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हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देनेवाली गुरुकुल व्यवस्था का आरंभ करना आवश्यक – पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अमृतमहोत्सव के उपलक्ष्य में ‘हिन्दू राष्ट्र जागृति अभियान’ !

मध्यप्रदेश में ‘हिन्दू राष्ट्र जागृति अभियान’ का शुभारंभ !

उज्जैन (मध्यप्रदेश) : धर्मशिक्षा के कारण मुसलमानों को ‘जीवन में क्या करना है, इसकी दिशा स्पष्ट है। अतः पूरे विश्व में वे ‘इस्लामी स्टेट’ स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं !

हिन्दुओं को धर्मशिक्षा न रहने से ‘जीवन में क्या करना है, उन्हें स्पष्ट नहीं है। वे ‘खाओ, पियो और मजे करो’ इस चार्वाक तत्त्वज्ञान के अधीन हो गए हैं। लॉर्ड मेकॉले की शिक्षा पद्धति के कारण ऐसा हो गया है।

इसलिए धर्मशिक्षा देनेवाली ‘गुरुकुल व्यवस्था’ का पुनः आरंभ करना चाहिए। हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा प्रतिपादित किया। वे परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के अमृतमहोत्सव के उपलक्ष्य में चल रहे ‘हिन्दू राष्ट्र जागृति अभियान’ के अंतर्गत आयोजित व्याख्यान में बोल रहे थे।

‘किड्डू सिटी प्ले विद्यालय’ में आयोजित कार्यक्रम में जिज्ञासुओं को मार्गदर्शन करते हुए पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी

‘हम हिन्दुस्थानी’ एवं हिन्दू जनजागृति समिति के संयुक्त तत्वावधान में यहां के ‘किड्डू सिटी प्ले विद्यालय’ में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम का सूत्रसंचालन श्री. सुमित व्यास ने किया।

पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेद्वारा उपस्थित अन्य सूत्र . . .

१. ‘हिन्दू धर्म’ के शत्रु ‘हिन्दू’ ही हैं ! जो धर्माचरण नहीं करते वे अज्ञानी हैं। लॉर्ड मेकॉले की शिक्षा ग्रहण कर जो भोगवादी एवं धर्मनिरपेक्ष बने, वे हिन्दू धर्म के भी शत्रु बने। इसलिए हिन्दुओं का अध:पतन हो रहा है !

२. राज्यसंविधान में मुसलमानों को धर्मशिक्षा देने की व्यवस्था है; परंतु हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देने की व्यवस्था क्यों नहीं ?

३. आगामी कालावधि में होनेवाला युद्ध, धर्म-अधर्म का युद्ध है, अधर्म को धर्म ही पराजित कर सकता है !

४. समर्थ रामदास स्वामी-छत्रपति शिवाजी महाराज, भगवान कृष्ण-पांडव एवं चाणक्य तथा चंद्रगुप्त मौर्य के उदाहरण से स्पष्ट है कि जब ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज एक होता है, तब धर्मसंस्थापना का कार्य सहज रूप से होता है। आज हिन्दुओं को इन दोनों तेज की आवश्यकता है। ये दोनों तेज केवल और केवल ‘धर्माचरण’ से प्राप्त हो सकते हैं !

५. परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने समय समय पर ‘वर्ष १९९७ से २०२५ तक क्या क्या होगा ?’ इस संदर्भ में बताया था। साधना से त्रिकाल ज्ञान की प्राप्ति होती है। परात्पर गुरुदेवजी ने जो बताया, उसके अनुसार ही आज घटनाएं होती दिखाई दे रही हैं। इससे उनके द्रष्टेपन का अनुभव हम साधक ले रहे हैं !

क्षणिका

सभी उपस्थित धर्माभिमानी पू. डॉ. पिंगळेजी का मार्गदर्शन मंत्रमुग्ध हो कर सुन रहे थे। व्याख्यान के पश्चात जिज्ञासुओं ने अपनी शंकाओं का निरसन करा लिया।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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