षष्ठ अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन का द्वितीय दिवस
‘लोकतंत्र की निरर्थकता’ संबंधी चर्चासत्र में लोकघाती प्रवृत्तियों पर कठोर प्रहार !
विद्याधिराज सभागृह, रामनाथी, गोवा – पिछले दो मास से कश्मीर में हो रही घटनाएं देखें, तो वहां आतंकी कृत्य अथवा अलगाववाद नहीं ‘एक संपूर्ण युद्ध’ अर्थात ‘जिहाद’ चल रहा है, यह स्पष्ट है । वहां के हिन्दुआें का दमन यह विषय तो है ही; परंतु साथ ही यहां जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने का भी षड्यंत्रही चल रहा है । विशेष बात यह है कि ऐसा करने के संबंध में उनके एक नेता ने बताया कि हम लोकतंत्र के विरोधक हैं; परंतु कश्मीर में लोकतंत्र का उपयोग कर जिहाद कैसे करें, यह हमें पता है । ऐसे में कुछ अलगाववादी नेताआें के साथ कश्मीर की समस्या सुलझाने का भारत शासन का प्रयत्न कितना व्यर्थ और कश्मीर को विनाश की ओर ले जानेवाला है, यह पता चलता है । ‘लोकतंत्र की बोली बोलनेवाले अलगाववादी नेताआें को ही पहले समाप्त किया जाएगा’, ऐसी घोषणा वहां के जिहादियोंने की है । इसलिए धीरे-धीरे कश्मीर को भारत से अलग होते हुए और वहां इस्लामिक राज्य स्थापित होते हुए हमें देखना पडेगा, ऐसा मार्गदर्शन ‘पनून काश्मीर’ (हमारा काश्मीर) संगठन के अध्यक्ष श्री. अजय च्राेंंगू ने किया । वे १५ जून को सवेरे ‘लोकतंत्र की निरर्थकता’ इस उद्बोधन सत्र में ‘कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास : विद्यमान शासन की राजनीतिक नीति और उपाययोजना’ इस विषय पर बोल रहे थे ।
इस अवसर पर ‘नैशनल सेंटर फॉर हिस्टॉरिकल रिसर्च एंड कम्पेरिटिव स्टडी’के श्री. नीरज अत्री, ‘तरुण हिंदु’ संगठन के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. नील माधव दास एवं हिन्दू जनजागृति समिति के राजस्थान समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने अपने विचार रखे ।
श्री. च्रोंगू ने कहा कि,
१. कश्मीर मेें केवल भौगोलिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष नहीं चल रहा, यह तो भारत की मूल संस्कृति से कश्मीर को तोडने का प्रयत्न किया जा रहा है ।
२. यह प्रक्रिया १९४७ से ही योजनाबद्ध रूप से चल रही है और वर्ष १९९० के दशक से वह दिखाई देने लगी ।
३. पहले वहां भूमि खरीदने के लिए मुसलमानों को ढेर सारा धन प्रदान किया गया । शासकीय भूमि पर कब्जा किया गया और शासन की ही सहायता से वह अल्प राशि में नियमित की गई । अब वहां रोहिंग्या मुसलमानों को अर्थात विदेशी मुसलमानों को बसाया जा रहा है, उन्हें आधार कार्ड, राशन कार्ड दिया जा रहा है । ये यहां के शासन के नेतृत्व में हो रहा है ।
४. इसलिए जम्मू-कश्मीर भगाए गए हिन्दुआें का वहां पुनर्वास करना, अत्यधिक आवश्यक हो गया है ।