फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, कलियुग वर्ष ५११५
जलगांव (महाराष्ट्र)का पांडववाडा अर्थात अज्ञातवासके समयका पांडवोंका निवासस्थान ! हिंदुओंकी उदासीनताके कारण सव्वा सौ (१२५) वर्षपूर्व धर्मांधोंद्वारा उसपर धीरे-धीरे मालिकी अधिकार प्रस्थापित किया गया । आज हिंदु जागृत हो गए हैं, तब भी पांडववाडा धर्मांधोंके नियंत्रणसे पुनः लेने हेतु हिंदुओंको संघर्ष करना पड रहा है । प्रस्तुत लेखमें इसपर विचार-विमर्श किया गया है ।
पांडवकालीन संकेतोंसे युक्त ‘पांडववाडा’ हिंदुओंके लिए अभिमानास्पद !
‘पांडवावाडा’ यह जलगांव नगरसे २७ कि.मी. दूरीपर एरंडोल तहसीलका गांव है । यह गांव अर्थात महाभारतकालीन एकचक्रनगरी । एरंडोलका प्राचीन समयका नाम ऐरनवेल अथवा अरुणावती था, जो अंजनी नदीके तट पर बसा है ।
हिंदुओं, अपना धर्मकर्तव्य निभाएं !‘पांडववाडा मुक्ती तथा शिरसोली पशुवधगृह निर्मूलन’हेतुआयोजित मोर्चेमें सहस्त्रोंसे सहभागी होके ‘हिंदुसंघटनका अविष्कार’ दिखाएं !स्थल : श्यामप्रसाद मुखर्जी उद्यान, जलगांव, महाराष्ट्र |
पांडववाडाका प्रमुख प्रवेशद्वार
श्री. सुनिल घनवट |
महाभारतसे पूर्व पांडव अज्ञातवासमें थे । इस समय वे इसी एकचक्रा नगरीमें निवास करते थे । वे जिसवाडामें रहते थे, वह वाडा अर्थात पांडववाडा ! आज भी यह वाडा एरंडोलमें ऐतिहासिक वास्तुके रूपमें पांडववाडाके रूपमें प्रसिद्ध है ।
एरंडोलसे १५ किलोमीटर दूरीपर पद्मालयमें जाकर भीमने बकासुरका वध किया था । आज भी पद्मालयसे डेढ किलोमीटर दूरीपर भीमकुंड, भीमकी चक्की तथा भीम एवं बकासुरके बीच हुए युद्धोंके संकेत दिखाई देते हैं । एरंडोलमें भीमवाटिका अभी भी दिखाई देती है । वाडाके समीप ही स्थित कुएंको द्रौपदीकूप भी कहते हैं । अनेक पर्यटक महाभारतकालीन पांडववाडा एवं पद्मालयको भेंट देते हैं । सरकारी गैजेटमें (राजपत्रमें) इस महाभारतकालीन पांडववाडाका उल्लेख ‘पांडववाडा’ ऐसा है । कुछ वर्ष पूर्व शालेय अभ्यासक्रममें भी पांडववाडाका एक पाठ अभ्यासके लिए था । अतः छोटे बच्चोंको भी सैरके लिए पांडववाडा देखने हेतु ले जाते थे । पांडववाडा सभी हिंदुओंकी दृष्टिसे अभिमानजनक बात है ।
पांडववाडाका अंतर्भाग
पांडववाडा हिंदुओंकी ही है, इसका प्रमाण देनेवाले उदाहरण !
पांडववाडाकी वास्तु ४५१५.९ वर्ग मीटर क्षेत्रफलमें व्याप्त है । पांडववाडाके प्रवेशद्वारके पहले पत्थरोंमें प्राचीनकालीन खुदा हुआ नक्काशीका काम है, जिसमें कमलके फूलोंकी नक्काशी स्पष्ट दिखाई देती है । वाडाके समीप धर्मशाला है । ऐसा केवल हिंदु मंदिरोंके समीप ही पाया जाता है । अंदर प्रवेश करनेपर दोनों ओर खुली भूमि है । वहांके दीवारोंको अनेक खिडकियां हैं । ये प्राचीन खिडकियोंमें दियें एवं कमलके आकारका नक्काशी काम किया हुआ है । वाडाके अंतमें मंदिरसमान गर्भगृह है, जिसके अंतमें मूर्ति रखनेका स्थान है । यह स्थान हिंदुओंकी वास्तुरचनाके समान है ।
धर्मांधोंने पांडववाडापर इस प्रकार प्राप्त किया है अवैधानिक नियंत्रण !
