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मृत्यु को तिनके की भांति माननेवाली रानी पद्मावती का जौहर !

हिन्दुआें को तेजहीन बनाने हेतु आजतक उनके सच्चे एवं ज्वलंत इतिहास को कभी सामने नहीं आने दिया गया । दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता के पश्‍चात के राज्यकर्ताआें ने भी उसे दबाकर ही रखा । अतः आज कोई भी आता है और हिन्दू धर्म, हिन्दू देवता, हिन्दू संत, राष्ट्रपुरुष आदि का अश्‍लाघ्य अनादर करता है और हिन्दू उसे चुपचाप सहते हैं और तो और उसकी सराहना भी करते हैं । हिन्दू यदि अपने ज्वलंत इतिहास को समझ लें, तो आज उनमें व्याप्त तेजहीनता अपनेआप समाप्त हो जाएगी । उनमें उत्पन्न तेजोबल के कारण कोई भी उनके इतिहास का विकृतीकरण करने का साहस नहीं कर पाएगा ! इसीलिए हिन्दुओ, अपना ज्वलंत इतिहास गंभीरतापूर्वक समझें !

आज सभी स्तरों पर विशेषरूप में राजस्थानी नागरिक एवं उनके संगठन, विवादित हिन्दी चलचित्र ‘पद्मावती’ का तीव्र विरोध कर रहे हैं । इस चलचित्र का विरोध करनेवालों ने यह आरोप लगाया है कि, इस चलचित्र में इतिहास का विकृतीकरण किया गया है और रानी पद्मावती को नाचते हुए दिखाया गया है । रानी पद्मावती कितनी महान थीं, उनका त्याग कितना अतुलनीय था; यह पैसा और प्रसिद्धि के लालची चलचित्र क्षेत्र में कार्यरत लोगों के ध्यान में कदापि नहीं आएगा, पर हिन्दुआें को वह समझ लेना चाहिए । अल्लाउद्दीन खिलजी नामक उस समय के जीवंत राक्षस की क्रूर इस्लामी छाया भी अपने शरीर पर न पडे; इसके लिए रानी पद्मिनीदेवी ने १५ सहस्र राजपूत महिलाआें के साथ धधकते यज्ञकुंड में सामूहिक रूप से आत्मसमर्पण कर ‘जौहर’ किया । शरीर पर रौंगटे खडे कर देनेवाले और क्रूर आक्रमणकारियों की पाशवी वृत्ति को उजागर करनेवाला यह ज्वलंत इतिहास हिन्दुआें को अवश्य समझ लेना चाहिए । इसके लिए प्रस्तुत लेख प्रकाशित कर रहे हैं !

१. पवित्रता की प्रतीक ‘जयहर’ यज्ञवेदी (जौहर कुंड)

‘सती धर्म’ का सुलगता हिमालय समान विशाल आदर्श सामने रखनेवाली यज्ञवेदी ‘जयहर’ राजपूतों के लिए देवतातुल्य है । पवित्रता की प्रतीक ‘जयहर’ यज्ञवेदी लोकसमाज को कृतार्थ करने में सक्षम है । ‘जयहर’ दर्शन मन का मैल धो डालता है । वह पापहारी है । सतीधर्म हेतु आत्मसमर्पण करनेवाले जौहर का पुण्यपावन मंगल दिवस राजपूतों का धर्मत्यौहार है । केवल स्मरणमात्र से ही लोगों को पवित्र करने में समर्थ ‘जयहर’ कुंड के दर्शन करने स्वर्ग से प्रत्यक्ष देवता भी नीचे उतर आते हैं, ऐसी यदि राजपूतों की अविचल आस्था हो, तो उसमें आश्‍चर्य कैसा ?

२. राजस्थान के वातावरण में अत्याधुनिक महिला को अंतर्मुख करने की क्षमता

राजस्थान में जौहर की, सतीत्व की, मृत्यु को तिनके के समान समझनेवाली महिलाआें की सांसें बसी हैं । इस हवा में आज की अत्याधुनिक महिलाएं तनिक सांस लें । उनकी सांसों को अपने हृदय में जाने दें और उसे अपनी नस-नस में बहने दें । परमतेजस्वी क्षत्राणियों की ज्वलंत भाव-भावनाआें का तनिक स्वाद चखेेंं । ‘हम भारत की नारी हैं । फूल नहीं चिंगारी हैं !’ इसी चिंगारी में ही स्वरक्षा का सामर्थ्य है । इस हवा में आज भी भोग-प्रवृत्त अत्याधुनिक महिला को अंतर्मुख करने की क्षमता है ।

३. महारानी पद्मिनीदेवी का जौहर

परतंत्र की कल्पनामात्र भी राजपूतों के अंत:करण को शल्य की भांति चुभती थी । अब होगा अंतिम संघर्ष ! अंतिम पर्व ! सत्य-शिव-सुंदर की त्रिपुटी के प्राण लेने को तुले नराधम अल्लाउद्दीन के अत्याचारों के टुकडे-टुकडे करने की भयावह गर्जना गूंज उठी । जितने बचे थे, वे सभी राजपूत वीर महाराणा लक्ष्मणसिंह के साथ रणभूमि में आत्मबलिदान हेतु सिद्ध हो उठे । लडते-लडते शत्रु को मारते-मारते अपने प्राणों की आहुति देने उतावले हो उठे ।

चित्तौड पर १५ सहस्र मानांकित कुलांगनाएं थीं । वे वीरांगनाएं अग्निनारायण को अपने प्राणों की आहुति देकर प्रसन्न करने हेतु उतावली हो उठीं । मंगल, चिन्मय जौहर रूपी व्रत के पश्‍चात ही रणचंडी के रणमहायज्ञ की पूर्णाहुती होती । शेष बचे राजपूत वीर रणयज्ञ में अपने प्राणों को होम कर इसका समापन करनेवाले थे । राजपूतवीरों ने कुल की महिलाआें के जौहरव्रत का श्रीगणेश किया ।

चित्तौड की अंतिम आहुति ! भव्य राजमंदिर के तल में बडी लंबी गुफा में पुण्यपावन तेजस्विनियों के सतीत्व की रक्षा हेतु राजपूत वीरों ने चिता रची । लंबीचौडी सुरंग में शालवृक्ष एवं चंदन की अनेक मन लकडियां रची गईं । सतीत्व की रक्षा हेतु निष्कलंक एवं धैर्यवान महायात्रा की पूर्वसिद्धता हो चुकी थी ।

२६.८.१३०३ चित्तौड के पावन, दिल दहला देनेवाले, इतिहास का चिरस्मरणीय परममंगल दिन आया । पौ फटने से पहले ही सभी राजपूत वीरांगनाआें ने स्नान किया । महारानी पद्मिनीदेवी ने भी बाह्ममुहुर्त पर स्नान किया, उसके पश्‍चात अपने नित्य धार्मिक विधि संपन्न किए । अपनी कुलदेवी भगवती दुर्गादेवी एवं भगवान एकलिंगजी का पूजन किया । सवत्स धेनुपूजन किया । गजराज की पूजा की । राजपुरोहितों को हीरे, माणिक, रत्न एवं सुवर्ण का दान देकर उनसे आशीर्वाद लिया । परममंगल स्त्रियों ने सुहागनों के वस्र एवं बहुमूल्य अलंकार धारण किए । धैर्यवान एवं शांत महारानी पद्मिनीदेवी मंगल कलश लेकर चल पडी ।

महारानी पद्मिनीदेवी के पीछे-पीछे १५ सहस्र कुलीन महिलाएं मंगल कलश लेकर चल पडीं । पावन एवं विस्तीर्ण अग्निकुंड में रानी पद्मिनीदेवी ने अपना पग रखा । रची हुई विशाल चिता के मध्यभाग में स्वयं महारानी पद्मिनीदेवी बैठीं । आसपास की सभी कुलीन महिलाएं परममंगल जौहर के गीत गाने लगीं । उस मंत्रमुग्ध करनेवाली धीर-गंभीर वाणी से राजपूतवीरों की चित्तवृत्तियां भी कांप उठीं ।

