सत्य के शोध के लिए स्वयं कृति कर समाज को दिशा देनेवाले करपात्री स्वामीजी हम सभी के लिए अत्यंत पूजनीय है । उनके नेतृत्व में वर्ष १९६६ में हुआ गोरक्षा आंदोलन भारतीय इतिहास का सबसे बडा आंदोलन कहा जा सकता है ।
कर्तव्य एवं कर्म करते रहना ही वास्तविक ईश्वरसेवा है’, ऐसे प्रवृत्तिमार्ग की शिक्षा देनेवाले संत ! वारकरी संप्रदाय में निहित एक वरिष्ठ एवं श्रेष्ठ संत, ऐसी उनकी ख्याती है। श्री विठ्ठल ही उनके परमदेवता थे। वे कभी पंढरपुर नहीं गए, अपितु प्रत्यक्षरूप से श्री विठ्ठल ही उनसे मिलने आ गए !
अन्याय एवं अत्याचार होते हुए देखकर दयालु संत भी उसका प्रतिकार करते हैं, केवल प्रेक्षककी भूमिका नहीं रखते, यह सीख लेकर हिंदुओंको भी जागृत होकर वैध मार्गसे अत्याचारका प्रतिकार करना चाहिए ।भक्तको ईश्वरके तारक एवं मारक दोनों रूपोंकी उपासना करना आवश्यक है ।
मराठी भक्तिपरंपरामें अनन्यसाधारण स्थान रखनेवाले संत तुकाराम महाराजने संसारके सर्व सुख-दुःखोंका सामना साहससे कर अपनी वृत्ति विठ्ठलचरणोंमें स्थिर की । संत तुकाराम महाराजकी जानकारी देनेवाला यह लेख...
संत एकनाथजीने बाल्यावस्थामें एक कीर्तनमें गुरुचरित्रका महत्त्व सुना । उनके मनपर वह अंकित हो गया इसलिए उन्होंने किर्तनकारसे प्रश्न पूछा कि, 'गुरु कैसे मिलेंगे ?'।
‘करपात्र स्वामी’, अर्थात् ‘कर’ ही है पात्र जिनका - ऐसे स्वामी हरिहरानंद सरस्वती संसारमें ‘करपात्रीजी’के नामसे प्रसिद्ध हुए । वे एक युगपुरुष थे ।
नामदेव महाराज महाराष्ट्रके प्रसिद्ध संत है । नामदेवजी विठ्ठल भगवानके बहुत प्रिय भक्त थे । उनका सारा दिन विठ्ठल भगवानके दर्शन, भजन कीर्तनमें ही व्यतित होता था । सांसारिक कार्योंमें उनका मन नहीं लगता था ।
तुकडोजी महाराज एक महान व स्वयंसिद्ध संत थे । उनका प्रारंभिक जीवन आध्यात्मिक और योगाभ्यास जैसे साधनामार्गोंसेजैसे साधनामार्गोंसे पूर्ण था । उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवनका अधिकांश समय रामटेक, सालबर्डी, रामदिघी और गोंदोडाके बीहड़ जंगलोंमें बिताया था।
संत जनाबाईका परिचय ‘नामयाकी दासी’ अर्थात् संतनामदेवजीकी दासीके रूपमें प्रसिद्ध है । उन्होंने अपने काव्यके माध्यमसे दास्यभक्ति, वात्सल्यभाव, योगमार्ग, इनके साथ-साथ धर्मरक्षाके लिए हुए अवतारोंका कार्य भी वर्णित किया है ।
अहिल्याबाई होलकरको ‘पुण्यश्लोक’ एवं ‘धर्मपरायण’ राज्यकर्ता स्त्रीके रूपमें देश-विदेशमें जाना जाता है । उन्होंने ही मुसलमान आक्रमकोंद्वारा ध्वस्त सहस्त्रों मंदिर, नदियोंके घाट बनवाए । उन्हींके कारण हमारे मंदिर, तीर्थक्षेत्र एवं हिंदु धर्म सुरक्षित रह पाए ।