पांडववाडाके पिछली बाजूमें जुम्मा मस्जिद थी । वर्ष १८८० में वर्षाके कारण वह मस्जिद गिर गई । उस समय जुम्मा मस्जिद न्यासद्वारा १ रुपयेके स्टैंप कागजपर तत्कालीन ब्रिटिश सरकारी अधिवक्ताओंके साथ २५ वर्षोंका करार कर घास, लकडी इत्यादि साहित्य रखनेके लिए थोडी भूमि किरायेपर ली गई थी । उसका किराया प्रतिवर्ष २ रुपए था । केवल साहित्य रखने हेतु नगर पालिकासे यह भूमि लेनेके उपरांत वहांका अलग अलग प्रकारका ऐतिहासिक निर्माण कार्य तोडा गया । वहांके नक्काशीकामसे युक्त खंबे, खिडकियोंकी पत्थरसे बनी हुई जालियां तथा १५० वर्षपूर्वके वृक्ष तोडना आरंभ किया गया । नक्काशी कामवाले पत्थरोंको घिसकर उनसे ही चबूतरा एवं बरामदोंका निर्माणकार्य किया गया । वहांके सुरंगमार्ग बुझाए गए । ये सभी निर्माण कार्य बिना अनुमतिके किए गए है । पांडववाडाको ‘एन्शंट मोन्युमेंट एक्ट’(Ancient Monument Act) लागू होता है । इसलिए यह अपराध ध्यान देनेयोग्य था । इस संदर्भमें मेन्टेनन्स सर्वेअरने अगली कार्यवाही करने हेतु एरंडोलके तहसीलदारको परिवाद करनेपर जुम्मा मस्जिद न्यासके सांडेखान रहीमखानद्वारा लिखित माफीनामा भी उपलब्ध है ।
शासकीय कारभारमें अंधेरखाता
सरकारी दस्तावेजमें भी पांडववाडाकी वास्तुके नामके संदर्भमें संभ्रम दिखाई देता है । जांच पंजीकरण रजिस्टरके अवतरणमें ‘पांडववाडा’ नाम है जबकि प्राप्तिके अवतरणमें ‘सरकार’ यह नाम है तथा नगर भूमापनके संरचनामें ‘जामा मस्जिद’ ऐसा उल्लेख किया गया है । भूमापनके मानचित्रमें आरंभमें पांडववाडा ऐसा उल्लेख था । तत्पश्चात कुछ दिनोंके उपरांत पांडववाडा एवं मस्जिद ऐसा उल्लेख किया गया । और कुछ वर्षोंके उपरांत इसी नक्शेमें पांडववाडा एवं जुम्मा मस्जिद इस प्रकार परिवर्तन किया गया एवं वर्तमानमें भूमापनके मानचित्रमें केवल जुम्मा मस्जिद इसप्रकारका उल्लेख है ।
नगर भूमापनके (सिटी सर्वेके) अनुसार पांडववाडा (सि.स. नं.११००) वास्तु महाराष्ट्र शासनके नियंत्रणमें होनेके प्रमाण उपलब्ध हैं; परंतु दस्तावेजके रूपमें जुम्मा मस्जिद विश्वस्त संस्था उसकी मालिक होनेका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है । तब भी धर्मांध उसपर मालिकी अधिकार दर्शा रहे हैं ।
पांडववाडाका हिंदु तथा धर्मांधोंमें संघर्ष !
पांडववाडा धर्मांधोंके नियंत्रणसे मुक्त होने हेतु अनेक वर्षोंसे हिंदु संघर्ष कर रहे हैं । इस संदर्भमें वहां वर्ष १८८० से दस्तावेज उपलब्ध हैं । पिछले अनेक वर्षोंसे बजरंग दल, विश्व हिंदु परिषद एवं स्थानीय हिंदुनिष्ठ इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं । एरंडोलमें २ जून १९९५ को करवीर पीठके शंकराचार्य स्वामी श्री विद्याशंकर भारतीके मार्गदर्शनमें अखिल भारतीय संतयात्राका शुभागमन हुआ । गांवमें पांडववाडा होनेका ज्ञात होनेपर संतलोग उत्सुक होकर वाडा देखने गए । इस कालावधिमें धर्मांधोंको दरवाजेकी चाभी मांगने गया व्यक्ति २० मिनटसे अधिक कालावधि होनेपर भी वापस नहीं आया । सभी संतोंको अत्यधिक देरतक ठहरना पडा । अतः शंकराचार्यजीकी उपस्थितिमें बंद प्रवेशद्वार सभी संतोंद्वारा ही खोला गया । उस समय पुलिसकर्मियोंने सब संतोंको पुलिस थानेमें बुलाया । शंकराचार्यजीको फर्शपर बैठना पडा । उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया । पुलिसद्वारा संतोंपर विविध धाराएं लगाकर उन्हें अपराधी सिद्ध किया गया । २ वर्षपूर्व नागपंचमीको पांडववाडाके वाल्मीकपर कुछ हिंदु स्त्रियां पूजाके लिए गई थीं । उस समय धर्मांधोंने उन्हें पूजा करनेको प्रतिबंध किया एवं उनके साथ मारपीट की । यहांका वाल्मीक भी धर्मांधोंने नमक डालकर बुझा दिया ।
वर्तमान स्थिति
वर्तमान समयमें यहांपर नमाज पढा जाता है । नगर परिषदद्वारा सूर्योदयसे सूर्यास्तके समयमें सबके लिए यह पांडववाडा खुला करनेके आदेश दिए जानेपर भी हिंदुओंको कभी-कभी ही प्रवेश मिलता है । अधिकांश समय प्रमुख दरवाजेको ताला लगा रहता है । पिछले दरवाजेपर धर्मांधोंका ही वर्चस्व है । पांडववाडाके प्रमुख गर्भगृहमें हिंदुओंके लिए प्रवेश नहीं रहता; क्योंकि वहां नमाज पढा जाता है । अंदरके क्षेत्रमें फर्शकी सीढियां हैं । हातपांव धोने हेतु चबूतरा एवं एवं नलका निर्माणकार्य किया गया है । मूर्ति रखनेके स्थानपर नमाज पठनका साहित्य रखा गया है । बडे भोंपू लगाए गए हैं ।
– श्री. सुनील घनवट, समन्वयक, हिंदू जनजागृति समिति
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात