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महान योद्धा

असम को मुगलों से मुक्त करनेवाले हिन्दू योद्धा – लाचित बरफुकन (লাচিত বৰফুকন)

असम के लोग तीन महान व्यक्तियों का बहुत सम्मान करते हैं। प्रथम, श्रीमंत शंकर देव, जो १५ वी शताब्दी में वैष्णव धर्म के महान प्रवर्त्तक थे। दूसरे, लाचित बरफुकन, जो असम के सबसे वीर सैनिक माने जाते हैं।

तानाजी मालुसरे की वीरता तथा त्याग

प्रचुर प्रयासोंके पश्चात भी मुगलोंके आधिपत्यसे सिंहगढ पुन: जीतना असंभव था । ‘सिंहगढ पुन: जीतनेकी मुहीम’ पर तानाजी मालुसरेके अतिरिक्त शिवाजी महाराज किसी औरका नाम सोच भी न सकते थे । मुहीमकी भयावहताकी परवाह न करते हुए शेरदिल तानाजीने मरने अथवा मारनेकी प्रतिज्ञा की ।

वीर शिरोमणि दुर्गादासजी राठोड

वीर शिरोमणि दुर्गादासजी राठोड मेवाडके इतिहासमें स्वामिभक्तिके लिए जहां पन्ना धायका नाम आदरके साथ लिया जाता हैं । त्याग, बलिदान, स्वामिभक्ति एवं देशभक्तिके लिए वीर दुर्गादासजीका नाम इतिहासमें स्वर्ण अक्षरोंमें अमर है ।

स्वामीभक्ति तथा समर्पणका प्रतिक : वीर शिवा काशीद

महाराजने शिवाको ‘तुम्हें प्रति शिवाजी बनना है, यह बताया तो शिवाने झटसे महाराजके चरण पकडे और बडे आनंद और अभिमानसे कहा ‘मेरा जीवन तो धन्य हो गया महाराज । यदि मेरे समर्पणसे आप अर्थात स्वराज्य सुरक्षित हो सकता है, तो यह मेरा विशेष गौरव है ।’ शिवाकी बात सुनकर महाराजके नेत्र भर आए ।

‘मराठा नौदल प्रमुख’ सागरके सम्राट कान्होजी आंग्रे

शत्रुओंको तहस-नहस करके उनकी नींद उडानेवाले मराठा सेनानी, (सरदार) ‘सागराधिपति’ कान्होजी आंग्रे, लगभग २५ वर्षों तक भारतके कोंकणका सागरी तट स्वराज्यमें सुरक्षित रखनेमें सफल रहे । वे मृत्यु पर्यंत अपराजित रहे ।

हिंदवी स्वराज्य के लिए अपना प्राणार्पण करनेवाले ‘शूर सेनानी’ बाजी प्रभू देशपांडे

पन्हालगढको सिद्दी जौहरने घेरा डाला था । उस भयानक घेरेसे छत्रपतीको सुरक्षित निकालकर विशालशैलतक पहुंचानेकी व्यवस्था बाजीप्रभूजीने केवल शौर्य, पराक्रमसे ही नहीं अपितु अपने प्राणोंकी भी बाजी लगाकर अपना नाम सार्थ किया ।