उडीसा राज्य के खोरत (जिला जगतिंसहपुर) में ‘संतसम्मेलन’
राऊरकेला : सभी क्षेत्र में निजीकरण होते समय मठ-मंदिरों का सरकारीकरण करने के पीछे शासन का क्या हेतु है ? यह ध्यान में लेकर मठ-मंदिरों की रक्षा हेतु संगठित रूप से प्रयास करना आवश्यक है, हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने जगतिंसहपुर जिले में खोरत के अखंडमणिमंडलेश्वर मंदिर में २९ जनवरी को आयोजित संतसम्मेलन में ऐसा प्रतिपादित किया।
इस संतसम्मेलन में लगभग ४० से अधिक संत-महंत उपस्थित थे।
श्री. शिंदे ने आगे कहा कि, आज मठ-मंदिर में हिन्दू भक्तोंके अर्पण से एकत्रित होनेवाले धन एवं मंदिर की संपत्ति पर शासन का ‘लक्ष्य’ है ! शासनद्वारा अनेक प्रसिद्ध मंदिरोंको नियंत्रण में लेकर इस मंदिर में अर्पित धन का अनुचित प्रयोग तथा मंदिर की परंपराओं में हस्तक्षेप किया जा रहा है; परंतु ईसाईयोंके चर्च एवं मुसलमानोंकी मस्जिदों में शासन कोई हस्तक्षेप नहीं करता, यह प्रकरण अति गंभीर है !
शासनद्वारा उडीसा राज्य के मठ एवं आश्रम के विषय में किए जानेवाले अन्याय के विषय में गोठद, उडीसा के साधु-संत समाज के सभापति महंत चिंतामणि पर्वत महाराज ने तीव्र दुःख व्यक्त किया है।
उन्होंने कहा कि, शासनद्वारा पुरी के अनेक मठ तथा आश्रम इत्यादि नियंत्रण में लिए गए हैं; परंतु वहां रहनेवाले संन्यासियोंका दायित्व शासन नहीं लेता। हम बचपन से आश्रम में हैं एवं इसी आश्रम में हम छोटे से बडे हुए। हमने हमारा पूरा जीवन आश्रम के लिए अर्पित किया, आश्रम का विस्तार किया एवं आश्रम को संजोए रखा।
ऐसी स्थिति में भी बीमार होने पर शासन कहता है कि, अपनी औषधियोंका व्यय आप स्वयं ही करें !
एक ओर शासन आश्रम की धन संपदा पर अधिकार दर्शाता है, जबकि दूसरी ओर इतने वर्ष आश्रम की देखभाल करनेवालोंपर कोई ध्यान नहीं देता !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात