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शास्त्रानुसार होली एवं रंगपंचमी मनाएं !

होलीका महत्त्व

होलीका संबंध मनुष्यके व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवनसे है, साथ ही साथ नैसर्गिक, मानसिक तथा आध्यााqत्मक कारणोंसे भी है । यह बुराई पर अच्छाईकी विजयका प्रतीक है । दुष्प्रवृत्ति एवं अमंगल विचारोंका नाश कर, सद्प्रवृत्तिका मार्ग दिखानेवाला यह उत्सव है। अनिष्ट शक्तियोंको नष्ट कर ईश्वरीय चैतन्य प्राप्त करनेका यह दिन है । आध्यात्मिक साधनामें अग्रसर होने हेतु बल प्राप्त करनेका यह अवसर है । वसंत ऋतुके आगमन हेतु मनाया जानेवाला यह उत्सव है । अग्निदेवताके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेका यह त्यौहार है ।

भविष्यपुराणमें एक कथा है । प्राचीन कालमें ढुंढा अथवा ढौंढा नामक राक्षसी एक गांवमें घुसकर बालकोंको कष्ट देती थी । वह रोग एवं व्याधि निर्माण करती थी । उसे गांवसे निकालने हेतु लोगोंने बहुत प्रयत्न किए; परंतु वह जाती ही नहीं थी । अंतमें लोगोंने सर्वत्र अग्नि जलाकर उसे डराकर भगा दिया । वह भयभीत होकर गांवसे भाग गई । इस प्रकार अनेक कथाओंके अनुसार विभिन्न कारणोंसे इस उत्सवको देश-विदेशमें विविध प्रकारसे मनाया जाता है । प्रदेशानुसार फाल्गुनी पूर्णिमासे पंचमी तक पांच-छः दिनोंमें, कहीं तो दो दिन, तो कहीं पांचों दिनतक यह त्यौहार मनाया जाता है ।

शास्त्रानुसार होली मनानेकी पद्धति

कई स्थानोंपर होलीका उत्सव मनानेकी सिद्धता महीने भर पहलेसे ही आरंभ हो जाती है । इसमें बच्चे घर-घर जाकर लकडियां इकट्ठी करते हैं । पूर्णमासीको होलीकी पूजासे पूर्व उन लकडियोंकी विशिष्ट पद्धतिसे रचना की जाती है । तत्पश्चात उसकी पूजा की जाती है । पूजा करनेके उपरांत उसमें अग्नि प्रदीप्त (प्रज्वलित) की जाती है ।

विस्तृत कृती के लिए देखें यह वीडियो…

रंगपंचमी

ब्रह्मांडमें विद्यमान गणपति, श्रीराम, हनुमान, शिव, श्रीदुर्गा, दत्त भगवान एवं भगवान श्रीकृष्णजी ये सात उच्च देवताएं सात रंगोंसे संबंधित हैं । उसी प्रकार मानवकी देहमें विद्यमान कुंडलिनीके सात चक्र सात रंगों एवं सात देवताओंसे संबंधित हैं । रंगपंचमी मनानेका अर्थ है, रंगोंद्वारा सातों देवताओंकी तत्त्वतरंगोंको जागृत कर उन्हें आकृष्ट करना एवं उन्हें ग्रहण करना । इस प्रकार सभी देवताओंके तत्त्व मानवकी देहमें परिपूर्ण होनेसे आध्यात्मिक दृष्टिसे उसकी साधना पूर्ण होती है । वह आनंदमें निमग्न होता है । इससे यह भी स्पष्ट होता है कि, इन रंगोंद्वारा देवतातत्त्वके स्पर्शकी अनुभूति लेना, यही रंगपंचमीका एकमात्र उद्देश्य है । इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिए रंगोंका उपयोग दो प्रकारसे किया जाता है । पहला है, हवामें रंग उडाना एवं दूसरा है, पानीकी सहायतासे एकदूसरेपर रंग डालना ।

किंतु आज धर्मशिक्षा के अभाव के कारण होली त्यौहार को अनिष्ट रूप प्राप्त हो रहा है ! होली और रंगपंचमी के समय महिलाओं की छेडखानी करना, जबरन रंग लगाना, स्वास्थ के लिए हानिकारण रासायनिक रंगों का उपयोग करना आदि बाते हो रही है । इसे रोकना प्रत्येक हिन्दू का धर्मकर्तव्य ही है !

होली तथा रंगपंचमी के त्यौहारपर निम्न कृत्य टालकर धर्मकर्तव्य निभाएं !

अ. बलपूर्वक (जबरदस्तीसे) चंदा एकत्रित न करें !

आ. गंदे पानीके गुब्बारे न मारें !

इ. पानीका अनावश्यक प्रयोग न करें !

ई. बलपूर्वक (जबरदस्तीसे) रंग न लगाएं !

उ. तैलीय रंगोंका प्रयोग टालें !

ऊ. ऊंचे स्वरमें ‘डी.जे.’ लगाकर ध्वनिप्रदूषण टालें !

ए. अन्योंको दुःख हो, ऐसी कृति न करें !

ऐ. टायर जलाकर प्रदूषण न करें !

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