‘…आखिर ‘वंदे मातरम्’ का विरोध कब तक ?’ इस संदर्भ में ‘विशेष संवाद’ !
वर्ष 1909 में मुस्लिम लीग ने प्रथम ‘वंदे मातरम्’ का विरोध किया और ‘वंदे मातरम्’ का विरोध करनेवाले 1947 में भारत का विभाजन कर दूसरे देश अर्थात पाकिस्तान चले गए । ‘वंदे मातरम्’ भारत की सांस्कृतिक धरोहर है । जिसे देश के प्रत्येक नागरिक को मान्य करना चाहिए । अन्यथा हमें देश का नागरिक कहलवाने का कोई अधिकार नहीं है । ‘वंदे मातरम्’ गीत में भारतमाता का सम्मान है तथा इसका विरोध करनेवालों को भारतमाता का सम्मान नहीं करना है । ‘वंदे मातरम्’ का विरोध राष्ट्रविरोध है । ‘वंदे मातरम्’ के सम्मान के लिए देश में कानून बनाना चाहिए, ऐसी मांग ‘सर्वाेच्च न्यायालय’ के अधिवक्ता उमेश शर्मा ने की । हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित ‘…आखिर ‘वंदे मातरम्’ का विरोध कब तक ?’ इस विषय पर ऑनलाइन विशेष संवाद में वे बोल रहे थे ।
इस समय बिहार के ‘भारतीय जनक्रांति दल’ के महासचिव अधिवक्ता राकेश दत्त मिश्रा ने कहा, ‘वंदे मातरम्’ ऐसा गीत है, जिसके कारण अपने देश के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न होती है । जिन्हें देश के प्रति आस्था नहीं है, वे ही इसका विरोध कर सकते हैं । जो राष्ट्र गीत और राष्ट्र का सन्मान नहीं करते, उनकी नागरिकता तत्काल निरस्त कर उन पर कार्यवाही करने का कानून इस देश में लागू करना चाहिए । उसी प्रकार ‘वंदे मातरम्’ का विरोध करनेवाले विधायक, सांसद अथवा उनका जो भी राजनीतिक पद हो, वह भी निरस्त करने चाहिए ।’
इस समय सनातन संस्था के धर्मप्रचारक श्री. अभय वर्तक ने कहा कि, ‘वंदे मातरम्’ पर उस समय अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगाया था, तब भी ‘वंदे मातरम्’ कहते हुए देश के अनेक क्रांतिकारियों ने देश के लिए बलिदान दिया, फांसी पर चढे । ‘वंदे मातरम्’ का विरोध करनेवाले अंग्रेजों की भाषा बोल रहे हैं । ‘वंदे मातरम्’ को संविधान में राष्ट्रगीत का दर्जा देकर उसका ऐसा स्थान निर्माण करना चाहिए कि, उसका विरोध करने का किसी का साहस नहीं होगा ।