‘इंडियन मेडिकल असोसिएशन, इंदौर’की ओर से ‘चिकित्सा एवं अध्यात्म’ विषय पर मार्गदर्शन !
इंदौर (मध्यप्रदेश) – आज अनेक रोग ऐसे हैं कि जिनके कारण अथवा उस पर उपचार आधुनिक विज्ञान के पास भी नहीं है, परंतु आयुर्वेद के अनुसार अपने जीवन की कुछ बीमारियों के लिए गत जन्म के कर्म एवं कष्ट कारणीभूत हो सकते हैं । इसलिए रोगी को ठीक करने के लिए उपचारों को साधना की जोड देना आवश्यक है, ऐसा मार्गदर्शन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने किया । ‘इंडियन मेडिकल असोसिएशन, इंदौर’ ने आयोजित किए कार्यक्रम में वे ‘चिकित्सा एवं अध्यात्म’ इस विषय पर मार्गदर्शन कर रहे थे ।
कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री सरस्वतीदेवी का पूजन किया गया । सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे का स्वागत हृदयरोगतज्ञ डॉ. अजय भटनागर ने किया । ‘महात्मा गांधी सुपर स्पेशालिटी हॉस्पिटल’में हुए इस कार्यक्रम में आधुनिक वैद्य (डॉक्टर), रुग्णसेवा के कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे । इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए श्वसनरोगतज्ञ डॉ. सलील भार्गव ने प्रयत्न किया ।
मार्गदर्शन करते समय सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे
सद्गुरु डॉ. पिंगळे आगे बोले, ‘‘जीवन में साधना करने के लिए अथवा अध्यात्मानुसार जीवनयापन करने हेतु आयु की कोई मर्यादा नहीं है । इसलिए जिस क्षण हमें साधना समझ में आई, उसी क्षण साधना का प्रारंभ करना चाहिए । आज के युवकों का जीवन विद्यार्थीदशा से लेकर व्यवहार में स्थिर होने तक, अत्यंत संघर्षपूर्ण होता है । वे यदि जीवन में अध्यात्म एवं साधना की जोड दें, तो वे किसी भी परिस्थिति का भली-भांति सामना कर सकते हैं । आज आधुनिक यंत्रों के माध्यम से भी नामजप, साधना इत्यादि का मनुष्य पर क्या परिणाम होता है, यह समझ सकते हैं । अनेक देश एवं विद्यापीठ संस्कृत एवं अध्यात्म स्वीकार रहे हैं । इसलिए हम साधना से अपना जीवन परिवर्तित करने के साथ ही रोगियों की भी सहायता कर सकते हैं ।
इस अवसर पर हॉस्पिटल के अधिष्ठाता डॉ. संजय दीक्षित बोले, ‘‘संपूर्ण जग में भारत को आध्यात्मिकता के लिए पहचाना जाता है । विश्व आरोग्य संगठन ने भी आज आरोग्य की व्याख्या में आध्यात्मिकता का समावेश किया है ।’’
कार्यक्रम के आयोजक श्वसनरोग विशेषज्ञ डॉ. सलील भार्गव बोले, ‘‘मेरी आध्यात्मिकता की ओर काफी झुकाव है । जीवन में अनेक बार हम क्या कर रहे हैं ? यह हमें समझ में ही नहीं आता । हम अध्यात्म को वैज्ञानिक भाषा में समझकर यदि उसे जीवन में उतार लें, तो निश्चितरूप से अपने जीवन में परिवर्तन आ सकता है ।’’
क्षणिका
कार्यक्रम के अंत में प्रश्नोत्तर के कार्यक्रम में सभी का उत्स्फूर्त प्रतिसाद था ।