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कुदृष्टि लगने का अर्थ क्या है ?

        वर्तमान के स्पर्धात्मक और भोगवादी युग में अधिकांश व्यक्ति ईष्र्या, द्वेषभाव, लोकेषणा, परलिंग की ओर अनिष्ट दृष्टि से देखने आदि विकृतियों से ग्रस्त होते हैं । इन विकृतिजन्य रज-तमात्मक स्पंदनों का कष्टदायक परिणाम सूक्ष्म से अनजाने में दूसरे व्यक्तियों पर होता है । इसे ही उस व्यक्ति को ‘कुदृष्टि लगना’ कहते हैं ।

१. कुदृष्टि लगने के उदाहरण

अ. इसका एक उदाहरण है, शिशु को कुदृष्टि लगना । हंसमुख अथवा मोहक, मनभावन शिशु को देखनेवाले कुछ लोगों के मनमें अनायास ही एक प्रकार का आसक्तियुक्त विचार आ जाता है । आसक्तियुक्त विचार रज-तमात्मक होते हैं । शिशु की सूक्ष्मदेह अति संवेदनशील होती है । इसलिए उस पर रज-तमात्मक स्पंदनों का दुष्प्रभाव पडता है और शिशु को कुदृष्टि लग जाती है ।

आ. कभी-कभी किसी व्यक्ति, प्राणी अथवा वस्तु के प्रति किसी व्यक्ति अथवा अनिष्ट शक्ति के मन में बुरे विचार आते हैं अथवा उसका मंगल उनसे देखा नहीं जाता । इससे निर्मित अनिष्ट तरंगों का उस मनुष्य, प्राणी अथवा वस्तु पर जो दुष्परिणाम होता है, उसे ‘कुदृष्टि लगना’ कहते हैं । किसी जीव के मनमें अन्य जीव के प्रति तीव्र मत्सर अथवा कुत्सित विचारों की मात्रा ३० प्रतिशत हो, तो उससे अन्य जीव को तीव्र कुदृष्टि लग सकती है । इस प्रक्रिया में दूसरे जीव को शारीरिक कष्ट की अपेक्षा मानसिक स्तर का कष्ट अधिक होता है । इसे ‘सूक्ष्म स्तर पर तीव्र कुदृष्टि लगना’ कहते हैं ।’

इ. अघोरी विधि करनेवालेद्वारा किसी व्यक्ति पर करनी (टिप्पणी १) जैसी विधि करवाने पर भी उस व्यक्ति को कुदृष्टि लग जाती है ।

टिप्पणी १ – गुडिया, नींबू, टाचनी इत्यादि घटकों को माध्यम बनाकर उस पर विशिष्ट मंत्र का प्रयोग कर काली शक्ति व्यक्ति की ओर प्रक्षेपित कर उसे कष्ट पहुंचाने का प्रयास किया जाता है ।

करनी की विशेषताएं

  • ‘करनी कोई विशिष्ट कार्य साधने के लिए की जाती है ।

  • कुदृष्टि लगने में किसी जीव की कुत्सित भावना ३० प्रतिशत होती है, तो करनी करने में यही ३० प्रतिशत से भी बढकर उग्र रूप धारण कर सकती है ।

  • जब कुदृष्टि के स्पंदन ३० प्रतिशत से अधिक मात्रा में कष्टदायक स्वरूप में कार्य करने लगे, तब उसका रूपांतर करनी सदृश घटना में होता है ।’

ई. अनिष्ट शक्तियोंद्वारा प्रक्षिप्त कष्टदायक शक्ति के कारण किसी जीव को कष्ट होना, इसी को कहते हैं ‘जीव को उस अनिष्ट शक्ति की कुदृष्टि लगना’ ।

२. कुदृष्टि लगने की सूक्ष्म-स्तरीय प्रक्रिया

अ. एक व्यक्ति के कारण दूसरे व्यक्ति को कुदृष्टि (नजर) लगने की सूक्ष्म-स्तरीय प्रक्रिया दर्शानेवाला चित्र

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१. ‘चित्रमें कष्टदायक स्पंदन :३ प्रतिशत’ – प.पू. डॉ. जयंत आठवले

२. ‘सूक्ष्म-ज्ञानसंबंधी चित्र में स्पंदनों की मात्रा : कष्टदायक शक्ति ३.२५ प्रतिशत’

३. अन्य कारण

  • ‘कुदृष्टि लगना, इस प्रकारमें जिस जीव को कुदृष्टि लगी हो, उसके सर्व ओर रज-तमात्मक इच्छाधारी स्पंदनों का वातावरण बनाया जाता है । यह वातावरण रज-तमात्मक नादतरंगों से दूषित होने के कारण उसके स्पर्श से उस जीव की स्थूलदेह, मनोदेह और सूक्ष्मदेह पर अनिष्ट परिणाम हो सकता है ।
  • कुदृष्टि किसी को भी लग सकती है – एक व्यक्ति, एक पशु, वृक्ष अथवा निर्जीव वस्तु

संदर्भ ग्रंथ : सनातन का सात्विक ग्रंथ ‘कुदृष्टि (नजर) उतारने की पद्धतियां (भाग १) (कुदृष्टिसंबंधी अध्यात्मशास्त्रीय विवेचनसहित)?