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सरकार ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ के वक्तव्य की ओर गंभीरता से देखकर उनपर कार्यवाही करे – श्री. आनंद जाखोटिया

‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द संगठन क्या देश के टुकडे करना चाह रहा है ?’ इस विषय पर विशेष संवाद !

वर्ष 1919 में स्थापित संगठन ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ ने भारत के विभाजन और पाकिस्तान की निर्मिति को खुला समर्थन दिया था । आगे पाकिस्तान की निर्मिति होने के पश्चात यही ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ संगठन पाकिस्तान में नहीं गया और भारत में रहकर आज हिन्दुओं को ही भारत के बाहर जाने की चेतावनी दे रहा है । समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित हुए हैं कि, मुसलमान आतंकवादियों को सहायता करनेवाला ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ संगठन प्रतिवर्ष लाखों युवकों की सेना तैयार कर रहा है । देश में सीएए अथवा कुछ राज्यों में बन सकनेवाले समान नागरिक संहिता कानून को न मानने के उनके भडकाऊ वक्तव्य गंभीर हैं । इस संदर्भ में केंद्र सरकार को ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ सहित अन्य ऐसे संगठनों के कृत्यों की ओर गंभीरता से देखकर उन पर कठोर कार्यवाही करनी चाहिए, ऐसी मांग हिन्दू जनजागृति समिति के मध्यप्रदेश और राजस्थान समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने की । वे हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द संगठन क्या देश के टुकडे करना चाह रहा है ?’ इस विषय पर आयोजित ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद में बोल रहे थे ।

इस समय ‘विश्व हिन्दू परिषद’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. विनोद बंसल ने कहा कि, ‘जमीयत उलेमा-ए-हिन्द’ जैसे संगठन एक ओर अन्यों को दिखाने के लिए ‘यह देश हमारा है’ ऐसा कहता है; परंतु दूसरी ओर उसे इस देश के कानून और संविधान न मानकर शरीयत कानून, तिहेरी तलाक, हलाला आदि सब वैसे ही रखना है । इससे बडी मात्रा में मुसलमान महिलाओं और बालकों पर अत्याचार हो रहे हैं । देश के समान नागरिक संहिता कानून का विरोध करने की भूमिका ली जा रही है । देश के विभाजन को समर्थन देनेवाले लोग पुनः देश के विभाजन की भाषा बोल रहे हों, तब भी उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि, यह वर्ष 1947 का भारत नहीं है, अपितु राष्ट्रवादी विचारों का प्रखर भारत है । हम पहले के समान कुछ नहीं होने देंगे ।

इस समय छत्तीसगढ के सिंधी समाज के अध्यक्ष श्री. अमित चिमनानी ने कहा कि, ‘अल्पसंख्यकों पर अन्याय हो रहा है’, ऐसा भ्रामक प्रचार किया जा रहा है; परंतु ये ही इस देश में शाहीनबाग जैसे स्थान पर आंदोलन कर मार्ग रोकते हैं । राममंदिर के संबंध में हिन्दुओं ने न्यायालयीन संघर्ष किया और निर्णय हिन्दुओं के पक्ष में हुआ, तब भी हमने बाबरी दे दी है अब ‘ज्ञानवापी’ नहीं देंगे, ऐसा धमकाते हैं । इस देश का संविधान और कानून नहीं मानते और दूसरी ओर हमें प्रताडित किया जा रहा है, ऐसा शोर मचाया जा रहा है । इसका सर्वत्र निषेध होना चाहिए।

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