धार्मिक भावनाएं आहत करने के प्रकरण में पुलिस में शिकायत दर्ज; प्रशासन सार्वजनिक रूप से गणेशभक्तों से क्षमा मांगे
जिस पुणे में लोकमान्य टिळक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव का उद्घाटन किया था, वह पुणे प्रशासन पिछले कुछ वर्षों से गणेशोत्सव में धर्मशास्त्र विरोधी संकल्पनाओं का समर्थन कर रहा है । प्रतिवर्ष शास्त्रानुसार मूर्ति विसर्जन की परंपरा है, परंतु इस वर्ष कोरोना महामारी के नाम पर, नगरपालिका प्रशासन ने ‘पर्यावरण के अनुकूल गणेश विसर्जन मोबाइल रथ’ अर्थात ‘चल कृत्रिम टैंक’ में धर्मशास्त्र विरोधी-मूर्तिविसर्जन करवानेवाली है । ऐसा करने में, जिसका देवता की पवित्रता, श्रद्धा और धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, उस प्रशासन ने कृत्रिम टैंकों का अर्थात बाहर से रंगावाई गई कूडापेटियोें का उपयोग किया है । नगरपालिका प्रशासन की यह कार्रवाई अत्यंत संतापजनक, देवताओं का अनादर करनेवाली और हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत करनेवाली है । हिन्दू जनजागृति समिति इसका कडा विरोध करती है । हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र और छत्तीसगढ राज्य के संगठनकर्ता श्री. सुनील घनवट ने प्रश्न किया गया है कि निरंतर हिन्दुआें के धर्माचरण पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करनेवाले और गणेशोत्सव के दौरान श्री गणेशमूर्तियों का अनादर करनेवाले पालिका प्रशासन का दिमाग ठिकाने पर है न ?’ श्री. सुनील घनवट ने बताया कि इस प्रकरण में हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता श्री. अमोल मेहता और श्री. हेमंत शिंदे ने पुणे पुलिस के साथ संबंधित विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई है ।
पिछले वर्ष सामने आया था कि प्रशासन ने नदी के किनारे बनाए गए कृत्रिम टैंकों तक गणेशमूर्तियां पहुंचाने के लिए कूडा ढोनेवाले ट्रकों का उपयोग किया था । पिछले कई वर्षों से, हिन्दू जनजागृति समिति सहित समान विचारधारा वाले संगठन नगरपालिका प्रशासन को समझाकर श्री गणेश का अनादर न करने के लिए सावधान कर रहे हैं; परंतु नगरपालिका ने हमेशा हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को कूडे की टोकरी दिखाई है । अब यह असहनीय हो गया है । श्री गणेश का अपमान करनेवाले पुणे महानगर पालिका प्रशासन को तुरंत इस मामले में हिन्दुओं से क्षमा मांगनी चाहिए । हिन्दू जनजागृति समिति ने महानगरपालिका से यह भी पूछा है कि वह इस ‘मोबाइल’ टैंक में विसर्जित मूर्तियों का आगे क्या करेगी ।
पर्यावरण मित्रता के नाम पर कृत्रिम कुंड, अमोनियम बाइकार्बोनेट और मूर्तिदान जैसे धर्मशास्त्र विरोधी उपक्रम चलाने की अपेक्षा, खडिया मिट्टी से मूर्तियां बनानेवाले मूर्तिकारों को अनुदान दिया जाएगा, तो यह समस्या अपनेआप हल हो जाएगी । परंतु ऐसा न कर, धार्मिक कृत्यों के जानकारों से जानकारी लिए बिना, नगरपालिका प्रशासन, तथाकथित आधुनिकतावादियों के बहकावे में आकर धर्मद्रोही योजनाएं लागू कर रहा है । इस वर्ष, पुणे नगर निगम ने एक ओर कहा, ‘‘भक्त अपनी इच्छा से कहीं भी मूर्ति विसर्जन कर सकते हैं’’; परंतु वह नदी के किनारे स्थित विसर्जन घाटों को पत्तरों और ‘बैरिकेड्स’ से घेर देती है । इस प्रकार, कोरोना की आड में हिन्दुओं के धर्माचरण पर आघात किया जा रहा है । यदि ‘सोशल डिस्टन्सिंग’ के नियमों का पालन कर शराब की दुकानें खोली जा सकती हैं, तो उन्हीं नियमों का पालन करते हुए शास्त्रोक्त ढंग से विसर्जन करने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती ? यह प्रशासन का हिन्दूद्वेष ही दर्शाता है । भ्रष्ट बुद्धिवाले प्रशासन को बुद्धिदाता गणेशजी सुबुद्धि प्रदान करें, यह प्रार्थना है !