कुछ ही क्षणों में चिता धधक उठी । अग्निज्वालाएं ऊंची उठने लगीं । राजपूतवीर इन दिल दहलती अग्निज्वालाआें की ओर एकटक देखते हुए निश्‍चल खडे थे । उनकी आंखों में आंसू नहीं थे । उनसे प्रतिशोध के दहकते अंगारे निकल रहे थे । अदम्य साहस, असीम तेजस्विता, अद्भुत त्याग एवं दिव्यतम वीरभाव की मूर्ति बनीं मानिनियां हंसते-हंसते अग्निनारायण को अपने प्राणों की आहुति दे रही थीं । उन्हें मृत्यु का भय नहीं था, अपितु मृत्यु ही उनसे भयभीत थी । जलती, टूटती लकडियों के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर सुनाई नहीं दे रहा था । इस अद्भुत त्यागमय दीप्ति से पूरे विश्‍व की आंखें चौंधिया गई थी । दिनकर अस्त हुआ और सबकुछ समाप्त हो गया ।

जिसके विस्तीर्ण मुख से चीखों का लावा निकल रहा था, वह ज्वालामुखी अब शांत हो चुका था; परंतु राजपूतवीरों के अंत:करण में धधकते ज्वालामुखी में विलक्षण उबाल था । हे रक्तपिपासु, भोग को ही देवता माननेवाले नरराक्षस, तुझे देवसुंदरी सौंदर्यवती पद्मिनी चाहिए थी ना ! अरे नरपिशाच, सतीत्व की प्रतीक, गंगाजल जैसी पवित्र, निष्कलंक पद्मिनीदेवी तो मानव समाज की सहृदयता में शोक की सरिता बहाते हुए कब की स्वर्ग सिधार चुकीं । नरक की उपासना करनेवाले लज्जाहीन शैतान, पुण्यपावन पद्मिनीदेवी की राख को भी तू स्पर्श नहीं कर पाएगा ।

४. ‘जयहर (जौहर) कुंड’ एक धधकता ज्वालामुखी

२६.८.१३०३ को गंगाजल जैसी पवित्र एवं निष्कलंक मानिनी तेजस्विनियों के जौहर का यह परममंगल दिवस एवं दहकते जौहर की पवित्र यज्ञवेदी को स्वदेश स्वधर्म के लिए लडनेवालों को संजीवनी प्रदान करनेवाला विशाल ‘जयहर कुंड’ ज्वालामुखी ही है ! आज भी इस ज्वालामुखी से भीषण चक्रवात के बाहर आता है । जौहर के परमपवित्र दिन से लेकर आजतक उस पुण्यपवित्र ‘जयहर’ कुंड में कोई नहीं जा पाया । वह शुचि तीर्थ, किसी के स्पर्श की अशुचि नहीं सह सकता । कितनी भी आंखें फाडकर देखो, तो भी नहीं दिखाई देगा, ऐसे घने अंधकार में स्थित ‘जयहर’ कुंड में दीप लेकर जाने का साहस करेंगे, तो उस यज्ञवेदी की रक्षा करनेवाले अंदर के सहस्रों नाग अपनी प्रचंड फुफकार से एक क्षण में आपके दीप को बुझा देंगे ।

राजपूज इतिहास पर प्रचुर लेखन करनेवाले ग्रंथकार कर्नल रॉड अत्याधुनिक सामग्री लेकर ‘जयहर’ कुंड में जाने को निकला; परंतु उन विषैले नागों की फुफकारों के कारण और भीषण प्राणघातक वायु के कारण वह कांप उठा । कर्नल रॉड पुनः लौटकर कभी उस कुंड की ओर नहीं गया ।

गढ तो गढ चित्तौडगढ और सब गढैय्या ! धन्य चित्तौड !! हे जयदुर्ग, तुझे त्रिवार प्रणाम !!!’

(प.पू. गुरुदेव काटेस्वामीजी द्वारा लिखित ग्रंथ ‘लावा’ से)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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