वल्लभगढ (फरिदाबाद) : यदि हम सचमुच ही शिक्षित हैं, तो एक भी छात्र के मन में ‘मेरे जीवन में केवल दुख ही है; इसलिए मुझे यह जीवन ही नहीं चाहिए, साथ ही मेरा जीवन तो मुझे मिला हुआ एक दंड है’, ऐसा विचार आता हो; तो उसे स्वयं से ‘क्या हमने सचमुच ही उचित शिक्षा ली है ?, यह प्रश्न पूछना चाहिए । तब ‘हमने जीवन में अध्तात्मम का अध्ययन नहीं किया, तो हमारा जीवन दुखी है, ऐसा ही लगेगा । अतः जीवन के दुखों को न्यून करने के लिए अध्यात्म का अध्ययन कर उसका आचरण करना चाहिए, ऐसा मार्गदर्शन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने किया । यहां के बालाजी महाविद्यालय में शिक्षकों और छात्रों के लिए आयोजित किए गए व्याख्यान में मार्गदर्शन करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।
इस अवसर पर बालाजी महाविद्यालय के मुख्य निदेशक श्री. जगदीश चौधरी, रा.स्व. संघ के उत्तर भारत क्षेत्र के संपर्क प्रमुख श्री. श्रीकृष्ण सिंघल, वाई.एम्.सी.ए. विश्वविद्यालय के प्राध्यापक श्री. अरविंद गुप्ता, युनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान के प्राध्यापक श्री. एस्.के. गुप्ता, बालाजी महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. चंद्रमोहन, बालाजी फार्मसी और बालाजी बी.एड्. महाविद्यालय के कई विद्यार्थी उपस्थित थे । कार्यक्रम का आरंभ दीपप्रज्वलन और श्री सरस्वतीदेवी की प्रार्थना कर हुआ ।
शिक्षा के मुख्य उद्देश के विषय में बताते हुए सद्गुरु डॉ. पिंगळे ने कहा कि,
१. अधिकांश छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त कर मुझे किसी बडे प्रतिष्ठान में नौकरी मिले, मेरे पास बहुत पैसे, चारपहिया गाडी और बंगला होना चाहिए । इसके साथ ही मेरे पास सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं हों, तो मेरा जीवन आनंदमय बनेगा । इस प्रकार की भौतिक शिक्षा लेकर क्या हमारे जीवन में सचमुच आनंद होगा ?
२. अनेक लोगों को ऐसा लगता है कि हॉवर्ड अथवा केंब्रिज विश्वविद्यालय की उपाधियां होंगी, तो हम देश के लिए कुछ कर सकेंगे । हमने अपनी क्षमता से अधिक धन कमाया, तो हमारा जीवन अधिक सुखी बनेगा; परंतु सचमुच ही सुखी होना हो, तो हमें सुख-दुख का अध्ययन करना चाहिए । उसके लिए सुख क्या होता है ?, यह समझ लेना चाहिए ।
३. उच्च शिक्षा प्राप्त कर भी मनगढंत नौकरी नहीं मिली, तो यही शिक्षा हमारे दुख का कारण बनती है । इसलिए हमने जीवन का मूल उद्देश्य समझ लिया और उस दिशा में उचित प्रयास किए, तो हम निश्चितरूप से सफल हो सकते हैं ।