हिन्दू समाज जब तक प्रतिकार नहीं करेगा, तब तक हिन्दू त्योहारों के समय होनेवाले जिहादी आक्रमण नहीं रुकेंगे ! – अधिवक्ता मोतीसिंह राजपुरोहित
हिन्दू नववर्ष, श्रीरामनवमी, श्री हनुमान जयंती आदि हिंदुओं के त्योहारों के समय देशभर में निकाली गई शोभायात्राओं पर जिहादी प्रवृत्तियों द्वारा भीषण आक्रमण किए गए । ये हिन्दू-मुसलमान दंगे नहीं थे, अपितु आतंकवादी प्रवृत्ति के जिहादियों द्वारा योजनाबद्ध पद्धति से किए गए एक पक्षीय आक्रमण थे । करौली के आक्रमण में सम्मिलित राजस्थान के सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधि और अन्य जिहादियों पर कार्यवाही करना तो दूर उनकी जानकारी प्रसारमाध्यमों द्वारा देने एवं लोगों द्वारा शिकायत करने पर भी उन पर कार्यवाही नहीं की गई । इसके विपरीत सरकार उनका बचाव कर रही है । जो तीव्र प्रतिकार और विरोध करता है, उसकी बात सरकार और न्यायालय सुनते हैं । इसलिए बहुसंख्यक हिन्दू समाज जब तक ऐसे आक्रमणों का उचित प्रतिकार और विरोध नहीं करते, तब तक ये घटनाएं नहीं रुकेंगी, ऐसा प्रतिपादन राजस्थान उच्च न्यायालय के अधिवक्ता मोतीसिंह राजपुरोहित ने किया । हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ‘रामनवमी की शोभायात्राओं पर देशभर में जिहादी आक्रमण !’ इस ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद में वे बोल रहे थे ।
इस अवसर पर ‘लष्कर-ए-हिन्द’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री. ईश्वरप्रसाद खंडेलवाल ने कहा कि, जिस समय मुसलमानों के जिहादी विचारों की पराकाष्ठा होती है, तब ऐसी घटनाएं होती हैं । केवल भारत में हिन्दुओं के संबंध में ऐसी घटनाएं होती हैं, ऐसा नहीं है, अपितु पाकिस्तान, अफगानिस्तान, पॅलेस्टाईन आदि इस्लामी देशों में भी निरंतर ऐसी लडाइयां हो रही हैं । इस जिहाद की बलि चढकर पाकिस्तान दे दिया गया है, तब भी ये लोग शांत बैठने के लिए तैयार नहीं है । इस देश के सेक्युलर प्रसारमाध्यम, राजनीतिक दल और संगठन इन जिहादी प्रवृत्तियों को पोसने का काम कर रहे हैं । इसलिए इन आतंकवादी प्रवृत्तियों को लोकतांत्रिक पद्धति से रोकना कठिन है तथा उसके लिए सीधे सैन्य कार्यवाही करने की ही आवश्यकता है ।
इस समय ‘हिन्दु विधिज्ञ परिषद’ के संगठक अधिवक्ता नीलेश सांगोलकर ने कहा कि, जो कश्मीर में वर्ष 1990 में घटा, वही राजस्थान के करौली, मध्य प्रदेश के खरगोन और देशभर में चल रहा है । हिन्दू समाज को जागृत होने की आवश्यकता है । हमारे तेजस्वी राष्ट्रपुरुषों और महान राजाओं के इतिहास का स्मरण करने की आवश्यकता है । पलायन नहीं, अपितु प्रतिकार करना ही एकमात्र उपाय है । जब तक सरकार की इच्छाशक्ति नहीं होगी, तब तक दंगाखोरों पर कोई कार्यवाही नहीं होती, ऐसा आज तक का अनुभव है । दंगाखोरों पर कार्यवाही के लिए सरकार से शिकायत, पत्रव्यवहार, सूचना के अधिकार, न्यायालयीन संघर्ष आदि माध्यमों से दबाव निर्माण करना चाहिए ।