सनातन के रामनाथी (गोवा) आश्रम में ‘चतुर्थ उद्योगपति साधना शिविर’ का समापन
रामनाथी (गोवा) : ईश्वरप्राप्ति हेतु साधना करते समय तन-मन-धन को त्यागना पडता है ! ‘व्यवसाय में बढोतरी होने के लिए मैं ये करूंगा, वो करूंगा, उससे मुझे इतना इतना लाभ होगा’, ऐसा हमें लगता है; परंतु ईश्वरप्राप्ति के लिए त्याग ही महत्त्वपूर्ण होता है। त्याग में ही वास्तविक आनंद है और उसी के कारण ही ईश्वरप्राप्ति होती है ! हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने ऐसा मार्गदर्शन किया।
३० सितंबर से लेकर २ अक्टूबर तक की कालावधि में यहां के सनातन आश्रमम में चतुर्थ उद्योगपति साधना शिविर संपन्न हुआ। इस शिविर के समापन के अवसर पर सद्गुरु (डॉ.) पिंगळेजी ऐसा बोल रहे थे। इस समय हिन्दू जनजागृति समिति के केंद्रीय समन्वयक श्री. नागेश गाडे उपस्थित थे।
विविध विषयों पर उद्योगपतियों को मार्गदर्शन
इस शिविर में विविध विषयों पर मार्गदर्शन किया गया। इसमें ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में उद्योगपतियों का योगदान एवं उद्योपतियों के कार्य की आगामी दिशा’, ‘आनंदमय जीवन हेतु अध्यात्म’ एवं ‘गुरुकृपायोग के अनुसार साधना’ इन विषयों पर श्री. नागेश गाडे, ‘तनावमुक्ति हेतु स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया’ इस विषय पर कु. वृषाली कुंभार ने, ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का संकल्पित कार्य एवं महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का शोधकार्य’ इस विषय पर कु. प्रियांका लोटलीकर ने, तो ‘हिन्दू राष्ट्र की मूलभूत संकल्पना एवं आवश्यकता’ इस विषय पर सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने मार्गदर्शन किया। ‘अनिष्ट शक्तियों से होनेवाले कष्टों के लक्षण एवं आध्यात्मिक उपाय’ इस संदर्भ में भी जानकारी दी गई। सनातन संस्था, हिन्दू जनजागृति समिति एवं अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के विरोध में लगाए जानेवाले आरोप एवं वास्तविकता इस संदर्भ में सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी ने उद्योगपतियों की शंकाआें का निराकरण किया। शिविर के समापन सत्र में शिविरार्थियों ने अपना मनोगत व्यक्त किया।
शिविरार्थियों का मनोगत
१. हिन्दू धर्म में ‘ईश्वरप्राप्ति हेतु मनुष्य को प्रयास करने चाहिएं’, ऐसा बताया गया है ! इस शिविर में ईश्वरप्राप्ति हेतु निश्चित रूप से कौनसे प्रयास करने चाहिएं ?, मन का दृढनिश्चय कैसा होना चाहिए ?, यह सीखने को मिला। यहां मन की शांति का अनुभव हुआ ! – श्री. अजित आव्हाळे, पुणे
२. आश्रम में आनेपर मोह-माया से दूर हुए हैं, ऐसा प्रतीत हुआ। यह शिविर और कुछ दिनों तक चलता, तो भी मैं यहां रुक सकता हूँ ! – श्री. विकास सावंत, सोलापुर
३. महाभारत के समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता विशद कर जो ज्ञान दिया; जो संजय को अपनी दिव्यदृष्टि के कारण ही देखना संभव हुआ, हमें यह ज्ञान इस शिविर के माध्यम से ही अनुभव करने का अवसर मिला, ऐसा मुझे लगता है ! – श्री. राजीव तिवारी, वाराणसी
४. विगत कुछ वर्षों से साधक मुझे सनातन आश्रमदर्शन करने के लिए कह रहे हैं; परंतु समय के अभाव से मैं नहीं आ सका; परंतु इस बार मैं दृढनिश्चय कर आश्रम आया हूं। आश्रम आने पर यहां की नियोजनपद्धति एवं साधकों के मुखमंडल पर विराजमान आनंद देख कर बहुत अच्छा लगा ! मैं धर्म के लिए यथाशक्ति अर्पण करूंगा ! – श्री. विनय विठलकर, शिरसी, कर्नाटक
५. मेरे परिजन मुझे इस शिविर में जाने का आग्रह कर रहे थे; परतुं मैं अपनी व्यावसायिक व्यस्तता का कारण बताकर मैं टाल रहा था। इस शिविर में आने पर मुझे बहुत कुछ सिखने को मिला ! – श्री. के. एन. कृष्णमूर्ति, बेंगलुरू
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात