जिनका नाम लेकर दिनका शुभारंभ करे, ऐसे नामोंमें एक हैं, महाराना प्रताप । उनका नाम उन पराक्रमी राजाओंकी सूचिमें सुवर्णाक्षरोंमें लिखा गया है, जो देश, धर्म, संस्कृति तथा इस देशकी स्वतंत्रताकी रक्षा हेतु जीवनभर जूझते रहे !
महाराजा भोज ने जहाँ अधर्म और अन्याय से जमकर लोहा लिया और अनाचारी क्रूर आतताइयों का मानमर्दन किया, वहीं अपने प्रजा वात्सल्य और साहित्य-कला अनुराग से वह पूरी मानवता के आभूषण बन गये। मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं।
प्रख्यात बाजीराव प्रथम ने मात्र बीस वर्ष की आयु में अपने पिता से उत्तराधिकार में पेशवा का दायित्व ग्रहण किया और जिसने अपने शानदार सैन्य जीवन द्वारा हिंदूस्थान के इतिहास में एक विशेष स्थान बना लिया।
क्षात्रतेज तथा ब्राह्मतेजसे ओतप्रोत श्री गुरु गोविंदसिंहजीके विषयमें ऐसा कहा जाता है कि, ‘यदि वे न होते, तो सबकी सुन्नत होती ।’ यह शतप्रतिशत सत्य भी है । देश तथा धर्मके लिए कुछ करनेकी इच्छा गुरु गोविंदसिंहमें बचपनसेही पनप रही थी ।
संभाजीराजाने अपनी अल्पायुमें अलौकिक कार्य किए, उससे पूरा हिंदुस्थान प्रभावित हुआ । २४ से ३२ वर्षकी आयुतक शंभूराजाने मुगलोंकी पाश्विक शक्तिसे लडाई की एवं एक बार भी यह योद्धा पराजित नहीं हुआ ।
मध्यकालीन भारत में विदेशी आतताइयों से सतत संघर्ष करने वालों में बुंदेल केसरी छत्रसाल का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । बुंदेल केसरी छत्रसाल ने वस्तुतः अपने पूरे जीवनभर स्वतंत्रता और सृजन के लिए ही सतत संघर्ष किया। शून्य से अपनी यात्रा प्रारंभ कर आकाश-सी ऊंचाई का स्पर्श किया।
मुघल सेना स्वराज्यमें चारों ओरसे घुसकर आक्रमण कर रही थीं । रायगढपर संभाजी महाराजकी रानी येसूबाई एवं स्वराज्यके प्रमुख अधिकारियोंने एकत्रित आकर राजाराम महाराजको मंचकारोहण कर उन्हें ‘छत्रपति’ घोषित किया ।
छत्रपति शिवाजी महाराजने मुघलोंको मसल दिया, पातशहाओंको नष्ट किया एवं शत्रुओंको रगड दिया । उन्होंने देवीदेवता एवं देवालयोंकी रक्षा की ।