विद्याधिराज सभागृह, रामनाथी (गोवा) : कश्मीरी हिन्दू ‘निर्वासित’ नहीं ‘विस्थापित’ हैं । आज केंद्रशासन कश्मीर में आतंकवादियों के परिवारों को १२ सहस्र रुपए, तो विस्थापित कश्मीरी हिन्दुआें को मात्र केवल २ सहस्र रुपए देता है । कश्मीरी हिन्दुआें को रहने के लिए दी हुई छावनियों का हाल बहुत बूरा है । तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने २० लाख रुपयों का अनुदान दिया था; अब विद्यमान सरकार ४० लाख रुपए देता है । क्या हिन्दुआें के वंशविच्छेद का मूल्य ४० लाख रुपए है ? विस्थापित कश्मीरी हिन्दुआें को यह आर्थिक सहायता नहीं, तो उनका न्यायोचित अधिकार का केंद्रशासित ‘पनून कश्मीर’ चाहिए । हमारी भी यही मांग है । एक पत्रकार ने पूछा कि, ‘आप कश्मीरी हिन्दुआें के विस्थापन को मानवाधिकार का सूत्र क्यों बनाते हैं ?’ इससे प्रश्न निर्माण होता है कि, ‘क्या इस देश में केवल मुसलमान एवं इसाइयों को ही मानवाधिकार है ?’ प्रसारमाध्यम कश्मीरी हिन्दुआें को मानव नहीं समझते क्या ? कश्मीर के अनेक स्थानों के नामों में परिवर्तन कर हिन्दुआें का अस्तित्व मिटाने का प्रयास किया जा रहा है । अमरनाथ यात्रा को जाने के लिए वीजा लेने की नौबत न आए, इसलिए हिन्दुआें को जाग्रृत रहना आवश्यक है । धारा ३७० के कारण कश्मीर में भारत का कोई भी नागरिक नहीं रह सकता, ऐसे में २५ सहस्र रोहिंग्या मुसलमान कैसे पहुंच सकते हैं ? यह हो सकता है, तो हमारी ‘पनून कश्मीर’ की मांग भी प्रधानमंत्री तुरंत मान्य कर हिन्दुआें का न्यायोचित पुनर्वसन करें ।’’
कश्मीरी हिन्दुआें को केंद्र आर्थिक सहायता नहीं, न्यायोचित अधिकार दें ! – श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति
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