एक समय था छत्रपति शिवाजी महाराज का ! बाल शिवाजी पुणे में रहते हुए उन्होंने देखा कि एक कसाई गाय को खींच कर ले जा रहा था। वह उस गाय की हत्या करने ले जा रहा है, ऐसा पता चलते ही तत्काल बाल शिवाजी ने अपनी तलवार से उस कसाई के हाथ तोडे एवं गाय को मुक्त किया। यह हिन्दवी स्वराज्य स्थापन होने से पूर्व प्रथम गोरक्षण एवं हिन्दवी स्वराज्य की पहचान थी। मुगलों के राज्य में एक सरदार के लडके द्वारा कसाई का हाथ तोडना मुगलों की दृष्टि से बहुत बडा अपराध था; परंतु उस समय मुगल शासकों को भी बाल शिवाजी पर कार्रवाई करने का साहस नहीं हुआ। ऐसी धमकवाले छत्रपति शिवाजी महाराज को आगे ‘गोब्राह्मणप्रतिपालक’ की उपाधि मिली। इस संदर्भ में तथाकथित इतिहासकार कुछ भी बोलें, यह अलग बात है ! परंतु क्या महाराज ने इससे यह संदेश नहीं दिया कि, शत्रु के राज्य में भी गोरक्षा का कार्य करना करना संभव है एवं करना चाहिए ?
वर्ष १८५७ के स्वातंत्र्यसंग्राम का आरंभ भी गोमाता पर श्रद्धा के कारण ही हुआ है ! बंदूक की गोलियों को गाय की चरर्बी से बनाए आच्छादन लगाने के कारण धार्मिक भावनाएं आहत हुर्इं एवं मंगल पांडे का शौर्य जागृत होकर लडाई आरंभ हुई। हिन्दुओं की दृष्टि में गाय का महत्त्व कितने उच्च स्तर का है, शासनकर्ता इसे भी ध्यान में लें। जिन्हें गाय का महत्त्व ज्ञात नहीं है, वे हिन्दू हैं ही नहीं !
गाय ने सर्वसाधारण लोगों के जीवन में उसके दूध, गोमूत्र तथा गोमय आदि के कारण उच्च स्थान प्राप्त किया है। हिन्दुओं की ऐसी श्रद्धा है कि, गाय में ३३ कोटि देवी-देवताओं का वास है। इसलिए वह हिन्दुओं के लिए पूजनीय है। स्वाभाविक ही जो पूजनीय है, उसकी रक्षा के लिए जागृत हिन्दू समाज किसी भी कीमत पर प्रयासरत रहता है। गोरक्षा के कारण हो रही हिंसा किसी को स्वीकार नहीं है; परंतु गोरक्षकों पर हो रहे प्राणघातक आक्रमणों के संदर्भ में एक निश्चित ऐसी कार्रवाई एवं आक्रमणों का विरोध भी नहीं किया जाता, इसे भी कोई अस्वीकार नहीं कर सकता !
छत्रपति शिवाजी महाराज ने गोरक्षा का मार्ग बताया है। वर्तमान में शिवाजी महाराज नहीं हैं, यह भाग्य की बात है, अन्यथा आज के पुरो(अधो)गामी एवं तथाकथित विचारक आदि ने उन्हेंही कटघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी होती ! वर्तमान में गोवंश रक्षा का अर्थ है स्ववंश रक्षा एवं हिन्दू समाज वैधानिक मार्ग से इसे निश्चित ही निभाएगा !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात