हिन्दू जनजागृति समिति की मांग को मिली सफलता
संस्कृत विश्वविद्यापीठ की बकाया धनराशि भी दी जाएगी !
संस्कृत भाषा का प्रचार और प्रसार हो, इसलिए उच्च और तंत्र शिक्षा विभाग द्वारा दिए जानेवाले ‘कवि कालिदास संस्कृत साधना’ पुरस्कार की राशि में सरकार ने १ लाख रुपयों तक वृद्धि की है । नागपुर में ‘कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय’द्वारा प्रति वर्ष यह पुरस्कार दिया जाता है; परंतु गत ६ पुरस्कारों के वितरण की निधि सरकार द्वारा विश्वविद्यालय को नहीं दी गई थी । इन दोनों मांगों पर सरकार ने कार्यवाही की है और अब विधिमंडल के शीतकालीन अधिवेशन में १६ दिसंबर को महाकवि कालिदास संस्कृत साधना पुरस्कार और ज्ञानज्योति सावित्रीबाई फुले पुरस्कार योजना के लिए पूरक मांगों में २३ लाख ६८ सहस्र रुपये निधि सम्मत की है।
संस्कृत का प्रचार-प्रसार करनेवाले प्राध्यापक, शिक्षक, पुरोहित, कार्यकर्ता आदि ८ लोगों को ‘महाकवि कालिदास संस्कृत साधना’ पुरस्कार दिया जाता है । इसमें सम्मान चिन्ह के साथ प्रत्येक को २५ सहस्र रुपये दिए जाते थे । वर्ष २०१२ से यह पुरस्कार दिया जा रहा है; परंतु गत १२ वर्षों में इस पुरस्कार की राशि में एक रुपए की भी वृद्धि नहीं की गई । उर्दू भाषा के प्रसार-प्रसार के लिए प्रतिवर्ष १० से भी अधिक पुरस्कार और कार्यक्रम किए जाते हैं । उसके लिए लाखों रुपयों की निधि व्यय किए जाने की आकडेवारी भी दैनिक ‘सनातन प्रभात’में प्रकाशित की गई थी । नागपुर में शीतकालीन अधिवेशन में संस्कृत भाषा के लिए दिए जानेवाले ८ पुरस्कारों के लिए प्रत्येक को १ लाख रुपये सम्मत किए गए हैं ।
पुरस्कार समारोह की बकाया राशि के पैसे भी सम्मत !
वर्ष २०१५ ते २०२० तक के पुरस्कारों के समारोह के लिए कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा १८ लाख १७ सहस्र ९५८ रुपये खर्च किए गए थे; परंतु सरकार द्वारा यह राशि अब तक नहीं दी गई । यह प्रकरण दैनिक ‘सनातन प्रभात’ से उजागर किया गया था । शीतकालीन अधिवेशन में पूरक मांगों के लिए भी निधि शासन द्वारा सम्मत की गई है ।
हिन्दू जनजागृति समिति का महत्त्वपूर्ण योगदान !
दैनिक ‘सनातन प्रभात’में यह समाचार प्रकाशित होने पर हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से उच्च और तंत्र शिक्षा विभाग के तत्कालीन मंत्री चंद्रकांत पाटील से मांग की गई कि ‘महाकवि कालिदास संस्कृत साधना पुरस्कार की निधि बढाएं, इसके साथ ही यह पुरस्कार समय पर दिया जाए !’ हिन्दू जनजागृति समिति और समिति के सुराज्य अभियान द्वारा यह सूत्र सातत्य से सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा था । समिति की इस मांग को अब सफलता मिली है।