दापोली कृषि विश्वविद्यालय की आम उत्पादन को लेकर उदासीनता; सरकार से हस्तक्षेप की किसानों की मांग।
देवगढ, (सिंधुदुर्ग) – रामेश्वर, ता. देवगढ, जि. सिंधुदुर्ग में स्थापित आम उत्पादन अनुसंधान उपकेंद्र में पिछले 10 वर्षों में आम उत्पादन के लिए कोई नया शोध नहीं हुआ है; लेकिन इस अवधि में केवल वेतन पर 5 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं, जिससे यह अनुसंधान केंद्र अब सफेद हाथी बन गया है। हर साल आम पर विभिन्न रोगों और कीटों के कारण उत्पादन दिन-ब-दिन कम हो रहा है और आम उत्पादकों को नुकसान हो रहा है। ऐसे समय में, दापोली स्थित ‘डॉ. बाळासाहेब सावंत कोकण कृषि विश्वविद्यालय’ के अंतर्गत कार्य करने वाले इस अनुसंधान केंद्र को आम उत्पादन के बारे में उदासीनता और निष्क्रियता छोड़नी चाहिए। साथ ही आम उत्पादकों के लिए प्रभावी कार्यक्रम चलाने और उपयोगी शोध करने की आवश्यकता है। इसके लिए अब राज्य सरकार को इसमें गंभीरता से ध्यान देना चाहिए, यह मांग आम उत्पादक और हिंदू जनजागृति समिति के ‘सुराज्य अभियान’ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में की।
देवगढ स्थित होटल वेदा में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘आम व्यापारी संगठन’ के अध्यक्ष विलास रूमडे और आम उत्पादक विकास दीक्षित, रवींद्र कारेकर, अजित राणे, दत्तात्रय जोशी, सनातन संस्था के सद्गुरु सत्यवान कदम, हिंदू विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, हिंदू जनजागृति समिति के ‘सुराज्य अभियान’ के डॉ. रविकांत नारकर और हिंदू जनजागृति समिति के श्री राजेंद्र पाटील उपस्थित थे।
हर साल आम पर विभिन्न रोगों और कीटों के कारण उत्पादन कम होना, गुणवत्ता खराब होना और खर्च में वृद्धि होना जैसी समस्याएं आम उत्पादकों को परेशान कर रही हैं। साथ ही रासायनिक दवाओं को लेकर उत्पादकों में बड़ा भ्रम है और कंपनियों द्वारा उचित जानकारी नहीं मिलने के कारण उत्पादकों को आर्थिक नुकसान हो रहा है; लेकिन रामेश्वर स्थित आम अनुसंधान उपकेंद्र द्वारा इस संबंध में कोई मार्गदर्शन नहीं दिया जा रहा है, ऐसा प्रतीत होता है। उत्पादकों की मूलभूत समस्याओं को हल करने के बजाय, इस आम अनुसंधान केंद्र में ‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती क्यो? यह सवाल भी इस दौरान पूछा गया।
इस अनुसंधान केंद्र में विभिन्न आम की किस्मों पर आधारित प्रत्यक्ष शोध करना और वहां उत्पादकों के लिए रोपण, तकनीक, रोग नियंत्रण और विपणन पर आधारित प्रशिक्षण और मार्गदर्शन केंद्र शुरू करना आवश्यक है। वर्तमान में आधुनिक तकनीक का उपयोग हर जगह किया जाता है, तो शोध से मिलने वाली जानकारी को व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब आदि सोशल मीडिया के माध्यम से, वेबसाइटों के माध्यम से उत्पादकों तक पहुंचाना या उनके साथ संवाद साधने का काम अनुसंधान केंद्र को करना चाहिए। साथ ही अनुसंधान केंद्र में आम उत्पादन से संबंधित डिप्लोमा कोर्स शुरू करना चाहिए, जिससे अगली पीढी को तकनीकी और व्यावसायिक कौशल मिले, ऐसी मांगें भी इस दौरान की गईं।
आम उत्पादकों को इस संबंध में कोई समस्या हो, तो वे ‘सुराज्य अभियान’ के डॉ. रविकांत नारकर को 9307855279 पर संपर्क करें। साथ ही आम उत्पादकों की उपरोक्त मांगों पर ध्यान देते हुए राज्य सरकार को तत्काल सुधार करना चाहिए, अन्यथा आम उत्पादकों को सड़क पर उतरकर आंदोलन करना पड़ेगा, ऐसी चेतावनी भी दी गई।