मुंबई – पुरातत्व विभाग के सहायक संचालक विलास वहाणे ने मुंबई उच्च न्यायालय में प्रतिज्ञापत्र प्रविष्ट किया है कि विशालगढ का भूभाग वन विभाग के अंतर्गत आता है । तब भी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर, उस पर निवासी एवं व्यावसायिक उपयोग के लिए निर्माणकार्य किया गया है । इसलिए विशालगढ का जतन करने के लिए उस पर से अवैध निर्माणकार्य हटाना आवश्यक है । यह प्रतिज्ञापत्र न्यायमूर्ति बी.पी. कुलाबावाला और न्यायमूर्ति फिरदोश पुनीवाला के खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया ।
वहां के स्थानीय लोगों ने याचिका द्वारा मांग की है कि १४ जुलाई को विशालगढ पर हुए हिंसाचार का अन्वेषण करने के लिए विशेष पथक नियुक्त किया जाए । फरवरी में उच्च न्यायालय द्वारा विशालगढ पर निर्माणकार्य गिराने पर प्रतिबंध लगाए जाने पर राज्य सरकार ने कार्रवाई की । याचिकाकर्ताओं ने आरोप किया है कि इस कार्रवाई के पीछे राजकीय दबाव है । इस संदर्भ में प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत करने के आदेश न्यायालय ने पुरातत्व विभाग को दिए थे । उस अनुसार २९ अगस्त को पुरातत्व विभाग ने यह प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत किया ।
इस प्रतिज्ञापत्र में कहा है कि वहां के स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर ९० से भी अधिक अवैध व्यावसायिक निर्माणकार्यों पर कार्रवाई की । इस अवसर पर कानून एवं सुव्यवस्था का प्रश्न निर्माण नहीं हुआ । केवल व्यावसायिक निर्माणकार्यों पर कार्रवाई की गई है । निवासी निर्माणकार्यों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई । इसलिए याचिकाकर्ताओं ने निवासी निर्माणकार्यों पर कार्रवाई करने के आरोप में कोई तथ्य नहीं है । याचिकाकर्ताओं ने सरकारी जगहपर अतिक्रमण किया है इसलिए वे हानिभरपाई की मांग नहीं कर सकते । अगली सुनवाई १९ सितंबर को होेेेनेवाली है।