वैचारिक आतंकवाद के विरोध में हमें वैधानिक पद्धति से प्रतिकार करना चाहिए – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद
कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : हम में से प्रत्येक व्यक्ति व्यक्तिगत स्तर पर राष्ट्र एवं धर्म के लिए कुछ न कुछ करते रहते हैं । अब हमें इसके आगे जाकर हिन्दुत्व के लिए जो-जो लोग कार्य करते हैं, उनकी कानूनी सहायता करना, मार्गदर्शन करना, विविध क्षेत्रों में होनेवाली भ्रष्टाचार की घटनाओं और घोटालों को उजागर करने हेतु सूचना के अधिकार का उपयोग करना जैसे कृत्य करने चाहिएं । काल की गति एवं हिन्दुत्व पर हो रहे आक्रमणों को देखते हुए हमें अपना कार्यक्षेत्र व्यापक करना पडेगा । २-४ कथित आधुनिकतावादी अथवा वामपंथियों की हत्या हो जाने पर छाती पीटनेवाले कथित बुद्धिजीवी नक्सली विगत कुछ वर्षों में १४ सहस्र सामान्य नागरिकों की हुई हत्याओं के संदर्भ में कभी भी कुछ नहीं बोलते । नक्सली दूसरे कोई नहीं, अपितु मूलरूप से वामपंथी ही हैं । फादर स्टैन स्वामी जैसे लोग सामाजिक कार्य के बुर्के की आड में सदैव ही सत्य को दबाते हैं । इसलिए हमें इस वैचारिक आतंकवाद के विरोध में वैधानिक पद्धति से प्रतिकार करना चाहिए । हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने यह आवाहन किया । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से हाल ही में आयोजित ऑनलाइन अधिवक्ता विचारगोष्ठी में वे ऐसा बोल रहे थे । इस अवसर पर सनातन की धर्मप्रचारक सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी ने भी उपस्थित अधिवक्ताओं का मार्गदर्शन किया । इस विचारगोष्ठी में पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाडा, कोंकण एवं गोवा से ८० अधिवक्ता जुडे थे । इस विचारगोष्ठी का सूत्रसंचालन अधिवक्ता प्रीती पाटिल ने किया ।
अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने कहा कि,
१. जो हिन्दुत्वनिष्ठ प्रामाणिकता के साथ हिन्दुत्व के लिए कार्य करते हैं, हमें उनके साथ दृढता से खडे रहना चाहिए । ऐसे हिन्दुत्वनिष्ठों को हमने आवश्यक कानूनी सहायता दी, तो उनके मन में हमारे प्रति विश्वास बढेगा और वे हिन्दुत्व का कार्य और अधिक उत्साह के साथ करने के लिए प्रेरित होंगे ।
२. छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके शूर सैनिकों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर किले बनाए । इन किलों में से विशालगढ (कोल्हापुर), देवगढ किला (सिंधुदुर्ग), साथ ही अन्य किलों की दुःस्थिति देखकर, साथ ही वहां हुए धर्मांधों के अतिक्रमणों को देखकर पुरातत्व विभाग निद्राधीन है, ऐसा ही कहना पडेगा ।
३. कुल मिलाकर अधिवक्ताओं के कार्य की व्यापकता को देखते हुए यह एक आंदोलन है, जिसमें अपनी क्षमता के अनुसार योगदान देना होगा ।
तनावमुक्त जीवन के लिए साधना करना ही आवश्यक ! – सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडयेजी, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था
कोरोना संक्रमण की पृष्ठभूमिपर आजकल हम प्रत्येक व्यक्ति पर तनाव है । कोरोना के कारण अनेक उद्यमियों के व्यवसाय बंद हैं । रोगियों की संख्या बढने से आधुनिक वैद्यों पर तनाव है । अधिवक्ताओं के अभियोग चलने बंद होने से उन पर भी तनाव है । विज्ञान हमें सीमित सुख दे सकता है; परंतु तनावमुक्त जीवन व्यतीत करने हेतु हमें साधना करना ही आवश्यक है । हमें अनेक जन्मों के उपरांत मनुष्यजन्म प्राप्त होता है । उसे हमें सार्थक बनाना पडेगा । हमें धर्मशिक्षा न होने से किसी ने हमें धर्म-अध्यात्म का महत्त्व नहीं समझाया है । आजकल काल के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन कुलदेवता का और श्री गुरुदेव दत्त नामजप करना चाहिए ।