?

हिन्दुओं के धर्मग्रंथों में ‘हिन्दू’ शब्द नहीं है, ऐसा कारण बताकर ‘हिन्दू राष्ट्र’ एवं ‘हिन्दुत्व’ का विरोध करनेवाली लेखिका के विचारों का खंडन

महाराष्ट्र टाईम्स में 'इन्हें कौन समझाए ?' इस शीर्षक से उज्ज्वला सूर्यवंशी का लेख प्रकाशित हुआ है। पुराण, महाभारत आदि ग्रंथों में ‘हिन्दू’ शब्द का उल्लेख न होने को आधार बताकर उन्होंने मोहन भागवत के 'हिन्दू राष्ट्र' एवं 'हिन्दुत्व' का विरोध किया है ! 'हिन्दू राष्ट्र' एवं 'हिन्दुत्व' का विरोध करनेवाली लेखिका के विचारों का श्री. अनंत बाळाजी आठवलेजीद्वारा किया गया खंडन यहां प्रस्तुत कर रहें हैं . . .

गाय दुधारु पशु होने के कारण ही केवल भारतीयों को उसके संदर्भ में गौरव प्रतीत होता था !

पश्चिमी लोगों का षडयंत्र ! ‘गाय केवल दुधारु पशु होने के कारण भारतीयों को उसके संदर्भ में गौरव प्रतीत होता था !’ इसका खंडन गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी ने ऋग्वेद एवं अथर्ववेद में स्थित गाय की महिमा सप्रमाण प्रस्तुत कर किया है, इसे यहां प्रस्तुत कर रहें हैं . . . .

वेदाभिमुखता से मानवाभिमुखता की ओर जाना है ! – महाश्वेता

महाश्वेता ! जनजाति विशेष कर फासे-पारधी जनजाति के लिए जीवन समर्पित करनेवाली विख्यात विदुषी हैं ! वो कहती हैं `मानव को वेदाभिमुखता से मानवाभिमुख करना है। वेद में बताया है कि सभी का आत्मा परमात्मा है। मैं जनजाति में उस परमात्मा को देखती हूं। अगला जन्म भी मैं इस जनजाति के लिए ही लूंगी !’ उनके इस वक्तव्य का गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी ने खंडन किया है उसे यहां प्रस्तुत कर रहें हैं . . .

वेद ऋषि पृथ्वी को समतल मानते थे ! ‘पृथ्वी गोल है’, उन्हें यह ज्ञात ही नहीं था ।

पृथ्वी गोल है । ऋषियों को यह ज्ञात था । गोल वस्तु का आदि एवं अंत नहीं होता । जहां से आरंभ करेंगे, वहीं पर अंत भी है । लंबाई तथा चौडाई वाली समतल वस्तु का आरंभ एवं अंत बताना संभव है; परंतु गोल पृथ्वी का आदि एवं अंत कैसे हो सकता है ?

कुछ वेदसूक्त स्त्रियों के नाम से हैं, तो वेदमंत्र पठन का विरोध किसलिए ?

वेद में लोपामुद्रा, घोषा, अपाला, वागाम्भृणी इन स्त्रियों के सूक्त हैं, यह सत्य है । वे ऋषिकन्या एवं ब्रह्मवादिनी थीं । उन्हें वेदमंत्र स्फूरित हुए । उनके मुख से एकाएक ये मंत्र निकले । वेद अपौरुषेय हैं । जो ऋषि हैं, वे त्रिकालदर्शी हैं । इन ब्रह्मवादिनी स्त्रियों के मुख से वे सूक्त प्रकट हुए । वे भी त्रिकालदर्शी हैं ।

सनातन हिन्दू धर्म अन्य पंथों जैसा नहीं !

‘इस्लाम रिलिजन (Religion), ‘ईसाई रिलिजन’, ऐसे जो कुछ हैं, उन धर्मों की (रिलिजन की) श्रेणी में वे हिन्दू धर्म को रखते हैं । `रिलिजन’ अर्थात `धर्म’ ऐसा अर्थ उन्होंने जानबूझकर किसी उद्देश्य से दिया है ।

पुरोगामी पत्रकार विनोद दुआद्वारा हिन्दू धर्मशास्त्र के मंत्रों की शक्ति के संदर्भ में किया गया दुष्प्रचार तथा उसका खंडन

एनडीटीवी के पुरोगामी पत्रकार विनोद दुआ ने ‘जन गण की मन की बात’ इस कार्यक्रम में हिन्दू धर्मशास्त्र में दी मंत्रशक्ति का उपहास किया है।

यूरोपियन ‘रिफॉर्मेशन’ (धर्मसुधार का आंदोलन) एवं ‘वैदिक प्रणाली का वारकरी पंथ’ एक समान !

प्रोटेस्टंट पंथ की भांति वैदिक प्रणाली का वारकरी पंथ तो मूल सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के २ टुकडे होकर उत्पन्न नहीं हुआ है। प्रोटेस्टंट एवं कैथोलिकों में जिस प्रकार से संघर्ष हुआ, उस प्रकार का संघर्ष अथवा भेद हिन्दू धर्म के वारकरी पंथ और अन्य पंथों के बीच नहीं हुआ।