कोई भी उठता है एवं हिन्दुत्वनिष्ठ संघटनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करता है !
ऐसी मांग करनेवाले कभी जिहादी आतंकवाद एवं देशद्रोहियों के संदर्भ में क्यों नहीं बोलते ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात
नई देहली : यहां के इंडियन लॉ इन्स्टिटयूट में आयोजित एक परिषद में दक्षिण एशिया अल्पसंख्यक अधिवक्ता संघटन ने (‘सामला’ने) अल्पसंख्यकों की बढती हत्याओं के संदर्भ में चिंता व्यक्त की। साथ ही हिन्दुत्वनिष्ठ संघटनों पर प्रतिबंध लगाने हेतु तथा उन्हें आतंकवादी संघटन घोषित करने हेतु वैधानिक कार्रवाई आरंभ करने का प्रस्ताव पारित किया है !
इस परिषद में ऐसा भी प्रतिपादित किया गया है कि; दलित, अल्पसंख्यक एवं आदिवासियों के प्राण भी महत्वपूर्ण हैं। आयोजकों ने दावा किया है कि, परिषद में भारी संख्या में बौद्धिक एवं वंचित समाज संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित थे। (इससे पूर्व कभी नाम भी सुनाई न देनेवाले संघटन के पीछे धर्मांध शक्तियों का ही हाथ है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है ! उन्होंने दलित समाज, ईसाई तथा सिक्ख धर्मियों के कुछ नेताओं से मिलकर ‘सामला’ संघटन का ‘गठजोड़’ किया है एवं उसे ‘बौद्धिक, वंचित’ ऐसी बिरुदावली भी लगाई है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) इस परिषद में बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी, अभिनव भारत, हिन्दू सेना, सनातन संस्था, हिन्दू जनजागृति समिति आदि हिन्दू संघटनों पर प्रतिबंध लगाने एवं आतंकवादी संघटन के रूप में घोषित करने हेतु वैधानिक कार्रवाई करना आरंभ करने का प्रस्ताव पारित किया गया। (इन में किसी भी हिन्दू संघटन को अब तक किसी भी न्यायालय ने किसी भी घटना में अपराधी नहीं सिद्ध किया है। फिर भी एक अधिवक्ता संघटनद्वारा उन पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने में ही उसका कानून के संदर्भ में ‘अगाध’ ज्ञान दिखाई देता है ! इसके विपरीत अनेक इस्लामी आतंकवादी संघटन आतंकवादी गतिविधियों में प्रत्यक्ष रूप से पकडे जाने से उन पर बंदी लगाई गई है, क्या इस संघटन को यह ज्ञात नहीं है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
१. इस परिषद में ‘सामला’ के अध्यक्ष महमूद प्रचा, दलित-ईसाई राजनीतिक कार्यकर्ता जॉन दयाळ, राष्ट्रीय इसाई महासंघ की डॉ. अनिता बेंजामिन, पंथक सेवा दल के कर्तारसिंग कोचर, उर्दू पत्रकार अलिम नकवी एवं देहली सफाई कर्मचारी संघटन के अध्यक्ष हरनाम सिंह उपस्थित थे।
२. परिषद को संबोधित करते हुए महमूद प्रचा ने कहा कि; दलित, आदिवासी एवं अल्पसंख्यकों की परिस्थिति अमेरिका के निग्रो जैसी ही है। उन्होंने सामाजिक नेताओं पर आलोचना करते हुए कहा कि, इस समस्या को हल करने हेतु उन्होंने कोई प्रयास नहीं किए। (अमेरिका के निग्रो एवं भारत के दलित, आदिवासी एवं अल्पसंख्यकों की परिस्थिति में जमीन-आस्मान का अंतर है ! भारत में दलित, आदिवासी एवं अल्पसंख्यकों को नौकरी एवं शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण, विद्यावेतन तथा अनुदान आदि सुविधाएं प्राप्त होती हैं। वैसा अमेरिका में निग्रो के संदर्भ में नहीं होता, यह क्यों छिपाया जा रहा है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) प्रचा ने न्यायव्यवस्था की भी आलोचना करते हुए कहा कि, उसे परिस्थिति का भान नहीं है ! (क्या, यह न्यायालय का अपमान नहीं ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात