ठाणे – कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय ने पिछले ६४ वर्षाें से लंबित कल्याण के दुर्गाडी किले पर स्थित मंदिर से संबंधित अभियोग पर निर्णय दिया है । दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु ‘मस्जिद’ नहीं, अपितु ‘मंदिर’ होने का महत्त्वपूर्ण निर्णय न्यायालय ने दिया है । समस्त हिन्दू धर्मप्रेमियों तथा गढ-किलाप्रेमियों ने इस निर्णय का स्वागत किया है । सभी धर्मप्रेमी हिन्दुओं ने दुर्गाडी किले पर स्थित श्री दुर्गादेवी के मंदिर में जाकर देवी की आरती उतार कर इस निर्णय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की ।
जिलाधिकारियों ने भी हिन्दुओं के पक्ष में दिया था निर्णय !
वर्ष १९६० में मुसलमानों ने दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु मस्जिद होने का दावा किया था । इस विषय में वर्ष १९७३ में ठाणे जिलाधिकारी के सामने ‘यह वास्तु मस्जिद है अथवा मंदिर ?’, इसका निर्णय हुआ । उस समय हिन्दुओं ने इस वास्तु के ‘मंदिर’ होने के प्रमाण सरकार को प्रस्तुत किए । तब जिलाधिकारी ने भी इस वास्तु के मंदिर होने का ही निर्णय दिया । जिलाधिकारी ने ‘यह वास्तु तो श्री दुर्गादेवी का मंदिर है तथा इस मंदिर में पहले से पूजा-अर्चना चल रही है’, ऐसा स्पष्ट किया था ।
किले पर कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करने हेतु सरकार से अनुमति लेने की न्यायालय की सूचना
दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु मंदिर होने के जिलाधिकारी के निर्णय को मुसलमानों ने जिला एवं सत्र न्यायालय में चुनौती दी थी । ‘दुर्गाडी किले की भूमि सरकार की है; इसलिए किले पर कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करना हो, तो सरकार से अनुमति लेनी पडेगी’, ऐसा न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा ।
अधिवक्ता भिकाजी साळवी एवं अधिवक्ता सुरेश पटवर्धन ने न्यायालय में रखा हिन्दुओं का पक्ष
दुर्गाडी किले पर स्थित वास्तु ‘मंदिर’ है, इस पक्ष में महाराष्ट्र सरकार तथा हिन्दू समाज की ओर से अधिवक्ता दिए गए थे । अधिवक्ता भिकाजी साळवी एवं अधिवक्ता सुरेश पटवर्धन ने न्यायालय में हिन्दुओं का पक्ष रखा । मुसलमानों की ओर से दुर्गाडी किले पर दावा किए जाने पर हिन्दू समाज की ओर से प्रतिवादी के रूप में ७ लोगों के नाम दिए गए थे; परंतु उनमें से ६ लोगों की मृत्यु होने से हिन्दू समाज की ओर से प्रतिवादी के रूप में और २२ लोगों के नाम दिए गए थे, जिसे न्यायालय ने स्वीकार किया था ।
दुर्गाडी किला ‘वक्फ बोर्ड’की संपत्ति होने का दावा !
वर्ष २००४ में वक्फ बोर्ड ने दुर्गाडी गड उसकी भूमि होने का दावा किया । वर्ष २०१६ में वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में किले पर स्थित वास्तु से संबंधित आयोग वक्फ बोर्ड ने उसे हस्तांतरित करने की मांग की; परंतु वर्ष २०२२ में न्यायालय ने वक्फ बोर्ड की यह मांग अस्वीकार की ।
ईदगाह का विवाद अभी भी जारी !
दुर्गाडी किले पर दीवार है तथा वह परिसर ईदगाह होने का भी मुसलमानों के द्वारा किया गया है । वर्ष १९७३ में जिलाधिकारी ने किले पर स्थित वास्तु मंदिर होने का निर्णय देते समय उन्होंने कहा कि वहां की दीवार का विषय उनके सामने निर्णय के लिए आया नहीं है, ऐसा कहा । उस समय हिन्दू समाज ने किले पर स्थित दीवार तथा परिसर ईदगाह न होने के विषय में आवेदन किया; परंतु जिलाधिकारी ने उसे अस्वीकार किया । तब से लेकर किले पर स्थित दीवार तथा उसका परिसर को कथितरूप से ईदगाह मानकर मुसलमान ईद के दिन यहां नमाज पढते हैं ।
स्रोत : हिंदी सनातन प्रभात