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सनबर्न फेस्टिवल के आयोजकों पर शासन तथा प्रशासन की संदेहास्पद ‘कृपादृष्टि’ ! – हिन्दू जनजागृति समिति

पुणे : हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. मिलिंद धर्माधिकारी ने २७ दिसंबर को आयोजित पत्रकार परिषद में ऐसा प्रतिपादित किया कि, ‘हिन्दू विधीज्ञ परिषद ने राज्य के राजस्वमंत्री, साथ ही पुणे जिलाधिकारी को सनबर्न फेस्टिवल के आयोजकोंद्वारा करोड़ों रुपयों का कर नहीं भरा गया, इस संदर्भ में वैधानिक परिवाद प्रविष्ट कर सरकार की आर्थिक रूप में की गई प्रतारणा स्पष्ट की थी ! किंतु शासन तथा प्रशासन ने इस बात की ओर अनदेखी कर आयोजकोंद्वारा दंड भी प्राप्त नहीं किया, साथ ही उन पर फौजदारी अपराध भी प्रविष्ट नही किया ! उलट इस वर्ष कर डुबोनेवाले ‘सनबर्न फेस्टिवल’ को लवळे, पुणे में स्वीकृती प्रदान की !

पत्रकार परिषद में बाईं ओर से अधिवक्ता श्री. मोहनराव डोंगरे, श्री. मिलिंद धर्माधिकारी एवं श्री.चंद्रकांत वारघडे

सनबर्न फेस्टिवल के आयोजकों पर शासन तथा प्रशासनद्वारा की जानेवाली ‘ऐसी’ कृपादृष्टि का रहस्य संदेहास्पद है ! इस में संघटित भ्रष्टाचार का संदेह उत्पन्न हो रहा है ! अतः इन सभी अपराधियों पर त्वरित वैधानिक कार्रवाई करनी चाहिए !’ ऐसी मांग हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. मिलिंद धर्माधिकारी ने की। उस समय सूचना सेवा समिति के संस्थापक अध्यक्ष श्री. चंद्रकांत वारघडे तथा अधिवक्ता श्री. मोहनराव डोंगरे ने सनबर्न फेस्टिवल के आयोजकों का झूठापन सबूत के साथ उजागर किया !

वर्ष २०१६ में केसनंद में संपन्न हुए सनबर्न फेस्टिवल में ‘रेनॉल्ट’, ‘जियोनी’, ‘किंगफिशर’, ‘ओला’, ‘एएफबीबी’, ‘रेबॅन’, ‘स्कायबॅग्ज’, ‘स्पाईसजेट’, ‘क्लीअरट्रीप लोकल’, ‘द वेस्ट इन’, ‘पंचशील’, ‘एल १’, ‘९ एक्स’, ‘ग्रेपवाईन’, ‘पीव्हीआर’ जैसे अनेक प्रायोजक थे; किंतु प्रायोजकता पर किसी भी प्रकार का कर नहीं किया गया था ! अतः शासन की लगभग कुछ करोडो रुपयों की हानि हुई है ! प्रायोजक प्राप्त होना अर्थात् कार्यक्रम का व्यय न्यून होना, यह उत्पन्न ‘प्राप्ति’ के रूप माना जाता है ! किंतु कर लागू करने की दृष्टि से वैधानिक प्रबंध तथा नियम होते हुए भी प्रशासन ने इस बात की ओर हेतुपुरस्सर ध्यान नहीं दिया ! इतना ही नहीं, तो झूठा प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत कर प्रायोजकत्व छिपाएं जा रहे हैं, इस बात की ओर भी प्रशासन ने अनदेखी की है !

वास्तविक सरकार ने ‘सनबर्न फेस्टिवल’ के आयोजकों का इतिहास को देखते हुए उनसे सरकारी शर्ते तथा नियमों का पूरीतरह से पालन होता है या नहीं, इस बात की ओर ध्यान देना आवश्यक था ! इस समय ऐसा प्रश्न उपस्थित होता है कि, क्या ऐसे अनदेखेपन को ही स्वच्छ तथा पारदर्शक कार्यपद्धति का उदाहरण कह सकते हैं ?

लोकायुक्तों की ओर किए गए परिवाद की प्रविष्टि ही नहीं है ! – श्री. चंद्रकांत वारघडे

गत वर्ष केसनंद में संपन्न हुए ‘सनबर्न फेस्टिवल’ के समय आयोजकों ने कार्यक्रम के कुछ ही समय पहले ही ३० में से केवल ५ से ७ शर्तों की पूर्तता की थी ! कार्यक्रम के लिए आरोग्य विभाग, प्रदूषण विभाग की अनुमती नहीं थी। वनविभाग ने उन पर अपराध प्रविष्ट किए थे। आयोजकों ने ५० सहस्र रुपयों की हुई टिकट बिक्री छुपाकर सरकार का राजस्व डुबोया था। इस संदर्भ में लोकायुक्तों की ओर २ मास पूर्व वैधानिक परिवाद प्रविष्ट करने के पश्चात भी केवल नोटीस देने के अतिरिक्त कुछ भी कार्रवाई नहीं की गई !

अधिवक्ता श्री. मोहनराव डोंगरे ने कहा कि, ‘‘गत वर्ष केवल २४ घंटों में सनबर्न फेस्टिवल को अनुमती दी गई थी। इसमें भ्रष्टाचार की ‘बू’ आती है ! सनबर्न फेस्टिवल युवा पिढी को भ्रष्ट करनेवाला है !’’

ऐसी होती है शासकीय कार्य पद्धति !

हिन्दू विधीज्ञ परिषदद्वारा किया गया परिवाद पुणे जिलाधिकारी कार्यालय ने ९ दिसंबर को गृह विभाग की ओर भेजा। तत्पश्चात गृह विभाग ने वह २७ दिसंबर को मनोरंजन कर विभाग को भेजा। मनोरंजन कर विभाग की तहसिलदार श्रीमती सुषमा चौधरी-पाटिल ने कहा कि, ‘परिवाद की दृष्टि से अन्वेषण के पश्चात नियम के अनुसार कार्रवाई की जाएगी !’

सनबर्न फेस्टिवल के आयोजकोंद्वारा करचोरी किए जाने के प्रकरण में पर्यटन राज्यमंत्री ने स्थानीय प्रशासन उत्तरदायी ठहराया !

श्री. मदन येरावार

पुणे : सनबर्न फेस्टिवल के आयोजकों ने करचोरी की उस संदर्भ में किये गए परिवाद का संज्ञान भी नहीं लिया गया ! इसी संदर्भ में महाराष्ट्र के पर्यटन राज्यमंत्री श्री. मदन येरावार से संपर्क किए जाने पर उन्होंने इसके लिए स्थानीय प्रशासन को उत्तरदायी ठहराया। उन्होंने कहा कि राज्य शासन सनबर्न का प्रायोजक नहीं है। अतः इस संदर्भ में कोई आपत्तियां होगी, तो उनको स्थानीय स्तरपर देखा जाएगा ! (स्थानीय प्रशासन राज्य शासन की ओर उंगली दिखाता है, जब कि राज्य शासन स्थानीय प्रशासन की ओर ! इसके कारण करचोरी करनेवाले तथा पाश्‍चात्त्य विकृतियों को प्रचलित करनेवालों को खुली छूट मिलती है और बीच में प्रामाणिक नागरिक पिसे जा रहें हैं, उसका क्या ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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