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600 परिवारों पर मंडराया संकट
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विरोध में उतरा चर्च
केरल में कोच्चि के उपनगरीय इलाकों मुनम्बम और चेराई गांवों 400 एकड़ जमीन को लेकर गंभीर विवाद उभर आया है, जहां लगभग 600 परिवारों की जमीन पर वक्फ बोर्ड ने अवैध दावा कर दिया है। यह मामला धीरे-धीरे राज्य की सीमाओं को पार कर अब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। इस विवाद में मुख्य रूप से मुनम्बम, चेराई, और पल्लिकाल द्वीप के इलाके शामिल हैं, जो कई दशकों से इन परिवारों की संपत्ति रही है। अब यह इलाका वक्फ बोर्ड की नज़र में है, जिससे इन परिवारों को अपनी जमीन खोने का डर सताने लगा है।
वक्फ बोर्ड का दावा और विरोध की शुरुआत
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीब पांच साल पहले साल 2019 वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि मुनम्बम, चेराई और पल्लिकाल के इलाके उनकी संपत्ति हैं। यह इलाका न केवल केरल के 600 से अधिक परिवारों का घर है, बल्कि यहां विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, जिनके पास 1989 से जमीन के वैध कागजात हैं। इसके बावजूद, वक्फ बोर्ड ने इस इलाके पर अपना दावा ठोक दिया। इन परिवारों ने अपनी जमीन को वैध रूप से खरीदा था, लेकिन अब उन्हें जबरन खाली करने के आदेश दिए जा रहे हैं, जो उनके संवैधानिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।
केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (KCBC) और सायरो-मालाबार पब्लिक अफेयर्स कमीशन (SMPAC) ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए लोकसभा सचिवालय के सामने रखा है। दोनों संगठनों ने सरकार से वक्फ कानूनों में संशोधन की मांग की है, ताकि इस प्रकार के अवैध दावे भविष्य में न हों। इन संगठनों के प्रमुखों कार्डिनल बासेलियोस क्लेमिस और आर्कबिशप मार एंड्रूज़ थाझाथ ने अपने पत्रों में कहा, “किसी भी नागरिक के संपत्ति के अधिकार और गरिमा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। यह समिति की जिम्मेदारी है कि वह कानून को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से लागू करे।”
साल 1902 तक जाती है विवाद की जड
विवाद की जड़ 1902 में जाती है, जब त्रावणकोर के राजा ने गुजरात से आए एक किसान अब्दुल सत्तार मूसा हाजी सेठ को 404 एकड़ जमीन और 60 एकड़ जल क्षेत्र पट्टे पर दिया था। उस समय, यह जमीन मछुआरों के लिए अलग रखी गई थी, जो वहां कई वर्षों से रह रहे थे। 1948 में सेठ के उत्तराधिकारी सिद्दीक सेठ ने यह जमीन पंजीकृत करवा ली थी। इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा समुद्री कटाव के कारण खो गया, और 1934 की भारी बारिश ने पांडरा समुद्र किनारे की जमीन को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। लेकिन सिद्दीक सेठ द्वारा पंजीकृत जमीन में मछुआरों के रहने वाले इलाके भी शामिल हो गए।
1950 में सिद्दीक सेठ ने यह जमीन फरोख कॉलेज को उपहार स्वरूप दे दी, लेकिन शर्त यह थी कि कॉलेज केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए ही इसका उपयोग करेगा। अगर कभी कॉलेज बंद हो जाता है, तो जमीन वापस सेठ के वंशजों को लौटाई जाएगी। लेकिन दस्तावेजों में गलती से या जानबूझकर ‘वक्फ’ शब्द लिख दिया गया, जिससे अब यह विवाद खड़ा हो गया है।
स्रोत : ऑप इंडिया