मंदिर हिन्दू धर्म की आधारशिलाएं हैं । हजारो वर्षाें से हिन्दू संस्कृति की रक्षा, जतन एवं संवर्धन में मंदिरों की भूमिका अनन्य साधारण है । मंदिरों को हिन्दू धर्म का वैभव माना जाता है । उससे मिलनेवाले चैतन्य के कारण ही इस आधुनिक काल में भी समाज मंदिरों की ओर आकर्षित हो रहा है । भले ही ऐसा हो; परंतु बहुसंख्यक हिन्दुओं के देश में आज मंदिरों के कोष पर वक्रदृष्टि रखकर उन्हें अपने नियंत्रण में लिया जा रहा है । महाराष्ट्र के सरकारीकृत प्रत्येक मंदिर की संपत्ति का दुरुपयोग होता हुआ दिखाई देता है । अनेक मंदिरों पर नियुक्त सरकारी समितिओं के हाथ भ्रष्टाचार से रंगे हैं तथा अनेक मंदिर समितियों के विरुद्ध न्यायालय में अभियोग चलाए जा रहे हैं । सरकारीकृत मंदिरों की धर्मपरंपराओं में हस्तक्षेप किया जा रहा है । इन अनियमितताओं को रोकने के लिए मंदिरों के प्रतिनिधियों का अभेद्य संगठन होना आवश्यक है । इसके लिए हिन्दुओं को केवल जागृत ही नहीं होना है, अपितु इसके विरुद्ध व्यापक जनआंदोलन खडा करना समय की मांग है । उस दिशा में अग्रसर एक कदम है ‘महाराष्ट्र मंदिर न्यास परिषद !’ जलगांव में हिन्दू जनजागृति समिति एवं श्री गणपति मंदिर देवस्थान न्यास मंडल, पद्मालय, जलगांव की ओर से 4 एवं 5 फरवरी 2023 को मंदिरों एवं मंदिरों की धर्मपरंपराओं की रक्षा के लिए राज्यस्तरीय ‘महाराष्ट्र मंदिर न्यास परिषद’ का आयोजन किया गया है, जिसमें मंदिर सरकारीकरण के विरुद्ध अभेद्य हिन्दूसंगठन क्यों आवश्यक है, इस विषय में उचित दिशादर्शन होगा । इस लेख का यही प्रयोजन है !
महाराष्ट्र सरकार के नियंत्रण में स्थित देवस्थानों में चल रहा भ्रष्टाचार !
मंदिर दैवी चैतन्य के केंद्र हैं । ऐसा होते हुए भी उन मंदिरों की संपत्ति पर वक्रदृष्टि रखकर कुछ मंदिरों का सरकारीकरण किया गया । महाराष्ट्र के कोल्हापुर, तुळजापुर, पंढरपुर आदि कुछ सुप्रसिद्ध तीर्थस्थलों का ‘सरकारीकरण’ हुआ है । जिन मंदिरों का सरकारीकरण हुआ है, उन मंदिरों के न्यास में बडे स्तर पर भ्रष्टाचार, साथ ही कुशासन दिखाई दे रहा है । नगर जिले के तीर्थस्थल शिरडी का ‘श्री साई संस्थान, शिरडी’ सरकार के नियंत्रण में है । शिरडी के ‘श्री साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट’ ने वर्ष 2015 के नासिक में संपन्न सिंहस्थ कुंभपर्व में भीड के नियोजन के लिए सामग्री क्रय (खरीद) करते समय उसे अधिक मूल्य पर क्रय करते हुए 66 लाख 55 हजार 997 रुपए के घोटाले का उजागर हुआ था । कुल मिलाकर राज्य में जितने मंदिरों को सरकार ने अपने नियंत्रण में लिया है, उनमें प्रत्येक मंदिर में इसी प्रकार के घोटालों की शृंखला दिखाई देती है । सरकारीकृत साईंबाबा संस्थान ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील की कुछ घंटों की यात्रा के लिए 93 लाख रुपए उडा दिए । पंढरपुर की मंदिर समिति ने तो गोशाला का गोधन कसाईयों को बेचकर उससे पैसा अर्जित किया । मुंबई के श्री सिद्धिविनायक मंदिर के करोडों रुपए राजनेताओं के न्यास में स्थानांतरित हुए हैं । इसी से मंदिर सरकारीकरण की विभीषिका ध्यान में आती है ।
देवालयों की संपत्ति पर ही वक्रदृष्टि रखना ही हिन्दुओं पर मर्माघात है !
वर्तमान स्थिति में रुपए का अवमूल्यन रोकने के लिए सरकार की दृष्टि असहाय हिन्दुओं की प्रचुर संपत्ति पर पडी । भारतीय रिजर्व बैंक ने हिन्दुओं के धनवान देवालय के पास की संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश निकाला है । यह बात निश्चित ही हिन्दुओं पर मर्माघात करनेवाली है !
देवकोष का दुरुपयोग
मंदिरों का केवल सरकारीकरण ही नहीं हुआ, अपितु देवकोष का भी दुरुपयोग किया गया । मंदिरों को पर्यटन की श्रेणी में कैसे लाया जा सकता है, इस विषय पर श्री सिद्धिविनायक मंदिर न्यास ने 28 एवं 29 जनवरी 2006 को साततारा (7 स्टार) होटल आईटीसी ग्रैंट सेंट्रल शेरेटन होटल में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय परिषद का आयोजन किया था । उस में श्रद्धालू द्वारा अर्पण किये गये 93 लाख रुपए सरकारी न्यासीओंने उडा दिए । इससे पूर्व सरकारीकृत अनेक मंदिरों में भ्रष्टाचार हुआ है, यह स्पष्ट हो चुका है । ऐसा होते हुए भी मंदिरों का सरकारीकरण होने के उपरांत प्राचीन काल से चली आ रही प्रथाएं बंद करना, उनमें मनमाने ढंग से परिवर्तन करना, धार्मिक विधियों के लिए आवश्यक समयावधि में कटौती करना, साथ ही पारंपरिक पुजारियों को हटाने के प्रयास चल रहे हैं ।
धर्मशास्त्र का पालन न करना
कोल्हापुर के श्री महालक्ष्मी मंदिर के संदर्भ में उक्त उल्लेखित भ्रष्टाचार के संदर्भ में किसी प्रकार की भूमिका न रखनेवाली सरकार ने शीघ्रता में मार्च 2018 में मंदिर में वेतनभोगी पुजारियों की नियुक्ति करने का निर्णय लिया । पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति ने महालक्ष्मी मंदिर में स्थित प्राचीन मनकर्णिका कुण्ड नाम के पवित्र तीर्थ को भरकर वहां शौचालय बनाने का दुष्कर्म किया । इसके विरुद्ध अनेक बार ज्ञापन प्रस्तुत कर, साथ ही आंदोलन कर भी इसके संदर्भ में कुछ भी न करने से अंततः शिवसेना के कोल्हापुर के तत्कालीन विधायक राजेश क्षीरसागर के नेतृत्व में शिवसैनिकों ने उसे गिरा दिया । वर्ष 2014 में सरकारी तंत्र में बैठे कुछ धर्म विरोधियों ने पंढरपुर के मंदिर में श्रीविठ्ठल की पूजा करनेवाले नियमित पुजारियों को हटाकर वहां नए पुजारी नियुक्त किए । ऐसे अनेक उदाहरण हैं ।
मंदिरों के न्यासियों एवं पुजारियों का सहभाग
अन्य पंथियों को उनके पंथ एवं उनके पंथ के शास्त्र की बहुत कुछ जानकारी होती है । कुछ प्रसंगों में वे संबंधित संप्रदायों के मार्गदर्शकों से सुझाव लेकर अपनी रणनीति बनाते हैं; परंतु यही बात जब हिन्दू जनप्रतिनिधियों के संदर्भ में आती है, उस समय उन्हें मंदिरों का महत्त्व, हिन्दू धर्म एवं धर्मशास्त्र की जानकारी नहीं होती है, ऐसा ध्यान में आता है । अतः हिन्दू धर्म, धर्मशास्त्र तथा देवता के प्रति श्रद्धा रखनेवालों को ही मंदिरों का प्रतिनिधित्व करना चाहिए, इसे हिन्दुओं के द्वारा स्पष्टता से बताने का समय अब आ चुका है ।
मंदिर की रक्षा के लिए निम्न प्रकार से सम्मिलित हो!
मंदिरों के न्यासी तथा पुजारी मंदिर की रक्षा के लिए निम्न प्रकार से सम्मिलित हुए, तो निश्चितरूप से मंदिर की पवित्रता अक्षुण्ण रहेगी !
1. मंदिरों का सरकारीकरण तथा सरकारीकृत मंदिरों में चल रही अनियमितताओं के विरुद्ध लोकतांत्रिक पद्धति से सभी स्तर के लोगों में जागृति लाएं !
2. मंदिरों से संबंधित वर्तमान कानूनों (उदा. ‘प्लेसेस ऑफ वरशिप’) के कारण होनेवाले दुष्परिणामों का अध्ययन कर ऐसे कानून हटाए जाएं, इसके लिए आवश्यक प्रयास करें !
3. प्रत्येक क्षेत्र के मंदिरों के न्यासियों, पुजारियों, भक्तों, हितचिंतकों आदि का संगठन बनाएं !
4. मंदिरों की धर्मपरंपराओं का पालन, प्रथाओं की रक्षा, साथ ही मंदिर की पवित्रता की रक्षा, स्वच्छता, नियमों का पालन, अनुशासन इत्यादि के पालन पर भरपूर ध्यान दें !
5. हिन्दुओं को धर्मशिक्षा मिलने के लिए गुरुकुल, वेदपाठशालाएं, साथ ही गोशाला आरंभ कर मंदिरों का वास्तविक लाभ हिन्दू समाज को लाभ मिले; इसके लिए प्रयास करें !
6. मंदिर परिषद के कार्य में सम्मिलित हों तथा अन्य लोगों को भी सम्मिलित करें !